चमचे चुगलखोर-भाग-चार

तेरी काली करतूतों से तो, भरा पड़ा इतिहास।
मंथरा दासी बनके राम को, दिलवाया बनवास।

तू ही तो घाती जयचंद था, गोरी को दिया विश्वास।
डच, यूनानी, गोरे आये, जिनका रहा तू खास।

तुझको तो हत्या से काम, बूढा हो चाहे किशोर।
जय हो चमचे चुगलखोर।

घर दफ्तर विद्यालय, चाहे बैठा हो मंदिर में।
किंतु कतरनी चलती रहती, तेरे तो अंतर में।

दिल में गुस्सा नफरत तेरे, तू फिर भी दांत दिखाता है।
मौका लगते चरण चूम ले, दुम श्वान की तरह हिलाता है।

बात-बात पर देय बधाई, जरा से दुख में मुंह लटकाता है, मतलब हो तो करे नमस्ते, अन्यथा मुंह को छिपाता है।

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