…….तो क्या इतिहास मिट जाने दें, अध्याय 2 , दतिया और श्रीनगर के बारे में

  आजकल के दतिया( मध्य प्रदेश) को कभी अधिराज के नाम से जाना जाता था। विकिपीडिया के अनुसार 'दतिया नगर को 16 वीं सदी में बुन्देलखण्ड के प्रतापी बुन्देला राजा वीर सिंह जू देव ने बसाया था। ग्वालियर के निकट उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित दतिया मध्य प्रदेश का लोकप्रिय तीर्थस्थल है। पहले यह मध्यप्रेदश राज्य में देशी रियासत थी पर अब यह स्वतंत्र जिला है।'
कश्मीर के श्रीनगर की स्थापना मौर्य वंश के प्रतापी शासक अशोक महान के द्वारा की गई बताई जाती है। इस शहर को कभी अधिष्ठान के नाम से मान्यता प्राप्त थी। जिस समय अलबरूनी नाम का विदेशी लेखक भारत आया तो वह भी श्रीनगर गया था । अपने संस्मरणों में इस विदेशी लेखक ने श्रीनगर अर्थात कश्मीर की राजधानी को अधिस्तान के नाम से  उल्लेखित किया है । यह अधिस्तान शब्द श्रीनगर के प्राचीन नाम अधिष्ठान के बहुत निकट दिखाई देता है । उच्चारण दोष से इस विदेशी लेखक ने इसे अधिस्तान कर दिया है।

इस्लामाबाद और अनंतनाग का संबंध

अनंतनाग कभी भारत के बहुत ही प्रतिष्ठित शहरों में गिना जाता था। आज भी यह जम्मू कश्मीर के महत्वपूर्ण शहरों में गिना जाता है। हिंदू इतिहास के गौरव को मिटाने की दृष्टिकोण से मुगल काल में इस्लाम खान नाम के एक मुगल गवर्नर के नाम से इस शहर को इस्लामाबाद कहां जाने लगा। 15वीं शताब्दी में मिले इस नाम के उपरांत भी हिंदू और सिख इस शहर को इसके प्राचीन हिंदू नाम से ही पुकारते हैं।

कभी जम्मू कश्मीर की राजधानी रहे अनंतनाग का आर्य हिंदू राजाओं की श्रृंखला में बहुत ही सम्मान पूर्ण स्थान रहा है। इस प्रकार अनंतनाग का इतिहास आर्य राजाओं का इतिहास है। भारत के इतिहास के अनेक गौरवपूर्ण क्षणों का यह साक्षी रहा है। स्वाधीनता से पूर्व यह शहर भारत के ही शहरों में गिना जाता था । कश्मीर की राजधानी के रूप में इस शहर का उल्लेख ‘नीलमत पुराण’ में हमें प्राप्त होता है । इस शहर के साथ भारत की एक गौरवशाली इतिहास परंपरा का संबंध है । जिससे जुड़ते ही यह शहर दीप्तिमान हो उठेगा।

आमेर और जयपुर के बारे में

राजस्थान का आमेर कभी अम्बावती के नाम से जाना जाता था। इसीलिए यहां के लोग स्थानीय भाषा में इस शहर को आम्बेर के नाम से भी पुकारते हैं। जयपुर की सुरक्षा प्राचीरें आंबेर से मिलती हैं। इस शहर का बहुत ही प्राचीन इतिहास है। इसकी श्रृंखला हमें आर्य सम्राट मांधाता तक ले जाती है। कभी इसको अंबर ,अंबेर के नाम से भी जाना जाता था। 

