पूर्ण कल्याण का जीवन किसको प्राप्त होता है? उत्तम साहसिक व्यक्ति कौन बनता है?

पूर्ण कल्याण का जीवन किसको प्राप्त होता है?
उत्तम साहसिक व्यक्ति कौन बनता है?
उत्तम आध्यात्मिक जीवन के क्या लक्षण हैं?

य उदृचीन्द्रदेवगोपाः सखायस्तेशिवतमाअसाम।
त्वां स्तोषामत्वयासुवीराद्राघीय आयुः प्रतरं दधानाः।।
ऋग्वेदमन्त्र 1.53.11

(ये) वो हम (उदृचि) उत्तम ऋचाओं के साथ अर्थात् वैदिक मन्त्र, ज्ञान और तरंगों के साथ (इन्द्र) परमात्मा (देवगोपाः) दिव्य संरक्षण वाला, दिव्यताओं का संरक्षित करने वाला (सखाय) मित्र (ते) आपके
(शिवतमा) कल्याण के लक्षणों के साथ (असाम) होवो (त्वाम्) आप (स्तोषाम्) प्रशंसा करते हुए, महिमागान करते हुए (त्वया) आपके साथ (संगति और संरक्षण) (सुवीराः) उत्तम बल वाला (द्राघीयः) लम्बी (आयुः) जीवन (प्रतरम्) उत्तम (स्वस्थ एवं आध्यात्मिक) (दधानाः) धारण करते हैं।

व्याख्या:-
पूर्ण कल्याण का जीवन किसको प्राप्त होता है?
उत्तम साहसिक व्यक्ति कौन बनता है?

हे इन्द्र, सर्वोच्च ऊर्जा, परमात्मा! वे हम जो उत्तम ऋचाओं अर्थात् वेद मंत्रों, वैदिक विवेक, ज्ञान और दिव्य तरंगों के साथ परमात्मा के प्रति प्रेम और भक्ति साधना में पड़े हैं; जिनके पास दिव्य संरक्षण हैं और जो दिव्यताओं की रक्षा करते हैं; जो आपकी मित्रता प्राप्त करने के बाद अपने कल्याण से पूर्ण हैं और दूसरांे का भी कल्याण करते हैं। आपकी प्रशंसा और स्तुति में जीवन जीने वाले हम लोग आपकी संगति और संरक्षण में उत्तम साहसी व्यक्ति बन सकें। हम लम्बा और उत्तम जीवन अर्थात् स्वस्थ और आध्यात्मिक जीवन प्राप्त कर सकें।

जीवन में सार्थकता: –
उत्तम आध्यात्मिक जीवन के क्या लक्षण हैं?

उत्तम आध्यात्मिक जीवन के निम्न लक्षण हैं:-
1. उदृचि – उत्तम ऋचाओं के साथ अर्थात् वैदिक मन्त्र, ज्ञान और तरंगों के साथ,
2. देवगोपाः – दिव्य संरक्षण वाला, दिव्यताओं का संरक्षित करने वाला,
3. सखाय ते – आपके मित्र,
4. शिवतमा – कल्याण के लक्षणों के साथ,
5. त्वाम् स्तोषाम् – आपकी प्रशंसा, महिमागान करते हुए,
6. त्वया सुवीराः – आपकी संगति और संरक्षण के साथ, उत्तम बल वाला,
7. द्राघीयः आयुः प्रतरम् दधानाः – उत्तम लम्बा जीवन जीने वाला अर्थात् स्वस्थ और आध्यात्मिक जीवन।


अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें

आप वैदिक ज्ञान का नियमित स्वाध्याय कर रहे हैं, आपका यह आध्यात्मिक दायित्व बनता है कि इस ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचायें जिससे उन्हें भी नियमित रूप से वेद स्वाध्याय की प्रेरणा प्राप्त हो। वैदिक विवेक किसी एक विशेष मत, पंथ या समुदाय के लिए सीमित नहीं है। वेद में मानवता के उत्थान के लिए समस्त सत्य विज्ञान समाहित है।

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