राष्ट्रहित से ऊपर कुछ नहीं, अब यह परिवेश बनना ही चाहिए

मुझे एक बात रह रह कर परेशान करती है कि हमारी राष्ट्रीय सोच ,हमारी राष्ट्रीय जागृति, हमारी राष्ट्र भक्ति, हमारा राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना, हमारा राष्ट्र जागरण का पवित्र भाव, हमारे राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व एवं कर्तव्य आदि के भाव बड़ी तेजी से क्यों धूमिल होते जा रहे हैं ? हमारे लिए राष्ट्र प्रथम क्यों नहीं रहा ? क्यों हमारे बीच से ही कुछ लोग उठकर ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’- इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह’-  का शोर मचाने लगे? और क्यों कुछ हमारे ही लोग ऐसी आवाज लगाने वालों का समर्थन करने लगे ? क्यों हमारे ही देश के कुछ बड़े राजनीतिक दल और उनके नेता देश की विघटनकारी शक्तियों का साथ देते हुए दिखाई दे रहे हैं ? जब इन प्रश्नों पर विचार करता हूं तो बहुत पीड़ा होती है ।
आपको इस देश  में ऐसे व्यक्ति भी मिल जाएंगे जो राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हैं और उसे प्राथमिकता देते हैं। वह समझते हैं कि अगर राष्ट्र है, तो हम हैं। राष्ट्र नहीं तो हम भी नहीं। उनकी इस प्रकार की पवित्र सोच हमारी राष्ट्रीय सोच को मजबूत कर सकती है। परंतु दुर्भाग्य का विषय है कि ऐसे लोगों की ऐसी पवित्र सोच को यहां बढ़ावा नहीं दिया जाता। हमारे देश की आजादी की लड़ाई के क्रांतिकारी और देशभक्त लोग अपने आप में ही राष्ट्र बन गए थे। वे जागते हुए राष्ट्र के  प्रतिमान थे। उन्हें देखकर लोग राष्ट्रभक्ति के भाव से सराबोर हो जाते थे। आज भी हमें ऐसे ही राष्ट्रवादी चिंतन के प्रतिमान व्यक्तित्वों की आवश्यकता है। जिनका राजनीति में सर्वथा अभाव सा होता हुआ दिखाई दे रहा है ।

