अंतिम मुगल बादशाह के लाडलों को बेरहमी से कत्ल करने की घटना का मूक गवाह है खूनी दरवाजा

नई दिल्ली। नई दिल्ली में मौलाना आजाद मेडिकल कालेज के मुख्य द्वार के सामने स्थित खूनी दरवाजा आज इस बात को तसल्ली कर सकता है कि वह इस अंतिम मुगल शाह के लाडलों को बेरहमी से कत्ल किये की घटना का मूकगवाह है। सरकार ने शादी के बाद उसी राष्टï्रभक्त बादशाह बहादुर जफर के नाम पर वहां से गुजरने वाली एक सडक़ का नामकरण करके उस इतिहास पुरूष का किया है।

मूलत: काबुली दरवाजे के नाम से विख्यात रंग का यह दरवाजा अंग्रेजों के उस कहर की याद दिलाता है जो उन्होंने सन 1857 के गदर के तत्कालीन शाहजहानाबाद के बाशिंदों पर किया था। बहादुरशाह जफर के पुत्रों के इसी दरवाजे  पर लटका दिया गया था। जहानाबाद के अन्य छह दरवाजों लाहौरी कश्मीरी मोरी, तुर्कमान आगरा अथवा किसी दरवाजे पर इतना खून बहा जितना काबुली दरवाजे अथवा खूनी दरवाजे बहाया गया।

समझा जाता है कि यह दरवाजा शेरशाह द्वारा बनवाये गये दरवाजों में से एक है। डी. शर्मा की पुस्तक दिल्ली और उसके अनुसार मथुरा रोड पर स्थित एक भव्य द्वार है जो ज्यादातर भूरे पत्थरों से है औरलाल पत्थर इसकी खिड़कियों के इस्तेमाल किया गया है। हालांकि इसके एक शहरी दीवार के अवशेष का सिलसिला है। यह दरवाजा लाल अथवा खूनी दरवाजा से जाना जाता है।

खूनी दरवाजे से जुड़ी रक्तरंजित यादों का पूर्व चांद पत्रिका के फांसी विशेषांक विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसका जाने माने साहित्यकार आचार्य चतुरसेन था। इस अंक में सन 1857 के विद्रोह उसके बाद हुए अंग्रेजों के अत्याचार से स्थित अनेक लेख संकलित हैं। पत्रिका के अंक में छपने के बाद अंग्रेजों ने इसकी सभी जब्त कर ली थी। सरकार इससे इतना घबरा गयी कि जिस किसी के पास इसकी एक पाई जाती उसको गिरफ्तार कर लिया जाता था। उसमें ख्वाजा हसन निजामी देहलवी का सन 57 में दिलली के लाल दिन शीर्षक से लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें इसी दरवाजे पर बहादुरशाह जफर के बेटों को दी गयी फांसी और अन्य दिल्ली वालों पर ढाए गये दिल दहला देने वाले जुल्मों की दास्तान बयान की गयी है।

लेख के अनुसार मुंशी जकीउल्ला साहब का बयान है कि बादशाह की गिरफ्तारी के दूसरे दिन मुंशी रज्जब अली और मिर्जा इलाही बख्श ने खबर दी कि मिर्जा मुगल, मिर्जा खिजर सुल्तान और मिर्जा अबु बकर बहादुरशाह जफर के दो बेटे और एक पोते भी मकबरे हुमायूं में मौजूद हैं और यही वे लोग हैं जिन्होंने अंग्रेज औरतों और बच्चों के कत्ल में हिस्सा लिया था।

