वैदिक सृष्टि संवत अथवा हिंदू नव वर्ष के पावन अवसर पर
आज वैदिक सृष्टि संवत के अनुसार 1अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 1 सौ 21वां वर्ष प्रारंभ हो रहा है । भारत में अनेक काल गणनायें प्रचलित हैं जैसे- विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी सन, ईसवीं सन, वीरनिर्वाण संवत, बंग संवत आदि। इसके अतिरिक्त संसार में भी अनेकों कैलेंडर प्रचलित हैं ,लेकिन यह सर्वमान्य सत्य है कि वैदिक सृष्टि संवत ही सबसे प्राचीन है । वैदिक सृष्टि सम्वत की प्राचीनता की स्वीकारोक्ति के पश्चात यह भी स्पष्ट हो जाता है कि संसार में सबसे अधिक पुरानी संस्कृति के संवाहक भी हम वैदिक हिंदू लोग ही हैं। जिस पर हमें गर्व होना चाहिए।
भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत पंचांग को दिया जाता है। विक्रम संवत् का आरंभ 57 ई.पू. में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ। उन्होंने इसी दिन अपना राज्याभिषेक कराया था ।भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और लोकप्रिय राजा के रूप में जाना जाता है। विक्रमादित्य के शासन से पहले उज्जैन पर शकों का शासन हुआ करता था। वे लोग अत्यंत क्रूर थे और प्रजा को सदा कष्ट दिया करते थे। विक्रमादित्य ने उज्जैन को शकों के कठोर शासन से मुक्ति दिलाई और अपनी जनता को भय मुक्त कर दिया। अपनी इस महान विजय के कारण उन्हें शकारि के नाम से भी जाना जाता है। अपने इसी महान शासक विक्रमादित्य की स्मृति में आज से 2077 वर्ष पूर्व विक्रम संवत पंचांग का निर्माण किया गया।
विक्रमादित्य की भांति ही हूणो के आक्रमणों से मुक्ति दिलाने का काम शालिवाहन ने किया था । उनका यह कार्य भी आज के दिन ही संपन्न हुआ था। शालिवाहन का एक नाम विक्रमादित्य भी था । यह 78 ईसवी में शासन कर रहे थे । राजा भर्तृहरि इन्हीं के बड़े भाई थे । उनके इस महान कार्य की स्मृति में शक संवत हमारे यहां आज भी प्रचलित है।
भारतवर्ष में ऋतु परिवर्तन के साथ ही हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है। चैत्र माह में शीतऋतु को विदा करते हुए और वसंत ऋतु के सुहावने परिवेश के साथ नववर्ष आता है। प्रकृति में सर्वत्र नव उल्लास छाया होता है । जिसे देखकर यह लगता है कि परिवर्तन अपना खेल खेल रहा है । जिसकी स्पष्ट अनुभूति हमें होती है । प्रकृति अपना नया रूप धारण कर रही होती है । नए ढंग से सज रही होती है । नए सृजन के लिए , नई रचना के लिए । इतना ही नहीं हमारे शरीर की त्वचा भी इन दिनों में अपना रंग बदलती है। पुरानी त्वचा मैल के साथ समाप्त होती है। नई त्वचा उसके स्थान पर आती है। गाय बैल अपने रोम गिराते हैं और उनके नए रोम निकल कर आते देखे जा सकते हैं । जबकि 1 जनवरी को ऐसा कोई परिवर्तन प्रकृति में या हमारे शरीर में दिखाई नहीं देता । स्पष्ट है कि हमारे वैज्ञानिक ऋषियों का चिंतन कहीं अधिक उत्कृष्ट है । ऐसे में आज के दिन हमें अपने ऋषियों के वैज्ञानिक चिंतन पर भी गौरव की अनुभूति होती है।
यह दिवस भारतीय इतिहास में अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है। यह भी एक मान्यता है कि आज ही के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसीलिए वैदिक हिन्दू-समाज भारतीय नववर्ष का पहला दिन अत्यंत हर्षोल्लास से मनाते हैं।
आज ही के इस पवित्र दिवस को हम श्री राम एवं युधिष्ठिर के राज्याभिषेक दिवस के रूप में भी मनाते हैं इसलिए दोनों महापुरुषों को भी आज नमन करने का दिन है। महर्षि दयानंद जी महाराज ने वैदिक संस्कृति से दूर कहीं अज्ञान अंधकार में भटकते भारत को फिर से राह दिखाने के लिए आर्य समाज जैसी पवित्र संस्था की स्थापना भी आज के दिन ही 1875 में की थी । जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बहुत ऊंचाई प्रदान की और इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत को आजादी दिलाने में महर्षि दयानंद के आर्य समाज ने सबसे अधिक भाग लिया । इसलिए आर्य समाज की स्थापना दिवस के इस पवित्र अवसर पर महर्षि को भी विनम्रता से स्मरण करना आवश्यक है । इसके अतिरिक्त संत झूलेलाल की जयंती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी का जन्मदिन भी आज ही है । अपने इन सांस्कृतिक महापुरुषों को भी हम पवित्र हृदय से सादर सादर स्मरण करते हैं।
कितने सारे शुभ संयोगों को अपने साथ समेटे हुए वैदिक हिंदू नव संवत्सर को न मना कर 1 जनवरी को जिस हर्ष और उल्लास का वातावरण भारतवर्ष में होता है उसे देख कर बहुत दुख होता है। जिन षड्यंत्रकारियों ने हमारे वैदिक हिंदू नव संवत्सर को भुलाने का कार्य किया है उनका अपना षड्यंत्र सफल होता हुआ दिखाई देता है। जब हम अपने नव संवत्सर के अवसर पर सृष्टि की प्राचीनता और पुरुषोत्तम रामचंद्र जी महाराज , युधिष्ठिर जी ,महर्षि दयानंद जी महाराज , झूलेलाल जी हेडगेवार जी जैसे महापुरुषों को स्मरण नहीं करते हैं । अपनी संस्कृति की महानता पर चिंतन ना कर इस दिन तो कहीं और अपने कार्यों में लगे होते हैं जबकि पूर्णतया वाहियात संस्कृति को परोसने वाले पश्चिमी ईसवी सन को मनाने के लिए उस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत
मा राकेश जी, नमस्ते। आप का लेख अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम अपनी वैज्ञानिक संस्कृति को उपेक्षित कर अवैज्ञानिक बातों का उत्सव कर लेते हैं। यद्यपि पश्चिम भी हमारी संस्कृति का अनुसरण करता रहा। वहॉं भी वर्ष का आरम्भ मार्च अप्रैल से ही रहा। सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर का मूल रूप है सप्तम्बर, अष्टम्बर , नवम्बर, दशम्बर। किन्तु अंग्रेजी राज्य के द्वारा यह कूट रचना थोप दी गई और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री का अंग्रेजी प्रेम हमारी संस्कृति का शत्रु बना।
Can you please share the source of these calculations? A introduction to Commentary on Vedas by Swami Dayananda Saraswati! Surya Siddhanta!