“गुरुकुल, वेद एवं संस्कृत माता हमें इतना देती है कि हमारा जीवन खुशियों से भर जाता है: डा. महावीर अग्रवाल”

ओ३म्
-द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल का रजत जयन्ती समारोह-

==========
देहरादून स्थित द्रोणस्थली आर्ष कन्या गुरुकुल महाविद्यालय का तीन दिवसीय रजत जयन्ती समारोह एवं वार्षिकोत्सव दिनांक 6-6-2022 से आयोजित किया गया। दिनांक 7-6-2022 को उत्सव के दूसरे दिन प्रातःकाल यज्ञ के साथ गुरुकुल की 25 स्नातिकाओं के समावर्तन संस्कार सम्पन्न किये गये। इस भव्य कार्यक्रम में गुरुकुल की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी सहित डा. आचार्या सूर्याकुमारी चतुर्वेदा जी, डा. महावीर अग्रवाल जी, आर्यसमाज के अन्तर्राष्ट्रीय कथाकार पं. चन्द्र शेखर शास्त्री जी, ठाकुर विक्रम सिंह जी, पं. शैलेश मुनि सत्यार्थी सहित अनेक विभूतियां सम्मिलित थी। गुरुकुल आश्रम में पधारे सभी अतिथिगणों ने भी इस समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर उत्तराखण्ड सरकार के कैबिनेट मंत्री श्री गणेश जोशी जी भी सपत्नीक पधारे थे। उनका गुरुकुल की ओर से सम्मान किया गया तथा उनका प्रेरणादायक एवं सहयोगात्मक उद्बोधन भी सभागार में उपस्थित सभी गुरुकुलवासियों एवं अतिथियों को सुनने को मिला।

संस्कार विधि के अनुसार समार्वतन संस्कार की सभी विधियां गुरुकुल के प्रांगण में एक बड़ा पण्डाल लगा कर सभी अतिथियों के सम्मुख भव्य समारोह में पूरी की गईं। इस अवसर पर स्नातिकाओं ने अपने दण्ड एवं मेखलायें अपनी आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी को लौटाईं। इस अवसर पर डा. अन्नपूर्णा जी ने कहा कि आचार्य लोग धनवान तो नहीं होते पर हृदयवान जरूर होते हैं। सभी स्नातिकाओं को संस्कार विधि में लिखी वस्तुयें यथा छतरियां, घड़ी, वस्त्र, चप्पल आदि भेंट की गई। अन्नपूर्णा जी ने अतिथियों को कहा कि आप लोगों ने हमारे गुरुकुल व इसकी स्नातिकाओं को दिल खोलकर आशीर्वाद दिया है। यही हमारी पूंजी है। स्नातिकाओं से आचार्या जी ने कहा कि यहां आपने जो पढ़ाई लिखाई की है, उसे सभी को अपने जीवन में उतारना है। आचार्या जी ने अपनी स्नातिकाओं को सत्य वद धर्म चर का उपदेश दिया। उन्होंने स्नातिकाओं को अपने जीवन में सच्चाई व ईमानदारी के रास्ते पर रहने की प्रेरणा की। परमात्मा तुम्हारा साथ देगा। उन्होंने एक वाक्य बोला नहीं मैं अनाथ, तेरा नाथ तो परमात्मा है। उन्होंने यह भी बताया कि सुख का मूल धर्म है। इसलिये सभी को जीवन में धर्म का पालन करना है।

आचार्या जी ने उपदेश किया कि सब स्वाध्याय करते रहना। आलस्य, प्रमाद मत करना। आचार्या के लिए प्रिय धन को देना। पढ़ाये लिखायें ज्ञान को आचरण में लाना। यही आचार्या का प्रिय धन है। राम, कृष्ण, दयानन्द, शिवाजी, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल जैसी सन्तानो ंको जन्म देना। यही उपदेश है, यही आदेश है और यही सन्देश है। उन्होंने कहा कि मेरा रोम रोम तुम्हें आशीर्वाद दे रहा है।

