जबलपुर: कभी गढ़ रहा कांग्रेस का, शरद यादव ने निर्दलीय लड़ कर ढहाया, अब भाजपा के कब्जे में*

पवन वर्मा -विनायक फीचर्स
मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में कांग्रेस को जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, साहित्यकार और संविधान सभा के सदस्य रहे सेठ गोविंददास ने मजबूत किया होगा तब किसी ने यह कल्पना नहीं की होगी कि इस क्षेत्र में कांग्रेस का जनाधार इतनी तेजी से घटेगा। जबलपुर की राजनीति में समाजवादी नेता एवं उत्तर प्रदेश के बदायूं और बिहार के मधेपुरा से लोकसभा सदस्य रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने ही पहली बार कांग्रेस के इस गढ़ को ढहाया था। इसके बाद कांग्रेस यहां पर कभी अपनी मजबूती लगातार कायम नहीं रख सकी।
जबलपुर लोकसभा सीट बनने के बाद सेठ गोविंददास ही यहां से पहली बार सांसद चुने गए, वे कांग्रेस के टिकट पर लगातार चार बार सांसद रहे। आखिरी बार 1971 में वे 92 हजार वोटों से चुनाव जीते थे। उन्हें एक लाख 39 हज़ार वोट मिले थे, जबकि जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े बाबूराव परांजपे को महज 47 हजार वोट मिल सके थे। तब से लेकर अब तक जबलपुर का राजनीतिक परिदृश्य बिलकुल बदल चुका है। अब हालात इसके उलटे हो चुके हैं। पिछले चुनाव में भाजपा को आठ लाख 26 हजार 454 वोट मिले, जबकि कांग्रेस को महज तीन लाख 71 हजार 710 वोट ही मिल सके।

गिरता गया जनाधार
अब हालात यह हो चुके हैं कि कांग्रेस का जनाधर यहां पर हर लोकसभा चुनाव में गिरता जा रहा है, जबकि भाजपा का वोट बैंक तेजी से बढ़ रहा है। लोकसभा के पिछले तीन चुनाव को देखा जाए तो कांग्रेस का करीब दस प्रतिशत वोट बैंक कम हुआ है। जबकि भाजपा का वोट शेयर पिछले तीन चुनाव में 22 प्रतिशत बढ़ गया। हालात यह हो गए कि पिछला चुनाव कांग्रेस यहां से चाल लाख 54 हजार से अधिक से हारी थी।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा भी नहीं दिला पाए जीत
कांग्रेस ने वर्ष 2009 में यहां से रामेश्वर नीखरा को उम्मीदवार बनाया था, रामेश्वर नीखरा मध्य प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं और वे होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी रहे हैं। जबकि भाजपा की ओर से राकेश सिंह उम्मीदवार थे, राकेश सिंह अब प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। कांग्रेस को इस चुनाव में 54.29 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को 37.56 प्रतिशत वोट मिले थे। इस चुनाव में नीखरा एक लाख 6 हजार 3 वोट से हारे थे। इसके बाद वर्ष 2014 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदला और यहां से सुप्रीम कोर्ट के जाने माने और वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा को टिकट दिया। जबकि भाजपा ने फिर से राकेश सिंह पर भरोसा जताया। इस चुनाव में तन्खा को 35.8 प्रतिशत वोट मिले, जबकि राकेश सिंह को 56.78 प्रतिशत वोट मिले थे। राकेश सिंह यह चुनाव दो लाख 8 हजार 639 वोटों से जीते थे। इसके बाद वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में फिर से यही दोनों उम्मीदवार आमने-सामने आए। जिसमें विवेक तन्खा को 29.42 प्रतिशत और राकेश सिंह को 65.41 प्रतिशत वोट मिले थे और जीत का यह अंतर 4 लाख 54 हजार 744 तक पहुंच गया था।

शरद यादव ने जबलपुर के बाद उत्तर प्रदेश- बिहार में भी दिखाया दम
सेठ गोविंद दास के निधन के बाद कांग्रेस ने यहां से उनके बेटे रवि मोहन को टिकट दिया, लेकिन शरद यादव ने उन्हें हरा दिया। चुनाव से महज दस दिन पहले शरद यादव जेल से रिहा होकर आए थे। इस वक्त जय प्रकाश नारायण आंदोलन अपने उफान पर था, शरद यादव बिहार छात्र आंदोलन में सक्रिय रहने के चलते जेल गए थे, उस उपचुनाव में विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं ने जेल में बंद शरद यादव का न सिर्फ चुनाव संभाला, बल्कि प्रचार भी किया। जॉर्ज फर्नांडिस ने लगातार कैंप कर यादव के चुनाव का प्रबंधन किया। यह उपचुनाव शरद यादव यहां से जीते थे। इसके बाद यहां से एक बार और शरद यादव ने चुनाव लड़ा, इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के बदायूं का रूख किया और वहां से वे लोकसभा चुनाव जीते, इसके बाद वे बिहार गए जहां की मधोपुर सीट से वे चुनाव लड़े और जीते। वे केंद्रीय मंत्री और जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। शरद यादव ने 1999 में लालू यादव को लोकसभा चुनाव में हरा दिया था। यादव के जबलपुर से उत्तर प्रदेश का रूख करते ही इस सीट पर कांग्रेस की वापसी भी हुई, लेकिन लंबे समय तक कांग्रेस यह सीट अपने पास नहीं रख सकी। कांग्रेस यहां से 1980, 1984 और 1991 में चुनाव जीती थी, तब से वह यह सीट हारती जा रही है।

अब दोनों नए चेहरे यहां से
इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही उम्मीदवार बदल दिए हैं। भाजपा ने यहां से आशीष

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