हिजाब को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट की टिप्पणी – हिजाब पहनना इस्लाम में जरूरी प्रथा नहीं

हिजाब विवाद को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में आज (18 फरवरी, 2022) छटवें दिन भी सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता पक्ष के वकीलों ने अपनी दलीलें रखीं। आज भी इस मामले पर फैसले की उम्मीद की जा रही है। आज कोर्ट में बाकी बची 7 याचिकाओं के आधार पर ही सुनवाई हुई। आज की सुनवाई एटॉर्नी जनरल (AG) प्रभुलिंग नवदगी की दलीलों से हुई।

इस दौरान सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल (AG) ने कहा कि हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। 14 फरवरी से लगातार चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्‍थी, जस्टिस कृष्‍णा एस दीक्षित, जस्टिस जैबुन्निसा मोहियुद्दीन काजी की बड़ी बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है। इससे पहले कोर्ट में छात्राओं की तरफ ह‍िजाब के पक्ष में दलीलें दी गईं थीं।

एडवोकेट जनरल द्वारा यह कहना कि ‘हिजाब इस्लाम का जरुरी हिस्सा नहीं”, स्मरण करवाता है आर्गेनाइजर साप्तहिक के पूर्व संपादक प्रो वेद प्रकाश भाटिया(स्व) ने अपने जीवनकाल में अपने प्रतिष्ठित स्तम्भ Cabbages & Kings, जिसमें कई बार उन्होंने लिखा कि “burqa is not an Islamic culture…there many times boys having attractive and charming face were forced to keep in burqa…” लेकिन किसी ने उनके लेख का खंडन तक नहीं किया। प्रमाण के लिए कोई भी व्यक्ति वर्तमान सम्पादक की आज्ञा से कभी भी Organiser Weekly कार्यालय जाकर उन अंकों को पढ़ सकता है।    

मामले में सरकार की तरफ से पक्ष रखते हुए एडवोकेट जनरल ने कहा, “2018 में वर्दी निर्धारित थी। दिसंबर 2021 तक कोई समस्या नहीं आई। छात्राओं के एक समूह जो याचिकाकर्ता भी हैं, उन्होंने प्रिंसिपल से संपर्क किया और जोर देकर कहा कि वे हिजाब पहनकर कॉलेज में आएँगी। 31 दिसंबर से यह घटना तब हुई जब कुछ लड़कियों ने प्रिंसिपल के पास जाकर कहा कि वे हिजाब पहनकर ही कॉलेज में प्रवेश करेंगी। जब यह जिद हुई तो सीडीसी ने जाँच करना चाहा। सीडीसी की अध्यक्षता विधायक ने 01.01.2022 को की।

वहीं 17 फरवरी की सुनवाई में 5 छात्राओं के वकील एएम डार ने कोर्ट से माँग की कि सरकार के आदेश से उन लोगों पर असर पड़ेगा जो हिजाब पहनते हैं। यह असंवैधानिक है।

शुक्रवार और रमजान में हिजाब पहनने की छूट मिले

फरवरी 17 को हुई सुनवाई में हिजाब को लेकर लगाई गई एक अन्य याचिका में डॉ. कुलकर्णी ने कोर्ट के सामने कहा कि कृपया शुक्रवार और रमजान के दौरान हिजाब पहनने की अनुमति दें। अधिवक्ता विनोद कुलकर्णी ने कर्नाटक हाईकोर्ट से यह भी कहा था कि यह मुद्दा उन्माद पैदा कर रहा है और मुस्लिम लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।

फरवरी 17 को ही 5 छात्राओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर वकील एएम डार ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष कहा कि हिजाब पर सरकार के आदेश से उनके मुवक्किलों पर असर पड़ेगा जो हिजाब पहनते हैं। उन्होंने कहा कि यह आदेश असंवैधानिक है। अदालत ने डार से अपनी वर्तमान याचिका वापस लेने और नई याचिका दायर करने को कहा।

वहीं 5वें दिन की सुनवाई के बीच नई याचिकाएँ आने पर चीफ जस्टिस ने याचिकर्ताओं से कहा कि हम चार याचिकाएँ सुन चुके हैं और 4 बाकी हैं। हमें नहीं पता कि आप इसके लिए और कितना टाइम लेंगे। हम इसके लिए और ज्यादा समय नहीं दे सकते।

बेंच ने ख़ारिज की एक याचिका

बेंच ने एडवोकेट रहमतुल्लाह कोटवाल की याचिका, जनहित याचिका अधिनियम 2018 के तहत न होने के कारण खारिज कर दी। इसके पहले वकील ने बिना पहचान बताए ही दलील शुरू की तो जस्टिस दीक्षित ने उनसे पूछा कि आप इतने महत्वपूर्ण और गंभीर मामले में कोर्ट का समय बर्बाद कर रहे हैं। पहले अपनी पहचान बताओ, तुम हो कौन?

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