कविता  -31

था लाल बहादुर भारत का, भारत का ऊँचा भाल किया।
‘धरती का पुत्र’ कहाता है, जन-जन को स्वाभिमान दिया।।

देश के हित जीना सीखा , देशहित  मृत्यु का वरण किया।
चेतना में रहा देश धड़कता, ना ध्वज देश का झुकने दिया।।

अपमान सहा और कष्ट सहे,   जेलें  सहीं  और  मस्त  रहे।
सर्वोच्च शिखर को पाकर के भी अहंकार भाव से दूर रहे ।।

दार्शनिक भाव से राज किया और दर्शन को जीवन में खोजा।
लोकतंत्र को दर्शन भाव दिया, ऊंचा किया और ऊंचा सोचा।।

विनम्र रहे पर झुके नहीं और सिद्धांतों के पथ पर रुके नहीं।
आदर्श के लिए संघर्ष किया ना थमे कहीं ना ही थके कहीं।।

दो अक्टूबर को जन्मे थे , जनवरी ग्यारह को प्रस्थान किया।
निष्काम भाव से जीते रहे , योगी की  भांति  प्रयाण  किया ।।

‘जय जवान – जय किसान’ के नारे से किया  नया  संचार।
नव स्फूर्ति  से  भर  गया  देश  उसे  मिला  सही  उपचार ।।

शासनकाल संक्षिप्त रहा उनका पर काम किए अद्भुत सारे।
भारत को गौरव प्रदान किया शत्रु को दिखाये दिन में तारे।।

भारत के गौरव लाल बहादुर जब लाहौर में जाकर धमके थे।
परदेश की भूमि पर दिया भाषण सूरज के सम वह चमके थे।।

अपने देश भक्त नायक पर  भारत  करता   गर्व  अंतर्मन  से ।
शास्त्री लाल बहादुर थे यही हर जन  कहता  अपने  मन  से।।

सत्ता के स्वार्थी लोगों ने  उपेक्षा की  और  अपमान  किया।
राकेश’ देश के लोगों ने राष्ट्रपुरुष का हृदय से सम्मान किया।।

यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’-  से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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