kalyan singhक्रांतिकारियों को नही थी पसंद चाटुकारिता

देश के क्रांतिकारी आंदोलन की विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों ने ‘जन-गण-मन अधिनायक जय हे’ के गीत को लेकर गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की आलोचना करनी आरंभ कर दी थी। इसका कारण केवल यह था कि हमारे स्वातंत्र्य समर की क्रांतिकारी विचारधारा के लोगों के लिए ‘अधिनायक’ जैसा शब्द प्रारंभ से ही चुभने वाला था।

‘पंकज’ की पीड़ा

पंकज श्रीवास्तव अपने लेख में यह स्वीकार करते हैं कि गुरूदेव को इस गीत के लिखते ही-आलोचना का शिकार होना पडऩे लगा था। पंकज की पीड़ा है कि इस गीत का विरोध आर.एस.एस.जैसे संगठनों की संकीर्ण मानसिकता के कारण हुआ था। अब उन्हें यह कौन समझाये कि यह गीत गाया गया, 1911 में और आर.एस.एस. का जन्म हुआ 1924 ई. में। लेखक को आर.एस.एस. पर आरोप लगाने से पूर्व कम से कम तथ्यों की पड़ताल तो करनी चाहिए थी।

‘अधिनायक’ शब्द का वैयाकरणिक आधार

जहां तक गुरूदेव के गीत में आये शब्द ‘अधिनायक’ के वैयाकरणिक आधार का प्रश्न है तो  ‘अधिनायक’ सीधे-सीधे तानाशाह का पर्यायवाची है। शब्द ‘नायक’ है, पर नायक में कोई व्यक्ति समाज या राष्ट्र का नेतृत्व स्वाभाविक रूप से हृदय से स्वीकार करता है, क्योंकि उसके अनुसार चलने में वह अपना हित समझता है। जबकि ‘अधिनायक’ के साथ ऐसा नही है। इस शब्द में लगा ‘अधि’ सारी स्थिति को बिगाड़ देता है। ‘अधि’ का अर्थ है ऊपर उठना, अति उगना (बलात् किसी के विकास को रोक देना है) इसका एक अभिप्राय संस्कृत शब्दकोश में किसी वस्तु पर प्रभुता या स्वामित्व प्रकट करना भी है, जब यह ‘अधि’ क्रमण के साथ लगता है तो वहां इसका अभिप्राय हमला या चढ़ाई से हो जाता है। जब यह नियम के साथ जुड़ता है तो वहां भी यह नियम के स्वाभाविक अर्थ को परिवर्तित कर देता है। तब नियम पर किसी की प्रभुता स्पष्ट दिखाई देने लगती है। ऐसे ही अधिमास का अर्थ-लौंद का महीना है, अधिराज का अभिप्राय प्रभुसत्ता प्राप्त परमशासक, अधिराज्यम् का अर्थ शाही हुकूमत या सम्राट का शासन, अधिवास का अभिप्राय धरना देना है। इससे स्पष्ट है कि जहां-जहां ‘अधि’  लग जाता है, वहीं वह प्रभुता और दूसरों पर बलात्, वर्चस्व स्थापित करने की भावना उत्पन्न कर देता है। ‘अधिनायक’ शब्द भी हमें हमारी इच्छा के विरूद्घ नेतृत्व देने वाले व्यक्ति की ओर संकेत करता है। इस वैयाकरणिक आधार को कोई भी व्यक्ति नकार नही सकता, केवल राष्ट्रगान में आये ‘अधिनायक’ शब्द को लेकर संस्कृत व्याकरण के नियमों में मनमाना परिवर्तन किया जा सकता है।

नायक के अर्थ

नायक के अर्थ (सा.द. के अनुसार) चार प्रकार के माने गये हैं। धीरोदात्त, धीरोद्घत, धीरललित और धीरप्रशांत। इन चारों के कुछ अवांतर भेद होने के कारण नायक के भेद संख्या में 40 माने गये हैं। पर इस नायक में अधि लगते ही इस अधिनायक का अर्थ राजा प्रभु (स्वयंभू) हो जाता है।

गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर का स्पष्टीकरण

ऐसे में शब्द के अर्थ का अनर्थ करने की आवश्यकता पंकज श्रीवास्तव जैसे लोगों को नही होनी चाहिए। फिर भी उन्होंने यह कहने का प्रयास किया है कि गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने अपने जीवन काल में यह स्पष्ट किया था कि उन्होंने ‘अधिनायक’ का प्रयोग इस भूमि के लिए या परमपिता परमेश्वर के अर्थों में किया था। इस स्पष्टीकरण से भी दो बातें स्पष्ट होती हैं, एक तो यह कि गुरूदेव पर अधिनायक शब्द ‘जन-गण-मन’ में डालने का कितना अधिक बोझ था, दूसरे यह कि वह स्वयं इस शब्द को किस प्रकार अपने बचाव में बार-बार व्याख्यायित करते रहे।

गुरूदेव की राष्ट्रभक्ति असंदिग्ध है

यह सच है कि गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के पश्चात अपने को अंग्रेजों से मिली ‘मानद’ उपाधि को लौटा दिया था। इस घटना को पंकज श्रीवास्तव ने इस बात से जोडऩे का प्रयास किया है कि गुरूदेव एक देशभक्त और स्वाभिमानी व्यक्ति थे, और इसलिए ही उन्होंने अपनी उपाधि को जलियांवाला बाग हत्याकांड के पश्चात लौटा दिया था। वास्तव में पंकज श्रीवास्तव यहां भी भूल कर रहे हैं। कल्याण सिंह स्वयं कहते हैं कि उनके द्वारा ‘अधिनायक’ शब्द को हटाने की बात कहने का अभिप्राय गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर का अपमान करना नही है। वैसे भी गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की देशभक्ति असंदिग्ध है। उस पर किसी ने भी उंगली नही उठाई है। हम स्वयं इस बात के समर्थक हैं कि गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने यह गीत अंग्रेजों के लिए बनाकर तो दिया परंतु जब कांग्रेसी लोगों ने इसे बार-बार गाना आरंभ किया तो उनको भी कष्ट होने लगा था। तथ्य यह भी है कि अंग्रेजों ने गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर को इसी गीत पर प्रसन्न होकर नोबेल पुरस्कार दिलाने की बात उनके सामने रखी थी, जिसे उन्होंने विनय पूर्वक ठुकरा दिया था। वे नही चाहते थे कि इस गीत पर उन्हें नोबेल पुरस्कार मिले।

क्रमश:

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