इसके विषय में पता चलता है कि सूर्यवंशी सम्राट मांधाता के पुत्र अंबरीष द्वारा इसे प्रतिष्ठित किया गया था। ‘भविष्य पुराण’ में इसे अंबर के नाम से उल्लिखित किया गया है । कर्नल टॉड के अनुसार कच्छवाहों के अधिकार से पूर्व कालीखोह की मीणा जाति द्वारा आमेर का निर्माण किया गया। इस शहर ने अनेक प्रकार के उतार चढ़ाव देखे हैं और अनेक इतिहास पुरुषों के साथ
इसका सीधा और गौरवशाली संबंध रहा है।
सवाई जयसिंह द्वितीय 1700 ई0 में आमेर के सिंहासन पर बैठा। अंत में आमेर के राजा भारमल ने मुगलों की सहायता से उस नगर का विनाश किया। वह आमेर के राजाओं में प्रथम शासक था, जिसने मुस्लिम सत्ता के समक्ष उसकी सर्वोच्चता स्वीकार कर ली। सबसे पहले भारमल ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर के साथ किया। फिर उसके पुत्र भगवंत दास ने सलीम के साथ अपनी कन्या का विवाह किया। अकबर का सेनानायक राजा मानसिंह भगवंत दास का पुत्र था।

गुजरात का अमरेली और उत्तर प्रदेश का अयोध्या

गुजरात का अमरेली नामक शहर कभी अम्रीलिका के नाम से जाना जाता था । पाठ भेद से अब इसे अमरेली के नाम से जाना जाता है। यह दोष भी विदेशी आक्रमण कार्यों के उच्चारण दोष का परिणाम है। 

संसार की सबसे पहली राजधानी अवध है । आजकल यह अयोध्या के नाम से जानी जाती है। इसे कभी अपराजिता, कोशला, साकेत, विशाखा, नंदिनी, विनीता के नाम से भी जाना जाता था। इन सभी शब्दों के साथ कोई न कोई विशेष रोचक घटना का उल्लेख या किसी महान इतिहास नायक का नाम जुड़ा है। इक्ष्वाकु भूमि और दशरथ पुरी के नाम से भी इसका पुराणों में उल्लेख मिलता है। अयोध्या एवं साकेत अभिन्न नाम हैं। रघुवंश में साकेत अयोध्या के पर्याय रूप में प्रयुक्त किया गया है।रामायण में इसके विषय में स्पष्ट लिखा है कि इसका निर्माण मनु वैवस्वत ने किया था और यह उनकी स्वयं की और उनके पश्चात उनके वंशजों की राजधानी रही थी। परम प्रतापी शासक मांधाता और सगर के शासनकाल में अयोध्या का राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था । उनके अतिरिक्त भगीरथ, अंबरीष, दिलीप और दशरथ के पुत्र श्री राम अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट हुए हैं। दिलीप के समय में अयोध्या राज्य का नाम कोशल हो गया था। दशरथ ने यहां दो अश्वमेध यज्ञ संपन्न किए थे। मुसलमानों ने अपने शासनकाल में इसे फैजाबाद का नाम दिया। अयोध्या का इतिहास भारत का नहीं, संपूर्ण भूमंडल का इतिहास है। इतिहास का पुनर्लेखन इसीलिए आवश्यक है कि जब हम अपने अतीत के गौरवपूर्ण पृष्ठों को स्पष्टतया समझने लगेंगे तो हमें बहुत सारे भेद समझ आने लगेंगे।
अरुणकुंडपुर का नाम आजकल वारंगल मिलता है। इसी प्रकार आबू पर्वत भी अपने मूल रूप में अर्बुद पर्वत के नाम से भी जाना जाता रहा है। यह अरावली पर्वतमाला में स्थित है। कभी का अवंतिका कालांतर में अवंती, अवंतीपुर बना और आजकल इसी को हम उज्जैन के नाम से जानते हैं। आजकल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इस शहर को अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल के रूप में स्थापित करने पर विशेष ध्यान दे रही है।
(यह सारी जानकारी हमने ‘भारतवर्षीय ऐतिहासिक स्थलकोश’ के आधार पर प्रस्तुत की है। जिसे डॉ यशवंत सिंह कठोच द्वारा लिखा गया है। )

दिनांक : 25 मार्च 2023

मेरी पुस्तक …..तो क्या इतिहास मिट जाने दें से

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