यह खबर सुनकर मेजर जनरल हडसन बौखला गया और वह जनरल विलसन से इजाजत लेकर शाहजादों के कत्ल के लिए रवाना हो गया। मेकडानल्ड उसके साथ था। हडसन मकबरे के बाहर खड़ा हो गया और शाहजादों को इतला भेजी मैं आपको गिरफ्तार करने आया हूं। शहजादों ने भी अपने पिता की तरह दो घंटे तक हुज्जत की कि अगर हमारी जानों की जिम्मेदारी की जाए तो हम आत्मसमर्पण कर सकते हैं वरना नही। शहजादों के रफीकों ने सलाह दी कि तैमूर खानदान के लोग इस तरह मजबूर होकर कैद नही हुआ करते। तलवार उठाते हैं और लड़ते हैं। शहजादों को उनकी यह सलाह पसंद आ गयी किंतु मिर्जा इलाही बख्श की बातों में आकर वे हडसन के साथ रवाना हो लिए। हडसन उन्हें लेकर दिल्ली की ओर रवाना हुआ। दिल्ली जब एक मील दूर रह गयी तो उसने शाहजादों को रथ से उतरने का आदेश दिया। आदेश सुनते ही शहजादे एक दूसरे को हैरत से देखने लगे। उनके यह ख्वाबों ख्याल में भी नही था कि वे इस जगह कत्ल कर दिये जाएंगे।

हडसन ने उन्हें अपने शाही लिबास उतारने का आदेश दिया और एक सवार से भरी कड़ाबीन मांगी। उसे हाथ में लेकर उसने तड़ातड़ तीन फायर किये। गोलियां शहजादों के सीनों में लगीं और वे हाय धोखा कहकर धूल में लौटने लगे और कुछ देर बाद ठंडे हो गये। हडसन उनके तड़पने और खाको खून में लौटने को खुशी के चेहरे से देखता रहा। जब वे मर गये तो उनकी लाशों के सरे बाजार फांसी पर एक रात और एक दिन लटकाए रखा। एक अन्य मत के अनुसार मिर्जा मुगल और मिर्जा खिजर सुल्तान और मिर्जा बकर भी बहादुर शाह के साथ गिरफ्तार हुए और जब कैदी मौजूदा जेलखाने के करीब पहुंचे तो हडसन ने बादशाह जीनत महल और जमाबख्त की पालकियों को एक तरफ ठहरा दिया और शहजादों को अपने हाथों से कत्ल करके एक चुल्लू खून का पिया और कहा कि अगर मैं इनका खून न पीता तो मेरा दिमाग खराब हो जाता क्योंकि इन लोगों ने मेरी कॉम की बेबस औरतों और बच्चों के कत्ल में हिस्सा लिया था। शहजादों  की लाशें कोतवाली के सामने लटकायीं गयीं और जेलखाने के सामने खूनी दरवाजे पर उनके सर लटका दिये गये यह वही दरवाजा है जिस पर कभी दारा और अब्दुल रहीम खान खाना के बेटों के सर भी लटकाये गये थे। वाकियात दारूल हुकूमत के अनुसार नादिरशाह ने जब 1739 में दिलली को लूटा तो इसी दरवाजे के सामने बाशिंदगाने दिल्ली का बड़ा कत्लेआम हुआ इसलिए इसे खूनी दरवाजा कहा जाता है। ख्वाजा हसन निजामी देहलवी के लेख के अनुसार इस दरवाजे की दीवार खारा पत्थरों की है और खारा में लोहे का असर होता है जो बरसात में अपना सुर्ख जंग बहाया करता है। चुनांचे इसकी दीवार पर अब तक सुर्ख धब्बे पड़े नजर आते हैं जिनको देखकर लोग कहते हैं कि ये शहजादों के खून के निशान हैं जिन्हें खुदा ने कयामत के लिए महफूज रखा है। लार्ड राबर्ट ने शहजादों के कत्ल पर तल्ख टिप्पणी की है। लार्ड राबर्ट वही शख्स हैं जो बाद में हिंदुस्तान के कमांडर इन चीफ हुए और जंग यूरोप के जमाने में उनका इंतकाल हुआ। गदरन सन 1857 में वह खुद मौजूद थे। वह लिखते हैं-हडसन ने यह काम करके अपनी नेकनामी में बट्टा लगा दिया। उसने शहजादों को बेजरूरत मार डाला।

(साभार)

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