  राष्ट्रभक्ति के भावों से सराबोर राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रतिमान बने लोग प्रतिक्षण राष्ट्र जागरण का कार्य किया करते हैं।
जो लोग इस देश में बाहर से आए उनमें से कई ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने आप को भारत देश की एकता और अखंडता के साथ एकाकार कर लिया है । वे राष्ट्र में ऐसे घुल मिल गए हैं जैसे दूध में शक्कर मिल जाती है और मिलकर दूध को मीठा कर देती है । इसके लिए सबसे उत्तम उदाहरण हमारे सामने पारसी समाज है। जिसने आज तक देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में अपना प्रशंसनीय योगदान दिया है और कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया जो उनकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा को संदिग्ध करता हो। उन्होंने इस समाज को समरसता पैदा करने वाला और उन्नतिशील बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है। पारसियों के अतिरिक्त अन्य समाज भी हैं, जिन्होंने इस देश को अपना राष्ट्र समझा है।
ऐसे लोगों के लिए राष्ट्रभक्ति प्रथम एवं पावन उत्तरदायित्व है, जिसका पालन करना वह अपना राष्ट्र धर्म समझते हैं। ऐसे ही लोगों के बलिदानों से, विचारों से भारत राष्ट्र सबल, सक्षम, समर्थ एवं संपुष्टित होता है। जिन व्यक्तियों ने राष्ट्र को प्राथमिकता एवं सर्वोच्चता प्राप्त कराई है, ऐसे ही लोग इतिहास पुरुष हो जाते हैं। ऐसे ही लोग इतिहास में जगह पा जाते हैं।
दूसरी ओर ऐसे व्यक्ति और समाज भी हैं जिनके लिए राष्ट्र प्रथम नहीं है । ऐसे व्यक्तियों ने और समाज ने इस देश को केवल अपना धंधा करने के लिए और नष्ट करने के लिए अनेक कार्य किए हैं।उनके लिए राष्ट्र प्रथम न होकर अपने स्वार्थ प्रथम हैं।
ऐसे व्यक्ति इस देश की एकता ,अखंडता एवं संस्कृति को नष्ट करने के लिए सदैव ही तत्पर रहते हैं। वह ऐसा कोई भी अवसर गंवा देना नहीं चाहते जिससे कि राष्ट्र को क्षति कारित हो। ऐसे ही अधम व्यक्ति देश का विभाजन या विखंडन करने के लिए उत्तरदाई  ठहराये जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए भारत माता जमीन का एक टुकड़ा मात्र है । उनका भावनात्मक लगाव इस देश के साथ या इसकी मिट्टी के साथ कभी नहीं हुआ और ना हो सकता। क्योंकि उनके लिए ‘कौम’ पहले हैं। अपने स्वार्थ के लिए वह कभी कौम का अर्थ ‘नेशन’ से लगाते  दिखाते हैं तो कभी अपनों के बीच खड़े होकर कौम का अर्थ अपनी जाति, बिरादरी या संप्रदाय से लगाते व दिखाते हैं । ऐसी दोगली मानसिकता ने देश के राष्ट्रीय चरित्र को बहुत अधिक दूषित व प्रदूषित किया है।
भारत की जनता की सहिष्णुता, सहानुभूति, स्वीकार्यता  कितनी अनूठी है कि वह विदेशी आक्रांताओं को महान बताकर अपने इतिहास की स्वनिर्मित भूलभुलैया में भटक जाती है तथा समाज को तोड़ने वाले धर्म और संस्कृति को महान बताने लगती है ।  वह इस बात पर भी कोई विरोध व्यक्त नहीं करती की मदर टेरेसा को भारत रत्न क्यों दिया जा रहा है ? जिसने देश के धर्म और संस्कृति को विनष्ट करने का अपने जीवन में घातक प्रयास किया था । यदि किसी ईसाई देश में ऐसा ही काम कोई गैर ईसाई अपने धर्म और अपनी संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए करता तो उसे ऐसा सम्मान कभी नहीं मिलता।
ऐसे व्यक्ति राजनीति व अफसरशाही में आपको अनेक मिल जाएंगे जो अपनी दोगली मानसिकता के चलते अपने देश के इतिहास को समझने का समझ कर भी प्रयास नहीं करते । अपनी देश विरोधी छवि को स्वच्छ बनाने के लिए अथवा सुधारने के लिए ऐसे लोग कभी प्रयास नहीं करते, बल्कि वह अपने जैसे लोगों को मिलाकर बहुमत का जुगाड़ लगाने के प्रयास में सदैव रत रहते हैं। इसलिए राष्ट्रीय भावना दूर होती चली जाती है और स्वार्थ प्राथमिक होकर ऊपर आ जाता है।
वैश्विक परिवेश में निरंतर परिवर्तन होता रहता है। राष्ट्र के ऊपर अनेक संकट आए होते हैं। जब राष्ट्र की एकता, अखंडता और संस्कृति को नुकसान पहुंचाने के लिए बाहरी शक्तियां अपना प्रयास करती रहती है। ऐसी बाहरी शक्तियों को, ऐसी विदेशी शक्तियों को हमारे देश में बैठे हुए आस्तीन के सांप समर्थन देते हैं ।उनको जरा भी आभास नहीं होता कि :-

अगर डूबेगी किश्ती तो डूबेंगे  सारे ।
न तुम ही बचोगे न साथी तुम्हारे।।

दूसरे शब्दों में:–

वतन की फिक्र कर नांदान मुसीबत आने वाली है।
कि तेरी बर्बादियों के चर्चे हैं आसमानों में।।

