महात्मा बुद्ध के ज्ञान का प्रकाश आज भी संसार में उजाला कर रहा है

डॉ. प्रभात कुमार सिंधल

महात्मा गौतम बुद्ध ने कभी अपनी मूर्ति बनाने, पूजा करने को नहीं कहा और न ही किसी मत या धर्म का प्रतिपादन किया परंतु उनके अनुयायियों ने इसे बौद्ध धर्म बना कर उनकी मूर्तियां स्थापित कीं और पूजा करना शुरू किया।

अहिंसा एवं करुणा से ही मानवता, ज्ञान से तृष्णाओं का त्याग कर निर्वाण की प्राप्ति, धार्मिक कर्मकांडों की जगह आत्मदीपोभव से मुक्ति का मार्ग, क्षणिकवाद, विश्व प्राकृतिक नियमों से चलता है, आलौकिक तर्क के स्थान पर विवेक एवं तर्क, राग-द्वेष-स्वार्थ-अहंकार का त्याग और सत्ता एवं सम्पत्ति प्राप्ति के लिए अनुचित मार्ग अपनाना जैसे धार्मिक, आध्यात्मिक एवं समाजिक सिद्धांतों का महात्मा बुद्ध ने प्रतिपादन कर समाज को आलोकित किया। इनकी पालना के लिए अष्टांगिक मार्ग बताते हुए जीवन में मध्यम मार्ग अपने पर न केवल बल दिया वरण धर्म प्रवर्तन के माध्य्म से इनका प्रचार भी किया।
अपने युग की सामाजिक क्रांति के प्रणेता महात्मा बुद्ध जिनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ था, का जन्म भारत में लुम्बनी (वतर्मान में नेपाल) नामक स्थान पर इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्यकुल के राजा शुद्धोधन वंश में ईसा पूर्व 563 में हुआ था। जब उन्होंने समाज में व्याप्त दुखों, धार्मिक कर्मकांडों, स्त्रियों की दशा, छुआछूत, सामाजिक कुरूतियों को देखा तो उनका मन अशान्त हो गया और वे 27 वर्ष की युवा आयु में राजमहल के समस्त सुखों एवं परिवार का परित्याग कर शांति की खोज में निकल पड़े।

सिद्धार्थ ने कई सालों तक वनों में जगह-जगह तपस्या की पर शांति का मार्ग नहीं मिला। भ्रमण करते-करते वे बोधगया जा पहुँचे जहां उन्होंने एक वृक्ष के नीचे बैठ कर कठोर तपस्या की। किवदंती है कि उधर से कुछ महिलाएं जा रही थीं। उनमें से एक ने कहा, ”सखी वीणा के तारों को इतना मत कसो कि वे टूट जाएं और इतना ढीला भी मत छोड़ो कि वे बज न सकें।” सिद्धार्थ ने जब ये सुना तो उन्हें माध्य्म मार्ग का ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्हें शांति का मार्ग मिल गया और यहीं से वे गौतम बुद्ध के नाम से लोकप्रिय हो गए। जिस वृक्ष के नीचे उन्हें शांति के प्रकाश की ज्योति मिली वह बोधिवृक्ष कहलाया।

महात्मा बुद्ध ने शांति प्राप्ति के लिए अष्टांगिक मार्ग का सिद्धांत प्रतिपादित किया। इनमें प्रथम दो मार्गों को प्रज्ञा, अंतिम दो मार्गों को समाधि एवं शेष चार मार्गों को शील कहा गया। अष्टांगिक मार्ग के सिद्धांत के अनुसार सम्यक दृष्टि- सत्य में विश्वास करना, सम्यक संकल्प-मानसिक एवं नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना, सम्यक वाक- किसी को नुकसान, दुख पहुँचाने वाला मिथ्या कथन नहीं करना, सम्यक कर्म- ऐसा कोई कार्य नहीं करना जिससे किसी को हानि व कष्ट हो, सम्यक आजीविका- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर गलत, अनुचित, गैर कानूनी रूप से व्यापार नहीं करना, सम्यक प्रयास- अपने में सुधार लाने का प्रयास करना, सम्यक स्मृति- ज्ञान को स्पष्ट रूप से देखने की मानसिकता एवं सम्यक समाधि- जीवन की अंतिम परिणीति निर्वाण प्राप्त करने के लिए योग्यता प्राप्त करना।
धर्म प्रवर्तन के माध्यम से बुद्ध ने 40 वषों तक अपनी शिक्षाओं-विचारों के प्रचार से लोगों में शांति, सत्य, अहिंसा की ज्योति फैलाई। उन्होंने अपने अनुयायियों और बौद्ध भिक्षुओं को संगठित कर उनमें एकता की भावना का विकास किया। इच्छाओं और तृष्णाओं पर नियंत्रण कर निर्वाण प्राप्ति का मार्ग बताया। बुद्ध आत्मा-परमात्मा के झमेले नहीं पड़ कर पीड़ित मानवता को पीड़ा और समस्याओं से मुक्ति दिलाने के संवाहक बने। लोगों को सदाचारी बनने के लिए मानवीय मूल्यों की स्थापना कर जीवन को सार्थक बनाने के भागीरथी प्रयास किये और धार्मिक एवं सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध आवाज बुलंद की।

बुद्ध के प्रेरणामयी मानवतावादी प्रवचनों ने लोगों को उद्वेलित किया और व्यापक रूप से लोग उनके समर्थक बन गए। उनके अहिंसा के सिद्धांत का तत्कालीन मग्ध सम्राट अशोक पर गहरा प्रभाव पड़ा और कलिंग युद्ध के नरसंहार से पीड़ित हो कर उन्होंने जय घोष की जगह धर्म घोष को अपना लिया। वे बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए और जीवन पर्यन्त धर्म प्रचार में लगे रहे। प्रजा के लिए हितकारी कार्य किये। यहीं से बौद्ध धर्म देश की सीमाओं के पार विश्व में चला गया। अनेक देशों ने इस धर्म को अंगीकार कर लिया। सम्राट अशोक ने जगह-जगह शिलालेख लगवाये और अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को भी विदेशों में धर्म प्रचार के लिये भेजा।
बुद्ध ने कभी अपनी मूर्ति बनाने, पूजा करने को नहीं कहा और न ही किसी मत या धर्म का प्रतिपादन किया परंतु उनके अनुयायियों ने इसे बौद्ध धर्म बना कर उनकी मूर्तियां स्थापित कीं और पूजा करना शुरू किया। आज न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी महात्मा बुद्ध की मूर्तियां, मठ, मंदिर, स्तूप, संग्रहालय देखने को मिलते हैं। वह स्थल जिनका सम्बन्ध बुद्ध से रहा वे पर्यटन के पसिद्ध केंद्र बन गए हैं जिन्हें देखने के लिये लाखों श्रद्धालु एवं पर्यटक हर साल आते हैं।
वर्तमान में आज जबकि समाज में चारों ओर अशांति है, हिंसा चरम पर है, असत्य का बोलबाला है, दुराचरण की पराकाष्ठा है, अधिक से अधिक सत्ता-सम्पत्ति पाने की भयंकर होड़ में करुणा और मानवता तिरोहित होती नजर आती है, भ्रष्टाचार आकंठ व्याप्त है और धर्म की आड़ में पाखंड सर्वविदित है ऐसे में जरूरत है महात्मा बुद्ध के ज्ञान की ज्योति की। उनकी शिक्षा और सिद्धांत आज के समय में पूर्ण प्रासंगिक हैं। जरूरत है समाज बुद्ध की मानवतावादी शिक्षाओं को पढ़े, समझे और जीवन में उतारे।

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