अन्तर्राष्ट्रीय कथाकार आचार्य पं. चन्द्रशेखर शास्त्री जी ने कहा कि धरती में बहुत कुछ है। जल में भी बहुत कुछ है परन्तु जल किसी से भेदभाव नहीं करता। आदमी के पास बहुत कुछ है परन्तु सन्तोष नहीं है। वेद में सब कुछ है परन्तु मिथ्या बातें नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वेद का पढ़ना व पढ़ाना तथा सुनना सुनाना सभी मनुष्यों का परम धर्म है। आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ की अग्नि को आग नहीं कहते हैं, क्यों? उन्होंने कहा कि यज्ञ में अग्नि को जलाते हैं। वह अग्नि मर्यादा में रहती है इसलिये उसे अग्नि कहते हैं। अग्नि जब मर्यादा में नहीं रहती तब वह आग कहलाती है। उन्होंने कहा कि एक सदाचारी आचार्य दस प्रधानमंत्री बना सकता है परन्तु दस प्रधानमंत्री एक सदाचारी आचार्य को नहीं बना सकते। आचार्य कभी भूतपूर्व नहीं होते अपितु अभूतपूर्व होते हैं। आचार्य जी ने कहा कि काम करने में कतराना नहीं। काम करने पर इतराना नहीं। सुख में सोना नहीं, दुःख में रोना नहीं। योगी बने, उपयोगी बने, सहयोगी बने। आचार्य जी ने यह भी कहा कि ज्ञान का प्रकाश वहां होता है जहां उपनिषद् एवं वेद का उपदेश होता है।

इस अवसर पर आयोजन में पधारे आर्यजगत के प्रख्यात विद्वान एवं दानवीर ठाकुर विक्रम सिंह जी ने सभा को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि वह जाट कालेज मे पढ़ते थे। उन्हें पता लगा कि देहरादून में तपोवन आश्रम में एक उपदेशक विद्यालय चल रहा है। यह जानकारी मिलने पर वह कालेज छोड़कर उपदेशक विद्यालय में वेद आदि शास्त्रों सहित धर्म एवं अध्यात्म विषयों के अध्ययन के लिये यहां आ गये थे। उन्होंने कहा हमारे ऊपर आर्य समाज का ऋण है। यह ऋण कभी नहीं उतरेगा। उन्होंने कहा कि दयानन्द जी का ऋण सारा देश कभी नहीं उतार सकता। ठाकुर विक्रम सिंह जी ने एक पुस्तक ‘सर्वश्रेष्ठ बनों’ लिखी है। आपने गीता पढ़ों और आगे बढ़ों पुस्तक का प्रकाशन भी किया है। आपने कहा कि हमें नम्बर एक बनना है। ठाकुर विक्रम सिंह जी ने पुस्तकों को पढ़ने सहित वेदादि शास्त्रों का स्वाध्याय करने की प्रेरणा की। चेतावनी देते हुए ठाकुर साहब ने कहा हिन्दू समाज बचेगा नहीं। सबसे ज्यादा पाखण्ड तथा कुरीतियां इस समाज में है। ठाकुर साहब ने गुरुकुल को पचचीस हजार रूपये का दान किया। इसके साथ उन्होंने 25 स्नातिकाओं सहित सभी आर्यसमाज के विद्वानों एवं प्रचारकों को भी पांच-पांच सौ रूपये की धनराशि देकर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि जब कभी गुरुकुल की किसी ब्रह्मचारिणी पर कोई आपत्ति आये तो वह उनसे मिल सकती है। वह उसकी समस्या में सहयोग करेंगे। इसके बाद स्नातक कन्याओं ने एक सामूहिक गीत गाया। इस सामूहिक गीत के बाद प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री दिनेश पथिक जी का एक भजन हुआ जिसके बोल थे ‘भगवान आर्यों को पहली लगन लगा दे, वैदिक धर्म की खातिर मिटना इन्हें सिखा दे।’ भजन बहुत ही ओजस्वी स्वरों में गाया गया जिसे सभी श्रोताओं ने पसन्द किया। इस भजन के बाद श्री विनोद जी ने भी एक मधुर भजन प्रस्तुत किया। इस भजन के बोल थे ‘पी प्रभु नाम का जल रे मना, सत्संग वाली नगरी चल रे मना।।’

पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति उपकुलपति तथा उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. महावीर अग्रवाल जी ने अपने आशीर्वचनों में कहा कि हमें सत्य वद धर्म चर शब्दों के साथ राष्ट्र देवो भव भी जोड़ना चाहिये। डा. महावीर जी ने कहा कि गुरु विरजानन्द जी ने तुम्हें सूर्य बन कर राष्ट्र के सामने खड़ी समस्याओं का हल करने का आह्वान किया था। दयानन्द जी ने अपने गुरु विरजानन्द जी को कहा था कि गुरूवर मैंने अपना जीवन आपके श्रीचरणों में समर्पित कर दिया है। गुरु की आज्ञा पालन करने का आश्वासन दयानन्द जी ने अपने गुरु जी को दिया था। डा. महावीर जी ने समार्वतन संस्कार के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा विद्या पढ़कर मनुष्य की सामथ्र्य में अपूर्व वृद्धि होती है। गुरुकुलों के ब्रह्मचारियों ने नया इतिहास रचा है। उन्होंने कहा कि हैदराबाद सत्याग्रह, हिन्दी सत्याग्रह तथा गोरक्षा सत्याग्रह आदि आन्दोलनों में आर्यसमाज और गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने योगदान किया है। उन्होंने कहा इन स्नातिकाओं द्वारा देश का नया इतिहास बनाया जाना है। आचार्य महावीर जी ने कहा कि वेदाध्ययन किये हुए मनुष्य को ही गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का अधिकार होता है। आचार्य जी ने कहा कि हमने जो कपड़े पहने हुए हैं, वह अन्यों ने बनाये हैं। अन्य वस्तुयें भी हमंे दूसरे बन्धुओं के सहयोग से प्राप्त हुई हैं। उन सभी बन्धुओं के प्रति हमारा भी दायित्व है। आचार्य जी ने कहा कि ओ३म् की पताका फहराने के लिये हमें कुछ प्रयत्न करने होंगे। उन्होंने कहा कि मेरे पास जो कुछ है वह माता, पिता, देश व समाज को सुख पहुचाने के लिए है। डा. महावीर जी ने कहा कि गुरुकुल की स्नातिकाओं का आचरण ऐसा होना चाहिये कि देश व समाज के लोग उनके आचरण को देख कर उनके गुरुकुल व उनकी आचार्या को नमन करें। आचार्य महावीर जी ने स्नातिकाओं के दिव्य जीवन की मंगल कामना की। आचार्य महावीर जी ने कहा कि वह सन् 1964 में गुरुकुल झज्जर में प्रविष्ट हुए थे। वहीं से उन्होंने जीवन में सब कुछ पाया है। उन्होंने कहा कि गुरुकुल, वेद एवं संस्कृत माता हमें इतना देती है कि हमारा जीवन खुशियों से भर जाता है। जीवन में कोई कमी नहीं रहती। डा. महावीर जी ने गुरुकुल की कन्याओं को अन्य शिक्षा पद्धतियों से दीक्षित कन्याओं से श्रेष्ठ व उत्तम बताया। उन्होंने सब स्नातिकाओं को अपना आशीर्वाद दिया। उन्होंने स्नातिकाओं को कहा कि कभी आत्महीनता की ग्रन्थि से ग्रसित मत होना। आपसे बढ़कर कोई बड़ा ऐश्वर्य दूसरा नहीं है, वह ऐश्वर्य जो आपने गुरुकुल में विद्या प्राप्त कर पाया है। आज भी चारों ओर अज्ञान भरा है। आप जहां जाओ वहां दीपक की तरह जलना और देश और समाज को प्रकाशित करना।

