*वट अमावस्या या वट सावित्री पूजा*

डॉ डी के गर्ग

साभार –भारतीय पर्व एवं परम्पराये -द्वारा डॉ डी के गर्ग
पर्व का समय – वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को रखा जाता है।
पौराणिक मान्यता:
स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए इस दिन व्रत रखती हैं और बरगद की पूजा करती हैं। कई स्थानों पर वट वृक्ष के तले सुहागिनों की भीड़ नजर आएगी। कुछ घर पर ही वट की टहनियाँ लाकर सुहाग की कुशलता की कामना के साथ सुहागिनें परंपरागत तरीके से वट वृक्ष की पूजा कर व्रत रखती है। सुहागिन महिलायें इस वृक्ष की पूजा से पति की दीर्घ आयु और वैवाहिक जीवन की सफलता एवं सन्तान की कामना करती हैं।
इससे साफ प्रतीत होता है कि बरगद का धार्मिक महत्व है. लेकिन ये धार्मिक महत्व क्या है? ये किसी को नहीं पता सिर्फ अंधविश्वास में बताया कि इसकी छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं।
विश्लेषण –
पीपल और वट वृक्षों का आयुर्वेद में महत्त्वपूर्ण स्थान हैं क्योंकि इनमें अनेक रोगों को जड़ से उखाड़ने के गुण विद्यमान हैं।
वट यानि बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है।पीपल सदैव सदा हरा-भरा बना रहता है। उसी प्रकार वट वृक्ष के भी अपने गुण हैं। जितनी ऑक्सीजन इन दोनों वृक्षों से प्राप्त होती है अन्य किसी वृक्ष से नहीं मिलती। इन्हीं गुणों के कारण इन दोनों वृक्षों को पवित्र और पूजनीय माना जाता है।
इस पर्व के माध्यम से वटवृक्ष की अत्यंत महत्ता का वर्णन करते समय इसमें विष्णु, ब्रह्मा आदि गुणों की अलंकारिक उपमा दी गई है।
इसकी टहनियों के द्वारा अतिरिक्त भूमि में इस वृक्ष को जगह-जगह उगाने का नियम है। इसलिए कहा है कि इस वृक्ष में ब्रह्मा (सृष्टि के निर्माता) विधमान हैं।

असलियत में यहाँ वट पूजा का मतलब इस वृक्ष के गुणों का प्रचार करना और उनको ग्रहण करना है यानी इसकी औषधियों का सेवन और इसका विस्तार है।

