गांधी का पूरा हाथ था स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे अब्दुलराशिद पर


तारीख 23 दिसंबर 1926 । दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र में दोपहर के समय स्वामी श्रद्धानंद अपने घर में आराम कर रहे थे। वो बेहद बीमार थे। तब वहां पहुंचा एक व्यक्ति। नाम अब्दुल रशीद। उसने स्वामी जी से मिलने का समय मांगा। स्वामी जी ने समय दे दिया। वो उनके पास पहुंचा उन्हें प्रणाम किया और देसी कट्टे से 4 गोलियां स्वामी जी के शरीर में आर-पार कर दीं। स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने वहीं दम तोड़ दिया। इस तरह भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद ने इस कांड को अंजाम दिया ।
अब ओवैसी बंधुओं , मिस्टर कमल हासन और सेकुलर गैंग के सदस्यों को जानना होगा कि *इस महात्मा (गांधी) से भी पहले एक और महात्मा (स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती) की निर्मम हत्या हुई थी और इस राक्षसी कांड को अंजाम दिया था इस्लाम को मानने वाले अब्दुल रशीद ने ।
इस जघन्य कांड को जानने से पहले आपको ये जानना ज़रूरी है कि स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती थे कौन ?
कितना दुखद है कि आज इस महान व्यक्तिव का परिचय भी करवाना पड़ता है, क्योंकि हम तो अपने इतिहास और अपने अतीत से भागने लगे हैं…. खैर, स्वामी श्रद्धानन्द 1920 के दौर में हिंदुओं के सबसे बड़े धार्मिक गुरू थे… आर्य समाज के प्रमुख थे और उनकी लोकप्रियता के सामने उस दौर के शंकराचार्य भी उनके सामने कहीं नहीं ठहरते थे… लेकिन वो केवल हिंदुओं के आराध्य ही नहीं थे, महान स्वतन्त्रता सेनानी भी थे…
खैर… अब जानिए… भारत के पहले आतंकवादी मुस्लिम अब्दुल रशीद ने स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या क्यों की थी ???
दरअसल स्वामी श्रद्धानन्द ने हिंदू धर्म को इस तरह से जागृत कर दिया था कि पूरी दुनियां हिल गई थी… वो हिंदू धर्म की कुरुतियों को दूर कर रहे थे, नवजागरण फैला रहे थे… और उन्होने चलाया था “शुद्धि आंदोलन” जिसकी वजह से भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद ने उनकी हत्या की।
शुद्धि आंदोलन अर्थात् वो लोग जो किसी वजह से हिंदू धर्म छोड़ कर मुस्लिम या ईसाई बन गए हैं, उन्हे स्वामी श्रद्धानन्द वापस हिंदू धर्म में शामिल कर रहे थे… इसे आज की भाषा में घर वापसी कह सकते हैं… ये आंदोलन इतना आगे बढ़ चुका था कि धर्मांतरण करने वाले लोगों की चूलें हिल गईं… *स्वामी जी ने उस समय के यूनाइटेड प्रोविंस (आज के यूपी) में 18 हज़ार मुस्लिमों की हिंदू धर्म में वापसी करवाई… और ये सब कानून के मुताबिक हुआ… कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों को लगा कि तब्लीग में तो धर्मांतरण एक मज़हबी कर्तव्य है लेकिन एक हिंदू संत ऐसा कैसे कर सकता है ??? तब कांग्रेस के नेता और बाद में देश के राष्ट्रपति बने डा० राजेंद्र प्रसाद ने अपनी किताब “इंडिया डिवाइडेट (पृष्ठ संख्या 117)” में स्वामी के पक्ष में लिखा कि “यदि मुसलमान अपने धर्म का प्रचार और प्रसार कर सकते हैं तो उन्हे कोई अधिकार नहीं है कि वो स्वामी श्रद्धानंद के गैर हिंदुओ को हिंदू बनाने के आंदोलन का विरोध करें”… लेकिन कुछ कट्टरपंथियों की नफरत इतनी बढ़ चुकी थी कि वो स्वामी जी की जान के प्यासे हो गए… नतीजा एक दिन भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद से स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या करवा दी गई।
आज भी कमलेश तिवारी जी की हत्या कर दी जाती है, नरसिंहानंद स्वामी के ऊपर सुपारी ली जा रही है…. कुछ भी बदला नही है ।
अब आगे क्या हुआ…
भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद को जब हत्या के आरोप में फांसी सुना दी गई तो… कांग्रेस के नेता आसफ अली ने उसकी पैरवी की…
30 नवम्बर, 1927 के ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के अंक में छपा था कि स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे अब्दुल रशीद की रूह को जन्नत में स्थान दिलाने के लिए देवबंद में दुआ मांगी गई कि “अल्लाह मरहूम (आतंकी अब्दुल रशीद) को अलाये-इल्ली-ईन (सातवें आसमान की चोटी पर) में स्थान दें।”
आज भी कांग्रेस आतंकियों के केस लड़ रही है और शहाबुद्दीन जैसों की मजारें बनाई जा रही है ।
लेकिन सबसे चौंकाने वाली थी महात्मा गांधी की प्रतिक्रिया… स्वामी जी की हत्या के 2 दिन बाद गांधी जी ने गुवाहाटी में कांग्रेस के अधिवेशन के शोक प्रस्ताव में कहा कि – “मैं अब्दुल रशीद को अपना भाई मानता हूं… मैं यहां तक कि उसे स्वामी श्रद्धानंद जी की हत्या का दोषी भी नहीं मानता हूं… वास्तव में दोषी वे लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे के खिलाफ घृणा की भावना पैदा की… हमें एक व्यक्ति के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए… मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूं”।
ये था तुष्टिकरण।
यह लेख पूर्ण तथ्यों पर आधारित है। आज यह पोस्ट इसलिए, क्योंकि कुछ लोग, हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए, कुछ भी बयानबाजी किये जा रहे हैं, देश की जनता को सच जानना होगा । समझना होगा.…

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