हमें इस बात पर भी चिंतन करना चाहिए कि कश्मीर को देश से अलग करने की साजिश नेशनल  कॉन्फ्रेंस, पीडीपी व अन्य दलों के नेता रच रहे हैं।बंगाल को बृहत बंगाल के रूप में बनाने की साजिश रची जा रही है।केरल में नई प्रकार की साजिश हो रही हैं।
महबूबा मुफ्ती कश्मीर में तालिबानीकरण का मंसूबा पाले हुए हैं। वह तालिबान की सहायता से कश्मीर को भारत से अलग करके अपने जीवन में अलग देश की प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं। इस कार्य को पूरा करने में सहायक कांग्रेस , कम्युनिस्ट , नेशनल कांफ्रेंस ,गुपकार गठजोड़ इनके सत्तालोलुप चरित्र और अवसरवाद के उदाहरण हैं। ये ही चरित्र ऐसे हैं जिन्होंने मोहम्मद गौरी को बुलाकर भारतवर्ष को नष्ट करने में अपनी भूमिका निभाई थी। परिवर्तित परिवेश में चाहे चेहरे बदल गए हो, परंतु चाल और चरित्र वही है जो कभी गोरी जैसे विदेशी आक्रमणकारियों को आमंत्रित करने वाले लोगों की रही थी। हथकंडा, एजेंडा और झंडा सब वही हैं केवल झंडों के डंडे बदले हैं। ऐसे जयचंद और मीर जाफर आज भी भारत में खुले घूम रहे हैं। लोकतंत्र और मानव अधिकार ऐसे लोगों के लिए महत्वपूर्ण नहीं होते।जबकि लोगों को यह भी मालूम है कि तालिबान मध्यकालीन मानसिकता वाला महिला और लोकतंत्र विरोधी एक क्रूर आतंकी संगठन है। लेकिन ऐसे ही आतंकी संगठन के माध्यम से पीडीपी की मुखिया अपना उद्देश्य साधना चाहती हैं। ऐसी ही विचारधारा के सपा के सफीक उर रहमान वर्क और शायर मुनव्वर राना भी हैं। ऐसे ही लोगों ने
गंगा जमुनी तहजीब बताकर भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को नष्ट किया गया है ।यह तथ्य किसी से छिपा नहीं।
जिन लोगों को राष्ट्र के प्रति प्रेम और लगाव नहीं है ऐसे लोग राजनीति में अपने आप को देश का कर्णधार मनवाने के लिए, सिद्ध करने के लिए अथवा बनने के लिए प्रयासरत रहते हैं तथा भारत की जनता ऐसे लोगों को भी अपना मत देती है। क्योंकि दुष्टों एवं मूर्खों की कमी नहीं है।
जबकि ऐसे लोग देशद्रोही घोषित किए जा कर उनके विरुद्ध कठोर कानूनी कार्रवाई चला कर उन्हें जेल में डाल देना चाहिए। राष्ट्रद्रोह का कानून व्यापक एवं संपूर्ण होना चाहिए।
निसंदेह उसमें यथावश्यक परिवर्तन अथवा संशोधन भी करना पड़े। परंतु राष्ट्र के विरुद्ध आवाज उठाने वाले, राष्ट्र को तोड़ने की साजिश रचने वाले, राष्ट्र को टुकड़े-टुकड़े कराने की मांग करने वाले अथवा राष्ट्र के अतिरिक्त राष्ट्र के बाहर के देशों में अपनी निष्ठा ज्ञापित करने वाले, ऐसे सभी लोग राष्ट्रद्रोही घोषित किए जाने चाहिए । उनके विरुद्ध ट्रायल चलाकर सजा दिलाई जानी चाहिए।
हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है कि यदि तुर्की में कोई कार्य होता है तो उसकी प्रशंसा भारत में होती है। पाकिस्तान यदि तुर्की को अथवा अफगानिस्तान को या कश्मीर को समर्थन देता है अथवा अन्य कुछ करता है तो उसकी प्रशंसा में भारत के कई लोग आगे आ जाते हैं।
अफगानिस्तान में जिस प्रकार से घटनाक्रम हुआ है और तालिबान के हाथ सत्ता 20 वर्ष बाद पुनः अमेरिका द्वारा सौंपकर  के चले जाने के पश्चात विश्व पटल पर अमेरिका की साख खराब हुई है उसे भी हमारे देश में कई लोग  तालिबान के द्वारा लड़ी जा रही देश की आजादी के साथ जोड़कर देख रहे हैं।
जबकि सच यह है कि अफगानिस्तान में इस समय मानवता हारी है और दानवता वहां पर हावी हो चुकी है। यद्यपि इस सारे खेल में अमेरिका ने बहुत निराशाजनक प्रदर्शन किया है और विश्व स्तर पर अपनी किरकिरी भी कराई है। परंतु  हमारे देश से यदि तालिबानियों के समर्थन में आवाज उठती है तो यह हमारे लिए चिंता और चिंतन का विषय है । भारत के नेतृत्व को इस समय बहुत ही सावधान रहने की आवश्यकता है । एक भी विदेशी शरणार्थी इस समय देश में प्रवेश पाने में सफल नहीं होना चाहिए। क्योंकि ये लोग हमारे देश के राष्ट्रीय चरित्र को और भी विद्रूपित करते हैं।
जो लोग भारतवर्ष को अपना राष्ट्र नहीं मानते वह वही लोग हैं जो खाते तो भारत का है पर गीत पाकिस्तान के गाते हैं। जो राम की भूमि पर रहकर रोम के गीत गाते हैं और जो काशी में जन्म लेकर भी काबा के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हैं । ऐसे लोगों को किसी भी कीमत पर सरकारी या राजनीतिक संरक्षण प्राप्त नहीं होना चाहिए। इनके मौलिक अधिकारों पर भी यदि प्रतिबंध लगाया जाने की आवश्यकता हो तो वह भी किया जाना चाहिए।  हम सब के लिए राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिए। राष्ट्रहित से ऊपर कुछ नहीं, अब यह परिवेश बनना ही चाहिए। जो लोग इस प्रकार की पवित्रतम भावना के विपरीत कार्य कर रहे हैं वे देश के लिए अभिशाप हैं। उनकी इस प्रकार की भावनाओं को राष्ट्र विरोधी भावना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं समझा जा सकता।
आस्तीन के सांप का फन तो कुचलना पड़ेगा। तभी देश सुरक्षित रह पाएगा।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत समाचार पत्र

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