वट के कुछ मुख्य गुण जिनके कारण बरगद काटा नहीं जाता है?
1. अकाल की स्थिति में इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं।
2. अग्निपुराण के मुताबिक बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। वास्तव मंे इस वृक्ष में जो गुण हैं वे सृष्टि के उत्सर्जन मे सहायक हंै इसी कारण से इसकी पत्तियाँ, दूध, फल इत्यादि के सेवन से यौन रोग दूर हो जाते हंै।
आयुर्वेद के अनुसार इस वृक्ष से प्राप्त कुछ गुण हम आपके सम्मुख रखना चाहेंगे-
1) बरगद से वीर्य का पतलापन का इलाज-
इसकी कोपलों को छाया में सुखाकर उनको कूट छानकर उनमें समान भाग मिश्री मिलाकर 7 दिन तक निहारे मुंह दूध के साथ लेने से वीर्य का पतलापन सुजाक और गुर्दे की जलन मिटती है।
2) काम शक्ति-
इसके कच्चे फल को छाया में सुखाकर उसको पीसकर दो चम्मच की मात्रा में 150 मिली दूध के साथ पीने से कम शक्ति बढ़ती है।
बरगद के फल को सुखा कर पाउडर बना लें और इतनी ही मात्रा में शक्कर लेकर मिक्सर में पीस लें। फिर सुबह खाली पेट 1 टीस्पून इस पाउडर को लें। रात में सोने से पहले भी इसे लेकर बाद में ताजा गाय का दूध पी लें। ऐसा आपको 2-3 हफ्तों तक करना है। इससे आपकी यौन शक्ति बढ़ जाएगी जिसे देख कर आपको यकीन ही नहीं होगा।
3) बार-बार पेशाब जाने की समस्या से राहत के लिए बरगद के बीज को सुखा कर महीन पाउडर पीस लें। फिर रोजाना 1-2 ग्राम पाउडर को गाय के दूध के साथ सेवन करें तथा ऐसा दिन में दो बार करें।
4) आयुर्वेद के मत से इस वृक्ष के सभी हिस्से कसैेले मधुर शीतल आँतों का संकुचन करने वाले कफ, पित्त और वर्णा को नष्ट करने वाले तथा उल्टी, ज्वर, योनिदोष, मूर्छा और विसर्प में लाभदायक है। यह कंाति को बढ़ाते हैं, इसके पत्ते वर्णों के लिए लाभदायक हैं, नवीन पत्ते गलित कुष्ठ में फायदा पहुंचाते हैं, इसका दूध वेदनानाशक और व्रणरोपक होता है, इसके फूल पत्ते पसीना लाने वाले और कोमल पत्ते कफनाशक होते हैं, इसकी छाल स्तम्भक होती है एवं इसके बीज ठंडे और पौष्टिक होते हैं।
5) अगर बरगद के दूध को कमर पर लेप के रूप में लगाया जाता है तो कमर दर्द में भी आराम मिलता है। फटी पड़ी एड़ियों में अगर बरगद का दूध लगाया जाये तो इससे काफी ज्यादा राहत मिलती है।
6) बरगद की ताजी कोमल पत्तियों का पाउडर बनाकर खाने से याददाश्त भी अच्छी होती है।
यह स्पष्ट है कि वटवृक्ष सृष्टि के उत्सर्जन मे सहायक है, हमारे पूर्वजों ने इसे पहचाना और इस वृक्ष को महत्ता दी। इसीलिए इस वृक्ष को महेश (सृष्टि को खत्म करने वाला) की संज्ञा दी गई है।
इस वृक्ष में विष्णु के विराजमान होने की बात का भावार्थ ?
विष्णु शब्द का अर्थ है- सृष्टि को चलाने वाला। इस वृक्ष के अन्दर ऐसे बहुत से चमत्कारिक गुण उपलब्ध हैं। ‘‘स ब्रह्या स विष्णु‘‘ यानि सब जगत् के बनाने से ब्रह्मा, सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु कहा है और इस प्रकार के गुण वट मे मिलते हैं।
अन्त में प्रश्न उठता है कि इस वटवृक्ष की पूजा ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष के अमावस्या को ही क्यों की जाती है?
इसका उत्तर है कि ज्येष्ठ माह से पूर्व बसन्त ऋतु की विदाई एवं ग्रीष्म ऋतु में आगमन का समय होता है और ज्येष्ठ माह में मच्छर, कीट और जीवाणु इत्यादि के द्वारा फैलाए जा रहें संक्रमण के रोगों का प्रकोप न्यूनतम होता है। फसलें कट चुकी होती हैं, मौसम गर्भधारण के अनुरूप होता है और समय गर्भाधान के द्वारा पैदा हुए शिशु तुलनात्मक दृष्टि से ज्यादा निरोगी एवं स्वस्थ होते हैं।
पर्व विधिः
वृक्ष जड़ है कोई आशीर्वाद नहीं दे सकता सिर्फ ईश्वर के विधान के अनुसार फल, छाया, औषधि दे सकता है। अतः हमें इससे बचाना चाहिए।
किसी भी वृक्ष की पूजा का सही अर्थ वृक्ष को जल देना, खाद देना और इसकी टहनियों के रोपण के द्वारा इस वृक्ष का जगह-जगह विस्तार करना है। लेकिन जानकारी के अभाव में इस वृक्ष के सामने अगरबत्ती एवं धागा बाँधकर रति श्री कर ली जाती है और इस वृक्ष की टहनियाँ घर में ले जाकर व्यर्थ कर दी जाती हंै। ये वट पूजा का विकृत रूप है।
१. इस दिन वट के वृक्ष लगाए जाये और वट के गुणों पर चर्चा करें।
२. अच्छे स्वास्थ्य के लिए वट के दूध और इस वृक्ष के उत्पाद के सेवन करना प्रारम्भ करें।

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