वामपंथी इतिहासकारों के सेकुलर षड्यंत्र का शिकार चक्रवर्ती आर्य सम्राट पांडव और उनकी विरासत हस्तिनापुर : आरटीआई ने किया खुलासा

इतिहास के बारे में किया गया एक गंभीर षड्यंत्र
___________________________________________

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, पुरातत्व विभाग में आज भी महत्वपूर्ण कार्यकारी पदों पर तथाकथित सेकुलर वामपंथी इतिहासकार पुरातत्व वेता बैठे हुए हैं| जिनके लिए इतिहास पुरातत्व अनुसंधान केवल मुगल काल के नमूनों अकबर के हरम इबादत खाने , मजारों के उत्खनन अनुसंधान पर ही शुरू होता है वहीं पर खत्म होता है बहुत बढ़कर नास्तिक बुद्ध कालीन स्तूप मठों की खोज पर सारा पैसा खर्च हो जाता है| आजादी से लेकर आज पर्यंत एक सोचे समझे षड्यंत्र के तहत आज तक आर्य वैदिक सभ्यता की धुरी महाभारत काल के केंद्र हस्तिनापुर पर अनुसंधान कार्य नहीं हो पाया है|

हमने सूचना के अधिकार के तहत ऑनलाइन आईटीआई 2 बिंदुओं पर संस्कृति मंत्रालय के अधीन पुरातत्व विभाग भारत सरकार से जानकारी मांगी थी प्रथम बिंदु यह था महाभारत कालीन स्थल हस्तिनापुर में कब पुरातत्व विभाग ने खुदाई की वहां से क्या प्राप्त हुआ?

बड़ी चौंकाने वाली जानकारी मिली जो पुरातत्व विभाग के नकारेपन भारत सरकार के नाम के संस्कृति मंत्रालय की कार्यशैली की पोल खोलती है| पुरातत्व विभाग के अनुसार हस्तिनापुर मेरठ में केवल एक बार सन 1950- 52 में खुदाई की गई है| आपको घोर आश्चर्य होगा पहली ही खुदाई में ईसा पूर्व 11वीं शताब्दी से लेकर 15 शताब्दी तक के इतिहास काल की जानकारी मिली… अर्थात 3100 साल पुराने विभिन्न काल खंडों के नमूने प्राप्त हुए… फिर किसी भी सरकार के अधीन पुरातत्व विभाग ने खुदाई क्यों नहीं की?

पहली खुदाई में जब 3100 पुरानी सामग्री मिल सकती है तो दो-तीन खुदाई यदि और की जाती तो पांडवों कुरुवंश के प्रतापी शासकों की वैभवशाली शक्तिशाली नगरी हस्तिनापुर के अवशेष अवश्य मिलते भले ही आज वहां नास्तिक जैनियों के मंदिर बने हुए हैं| 70 साल हो गए हस्तिनापुर में आज तक ऐतिहासिक उत्खनन पुरातात्विक अनुसंधान दोबारा क्यों नहीं हुआ?

आरटीआई का दूसरा बिंदु दिल्ली अर्थात पांडवों की इंद्रप्रस्थ को लेकर उनके महल को लेकर था जिस पर 16 वी शताब्दी में शेरशाह सूरी ने दीन पनाह नगर बसाया जिसके बारे में कहा जाता है दिल्ली का पुराना किला पांडवों के किले के ऊपर बनाया गया है| यहां स्थिति हस्तिनापुर के ठीक विपरीत है पुराने किले में 1954- 55 1969-73 2013- 14 ,2017 -18 में चार बार उत्खनन हुआ चारों बार के उत्खनन में इतिहास की आठ नहीं तह मिली है… उत्खनन से मौर्य, सुंग ,कुषाण, गुर्जर प्रतिहार , सल्तनत काल मुग़ल कालीन पुरातात्विक नमूने मिले हैं|

बड़े ताज्जुब की बात है जब प्रत्येक बार पुराने किले की खुदाई में प्रत्येक बार प्राचीन इतिहास की परत मिल रही है तो फिर खुदाई जारी क्यों नहीं रहती कौन है जिस के आदेश पर खुदाई रुक जाती है?

एक और निष्कर्ष निकलता है मुगलों ने किसी को नहीं बख्शा अर्वाचीन बौद्ध जैनियों के साथ-साथ प्राचीन आर्य संस्कृति के स्थलों को भी नष्ट कर दिया | लेकिन आक्रांता कितना भी क्रूर शातिर हो जमीन में मूल संस्कृति गौरव अवशेष शेष रह जाते हैं लेकिन भारत का दुर्भाग्य है आज तक महाभारत काल के स्थलों का पुरातात्विक अनुसंधान पूरी इमानदारी गंभीरता से नहीं हो पाया है|

Online RTI आवेदन के अंत में बड़ी ही बेशर्मी से पुरातत्व विभाग के पब्लिक इनफॉरमेशन ऑफीसर कह रहे हैं कि यह दोनों स्थल महाभारत से जुड़े हुए हैं ऐसा विश्वास किया जाता है|

आर्य सागर खारी✍✍✍

Comment: