डीयू और यूजीसी विवाद
दिल्ली विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के बीच फोर ईयर अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम (एफवाईयूपी) को लेकर चले विवाद में सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को हुआ तो वे हैं लाखों स्टूडेंट। लेकिन राहत की बात यह है कि फिलहाल यह मुद्दा फौरी तौर पर सुलझ चुका है। एक बात तो साफ है कि यूजीसी द्वारा उठाया गया कदम राजनीतिक जरूर है। क्योंकि अगर चार वर्षीय पाठ्यक्रम को खत्म करना मकसद था तो इसे उसी साल करना था, अगले साल तक इसका इंतजार नहीं किया जा सकता था। इसका कारण यह है कि अगले साल वे स्टूडेंट्स जो 2013 में इसका हिस्सा बन चुके थे, उनके ही बचे एक साल में दो साल की पढ़ाई समाहित करना बहुत मुश्किल होता। लेकिन जिस तरह यूजीसी ने कटऑफ लिस्ट आने के समय इस मुद्दे को तूल दिया है, वह थोड़ा सही नहीं है। अगर यूजीसी ने पिछले एक साल के अनुभव के आधार पर चार वर्ष के पाठ्यक्त्रम को हटाने का मन बना ही लिया था तो वे यह काम दो महीने पहले भी कर सकती है।
यूजीसी एक स्वायत्त संस्था है और यूजीसी के इस कदम के पीछे नई सरकार का कोई दबाव नहीं होगा। सवाल यह है कि चार वर्षीय पाठ्यक्त्रम क्यों बंद होना चाहिए। जैसा कि कुछ शिक्षाविदों का कहना है कि चार वर्षीय कोर्स लागू करने का मुख्य उद्देश्य विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारतीय स्टूडेंट्स उपलब्ध कराना था। पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालयों में स्नातक कोर्स के लिए 16 साल की शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता होती है, जबकि भारतीय विश्वविद्यालयों में यह योग्यता 123 यानी 15 साल की ही होती है। ऐसे में विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारतीय विद्यार्थियों को प्रवेश देने में कठिनाई होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिस तरह पिछली सरकार ने सौ से अधिक अमेरिकी शिक्षण संस्थाओं को भारत आने की छूट दी है, उसी के चलते उनकी इस कठिनाई को दूर करने के लिए चार वर्षीय पाठ्यक्रम शुरू किया गया था। लेकिन कुछ चुनिंदा विदेशी विश्वविद्यालयों को फायदा पहुंचाने के लिए हमे अपनी शैक्षणिक प्रणाली के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय में एफवाईयूपी की शुरुआत के वक्त जिस तरह से पाठ्यक्त्रम निर्धारित किया गया था, उसका तरीका भी सवालों से घिरा हुआ है। कुछ कोर्सेज के लिए पाठ्यक्त्रम निर्धारित करने के लिए शिक्षकों को सिर्फ पांच दिन का ही समय मिला था। ऐसे में समझा जा सकता है कि पाठ्यक्त्रमों की की गुणवत्ता कैसी है।
एफवाईयूपी के पीछे तर्क था कि इससे हमारे स्टूडेंट्स के ान में वृद्धि होगी, लेकिन जल्दबाजी में बने पाठ्यक्त्रम का ढांचा वाकई अधूरा है और इसमें गहराई और वैल्यू एडिशन का अभाव है। उल्लेखनीय है कि एफवाईयूपी का मतलब 31 होता है यानी पश्चिम में इसके तहत छात्र-छात्रएं तीन साल पढ़ाई करते हैं और आखिरी के एक साल रिसर्च वर्क के लिए है, लेकिन हमारे यहां तो यह भी उल्टा हो गया। यहां एक साल ऐसे फाउंडेशन कोर्स को समर्पित कर दिया गया, जिसमें पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्त्रम स्कूल लेवल का है। इस तरह एफवाईयूपी अपने मूल उद्देश्य से ही भटक गया। अमेरिका में शैक्षणिक व्यवस्था के तहत स्टूडेंट्स को ऐच्छिक विषय और ऐच्छिक विषय कॉम्बिनेशन चुनने की आजादी होती है, लेकिन हमने इस सुविधा को अपनी सुविधानुसार संशोधित करते हुए ऐच्छिक विषयों के कॉम्बिनेशन को अपने अनुसार तय कर दिया। फाउंडेशन कोर्स के नाम पर कई विषयों को जोड़ दिया गया है। बहरहाल, एक बात तय है कि शिक्षा को लेकर जिस तरह का मजाक किया गया है वह छात्रों के हित का जरूर है लेकिन राजनीतिक रंग में भी ळै। जो आने वाले समय में बेहद खतरनाक होगी।
दीपक कुमार