इसके बाद लोग सभागार में एकत्र हुए। दीक्षान्त समारोह का कार्यक्रम सभागार में ही हुआ। सभागार में प्रथम पं. रूवेल सिंह जी के दो भजन हुए। भजन के बाद अतिथि विद्वानों ने मिलकर दीप प्रज्जवलन किया। इसके बाद गुरुकुल की कन्याओं ने मंगलाचरण गान गाया। कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री श्री गणेश जोशी जी सपत्नीक पहुंचे थे। सभी मान्य अतिथियों के लिए गुरुकुल की कन्याओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। सभी प्रमुख अतिथियों का शाल, चित्र, ओ३म् पटके आदि से सम्मान किया गया। मुख्य अतिथि श्री गणेश जोशी जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह वर्ष गुरुकुल का रजत जयन्ती वर्ष है। संस्कृत व संस्कृति एक दूसरे की पूरक हैं। उन्होंने कहा जैसे जैसे संस्कृत भाषा समाप्त हुई वैसे वैसे संस्कृति भी समाप्त होती गई। आपके गुरुकुल संस्कृत और संस्कृति को जीवित रखने का काम कर रहे हैं। श्री गणेश जोशी जी ने बताया कि हमने उत्तराखण्ड राज्य में संस्कृत को दूसरी राज भाषा का स्थान देने का काम किया है। उन्होंने कहा इस गुरुकुल से मेरा विशेष लगाव है। यहां की आचार्या एवं कन्यायें मुझे प्रत्येक वर्ष राखी बांधती है। आपके सब आदेशों को पूरा करने का मेरा प्रयास रहता है। मैं गुरुकुल की सभी दिक्कतों को दूर करने का प्रयास करूंगा। उन्होंने कहा कि जब हम दक्षिण भारत के किसी प्रमुख मन्दिर में जाते हैं तो वहां मन्त्रों की ध्वनियां सुनाई देती हैं। हमें शब्दों के अर्थ तो पता नहीं होते परन्तु सुरों की मधुरता हमें प्रिय अनुभव होती है। हमारा दिल करता है कि हम उन सुरों की निरन्तर सुनते रहें। मंत्री जी ने सभी लोगों को अपनी शुभकामनायें दीं। सबको प्रणाम किया। उन्होंने आगामी रक्षा बन्धन का सभी गुरुकुल की बहनों को निमन्त्रण भी दिया। इसके बाद श्री दिनेश पथिक जी का एक मधुर भजन हुआ। गुरुकुल की ब्रह्मचारिणियों ने अपनी आचार्या को समर्पित एक सामूहिक गीत भी प्रस्तुत किया। तीन स्नातिकाओं ने अपनी आचार्या जी के प्रति अपने अनुभवों को सुनाया। कार्यक्रम में कन्या गुरुकुल, नजीबाबाद की आचार्या डा. प्रियंवदा वेदभारती जी भी उपस्थित थी। उनका प्रेरक उद्बोधन हुआ। कार्यक्रम में पधारे श्री सोमदेव शतांशु जी तथा पं. चन्द्रशेखर शास्त्री जी का सम्बोधन भी हुआ। पं. चन्द्रशेखर शास्त्री जी ने अध्यात्म-पथ मासिक पत्रिका की ओर से सराहनीय कार्य करने वाले कुछ बन्धुओं को सम्मानित किया। इन लोगों में गुरुकुल की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी, गुरुकुल की छात्रा श्रद्धा जी भी सम्मिलित थी। सुश्री बीना खत्री जी को भी इस अवसर पर सम्मानित किया गया। अन्य सम्मानित नामों में प्रणति आचार्या जी, श्री शिवदेव आर्य तथा मनमोहन आर्य के नाम भी सम्मिलित थे। अन्त में डा. महावीर जी तथा डा. आचार्या सूर्या कुमार चतुर्वेदा जी के सम्बोधन हुए। इसी के साथ समावर्तन संस्कार एवं दीक्षान्त समारोह सम्पन्न हुआ। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

Comment: