योगी सरकार की जनसंख्या नीति और ‘हिंदू अस्तित्व’

भारत में ‘हिंदू अस्तित्व’ को बचाए रखने के लिए दीर्घकाल से एक कठोर जनसंख्या नियंत्रण कानून की आवश्यकता अनुभव की जाती रही है। इस दिशा में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाया है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने देश के सर्वाधिक जनसंख्या वाले प्रदेश का ‘उत्तर प्रदेश जनसंख्या विधेयक – 2021’- का प्रारूप तैयार कर लिया है। सरकारी नीतियों में पारदर्शिता और जन सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश की योगी सरकार ने इस प्रारूप पर लोगों की राय भी मांगी है । इस प्रारूप में उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानूनी उपायों के उपाय सुझाए गए हैं। प्रदेश के ऐसे नागरिक जो दो या उससे कम बच्चे पैदा करते हैं उन्हें सरकारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी, जबकि इससे अधिक बच्चे पैदा करने वाले नागरिकों या माता-पिता या अभिभावकों के लिए मिलने वाली सरकारी सुविधाओं से उन्हें वंचित कर दिया जाएगा। ऐसे अभिभावकों को सरकारी सुविधाओं का लाभ जिनके राशन कॉर्ड में चार से अधिक सदस्य होंगे। उन्हें स्थानीय निकाय, पंचायत चुनाव लड़ने की भी अनुमति नहीं होगी। इसके अतिरिक्त सरकारी नौकरियों में उन्हें कोई अवसर भी नहीं दिया जायेगा।
राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण व कल्याण) विधेयक-2021 का यह प्रारूप तैयार किया है। विधि आयोग ने इसका प्रारूप विधिवत सरकारी वेबसाइट पर अपलोड किया है और 19 जुलाई तक जनता से इस पर राय भी मांगी गई।
वास्तव में जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में इससे भी अधिक कठोर कानून के लाए जाने की आवश्यकता है। देश इस समय जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में पहुंच चुका है। देश के संजीदा और गंभीर लोगों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि 1947 में जब देश आजाद हुआ था तो उस समय भारतवर्ष की जनसंख्या लगभग 35 करोड़ थी ,जो आज लगभग 4 गुणी हो चुकी है। इतनी तेजी से बढ़ी जनसंख्या की समस्याओं का समाधान देश की कोई भी चुनी हुई सरकार नहीं कर सकती । विशेष रूप से तब जब देश का प्रत्येक व्यक्ति कर देने से तो बचना चाहता हो पर सुविधाएं पूरी लेना चाहता हो। जनसंख्या की बढ़ती हुई समस्या तब और भी अधिक विकराल हो जाती है जब देश का एक तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग जनसंख्या को बढ़ाकर ही देश पर फिर से अपनी हुकूमत कायम करने के सपने ले रहा हो। उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि वह ऐसा करके देश में गरीबी को बढ़ा रहा है । वह तो बस यह देख रहा है कि यदि जनसंख्या संतुलन बिगड़ गया तो वह एक दिन इस देश की हुकूमत पर आसीन होगा और तब इस देश का बहुसंख्यक उसके कदमों तले होगा। ऐसी सोच ‘हिंदू विनाश’ का प्रमुख कारण है। हमारा मानना है कि इसे केवल ‘हिंदू विनाश’ की सोच ही नहीं मानना चाहिए ,बल्कि राष्ट्र व संसार के विनाश की सोच भी मानना चाहिए। क्योंकि यह सर्वमान्य सत्य है कि यदि हिंदू इस धरती पर नहीं रहा तो संसार में ‘भस्मासुर’ आग लगा देंगे।
प्रदेश की योगी सरकार ने अपने द्वारा लाए गए इस कानून में यह प्रावधान किया है कि जिस अभिभावक को दो से अधिक बच्चे होंगे, उसे सरकारी नौकरियों में आवेदन करने या प्रोन्नति पाने का अधिकार नहीं होगा। हमारा मानना है कि जिस आवेदक ने नौकरी के लिए आवेदन किया है उससे उसी समय यह शपथ पत्र लिया जाए कि वह दो से अधिक बच्चे ना तो पैदा करेगा और ना ही एक से अधिक विवाह उन परिस्थितियों के अतिरिक्त नहीं करेगा जब उसका जीवन साथी या तो मृत्यु को प्राप्त हो गया हो या किसी ऐसी असाध्य बीमारी से ग्रस्त हो जिससे बच्चे पैदा नहीं हो सकते हों या किन्ही कारणों से वह अपने जीवनसाथी से संतान प्राप्त ना करने की स्थिति में आ गया हो। इसके साथ ही साथ अवैध रूप से रखैल रखने या एक से अधिक दो, तीन व चार शादियां करने की अनैतिक परंपरा को भी देश से विदा किया जाना अपेक्षित है। क्या इसके लिए भी योगी सरकार किसी कानून में कोई प्रावधान करेगी ?
जीवनसाथी से तलाक लेने के संबंध में यद्यपि केंद्र की मोदी सरकार एक कानून लाने में सफल रही है, परंतु वह कानून भी तब तक पूर्ण नहीं कहा जा सकता जब तक कि भारत की वैदिक परंपरा के अनुसार जीवनसाथी को त्यागना पूर्णतया निषिद्ध नहीं किया जाए। जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम केवल बच्चों के पैदा करने की किसी फैक्ट्री को बंद करने नहीं जा रहे हैं बल्कि समाज में एक नैतिक व्यवस्था भी लागू करने जा रहे हैं । इसके लिए व्यभिचार को भी समाप्त करने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाना समय की आवश्यकता है । सरकारें कानून बनाकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं। जबकि समाज में पहले से चली आ रही अनैतिक व्यवस्था या तो यथावत या किसी न किसी बदले रूप में पैर पसारे रहती है । कानून बनाकर लोगों को राहत देने की परंपरा से अलग हटकर योगी सरकार को समाज में नैतिक व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में भी बहुत कुछ करना होगा।
दो से अधिक बच्चे पैदा करने वालों को 77 सरकारी योजनाओं व अनुदान से भी वंचित रखने का प्रावधान इस कानून में किया गया है। इस कानून के लागू होने पर एक वर्ष के भीतर सभी सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों स्थानीय निकाय में चुने जनप्रतिनिधियों को शपथ पत्र देना होगा कि वह इसका उल्लंघन नहीं करेंगे। कानून लागू होते समय उनके दो ही बच्चे हैं और शपथ पत्र देने के बाद अगर वह तीसरी संतान पैदा करते हैं तो प्रतिनिधि का निर्वाचन रद करने व चुनाव ना लडऩे देने का प्रस्ताव होगा। इतना ही नहीं सरकारी कर्मचारियों की प्रोन्नति तथा बर्खास्त करने तक की संस्तुति भी की गई है।
यह अच्छी बात है कि नई जनसंख्या नीति में यह व्यवस्था भी की गई है कि यदि परिवार के अभिभावक सरकारी नौकरी में हैं और नसबंदी करवाते हैं तो उन्हेंं अतिरिक्त इंक्रीमेंट, प्रमोशन, सरकारी आवासीय योजनाओं में छूट, पीएफ में एम्प्लॉयर कंट्रीब्यूशन बढ़ाने जैसी कई सुविधाएं देने की सिफारिश की गई है। दो बच्चों वाले दंपत्ति यदि सरकारी नौकरी में नहीं हैं तो उन्हेंं पानी, बिजली, हाउस टैक्स, होम लोन में छूट व अन्य सुविधाएं देने का प्रस्ताव है। एक संतान पर खुद से नसबंदी कराने वाले हर अभिभावकों को संतान के 20 वर्ष तक मुफ्त इलाज, शिक्षा, बीमा शिक्षण संस्था व सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता देने की सिफारिश है। इसके अंतर्गत सरकारी नौकरी वाले दम्पति को चार अतिरिक्त इंक्रीमेंट देने का सुझाव है। यदि दम्पति गरीबी रेखा के नीचे हैं और एक संतान के बाद ही स्वैच्छिक नसबंदी करवाते हैं तो उनके बेटे के लिए उसे 80 हजार और बेटी के लिए एक लाख रुपये एकमुश्त दिए जाने की भी संस्तुति है।
यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक विवाह करता है और सभी पत्नियों से कुल मिलाकर उसके दो से अधिक बच्चे हैं तो वह भी सुविधाओं से वंचित होगा। हर पत्नी सुविधाओं का लाभ ले सकेगी। वहीं, यदि महिला एक से अधिक विवाह करती है और अलग-अलग पतियों से मिलाकर दो से अधिक बच्चे होने पर उसे भी सुविधाएं नहीं मिलेंगी।
जो लोग कबाड़ी का काम करते हैं या फल व सब्जी आदि बेचकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं वे ‘दीन की खिदमत’ के लिए बच्चे पैदा करना अपना ‘दीनी अधिकार’ मानते हैं , उनके बारे में भी सरकार को स्पष्ट नीति अपनानी चाहिए । यदि सरकारी नौकरियों से अलग भी लोग दो से अधिक बच्चे पैदा करते पाए जाते हैं तो उनके साथ कौन सी ऐसी कठोरता दिखाई जाएगी, जिससे वे अधिक बच्चा पैदा करने से अपने आप को रोक पाएं – इस पर भी सरकार को अपना स्पष्ट दृष्टिकोण प्रकट करना चाहिए। एक बात पूरी तरह साफ है कि जो लोग भारत भक्त हैं वे ऐसी नीतियों पर स्वाभाविक रूप से सरकार के साथ खड़े होते हैं पर जो लोग ‘दीनी खिदमत’ को देश की खिदमत पर वरीयता देते हैं वे इनके विरोध में होते हैं।
हिंदू अपने अस्तित्व को सरकार की नीतियों के पालन में सुरक्षित हुआ देखता है, जबकि एक अल्पसंख्यक वर्ग अपने अस्तित्व को सरकार की नीतियों का उल्लंघन करने में बचा और बना हुआ देखता है। इस विरोधाभास को सरकारें भी समझती हैं और समाज के लोग भी समझते हैं। इस विरोध को समाप्त करने के लिए तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग के धार्मिक गुरुओं को सामने आना चाहिए। यद्यपि उनके बारे में यह सर्वमान्य सत्य है कि वह कभी भी ऐसा कभी भी नहीं करेंगे। जनसंख्या नियंत्रण के यूपी सरकार के इस प्रारूप पर भी तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग के धार्मिक रूप विरोध में छाती पीटने लगे हैं। हमारा मानना है कि योगी सरकार के इस प्रारूप को और भी अधिक कठोर बनाकर कानून के रूप में परिणत कर देश की सभी राज्य सरकारों को अपने लिए आदर्श के रूप में स्वीकार करना चाहिए। हिंदू अस्तित्व के लिए यह बहुत आवश्यक हो गया है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

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