ओ३म् -आर्यसमाज धामावाला, देहरादून का साप्ताहिक सत्संग- “अहंकार व्यक्ति का विनाश करता है।: आचार्य अनुज शास्त्री”

हमें आज दिनांक 14-1-2024 को आर्यसमाज-धामावाला, देहरादून के साप्ताहिक सत्संग में सम्मिलित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। हमारे सत्संग में पहुंचने पर आर्यसमाज के पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जी आज से पं. देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय जी रचित ऋषि दयानन्द जी के जीवन-चरित का पाठ आरम्भ कर रहे थे। जीवनचरित का यह पाठ प्रत्येक सत्संग से पूर्व इसकी समाप्ति तक किया जाता रहेगा। पंडित जी ने आज स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी लिखित ऋषि जीवन चरित की भूमिका का पाठ किया। पुरोहित जी के बाद आर्यसमाज के यशस्वी युवा विद्वान आचार्य अनुज शास्त्री जी का उपदेश हुआ। 

आचार्य अनुज शास्त्री जी ने कठोपनिषद् को केन्द्र में रखकर अपना उपदेश किया। उन्होंने कहा कि अहंकार व्यक्ति का विनाश करता है। आचार्य जी ने कहा पिछले दिनों वह गुजरात में प्रचार पर गये थे। वहां बड़ी संख्या में स्वामी नारायण मत के अन्तर्गत संचालित किये जाने वाले मन्दिर हैं। उन्होंने गुजरात एवं अन्यत्र बड़ी संख्या में संचालित इस मत के शिंक्षा संस्थानों की चर्चा भी की। 

आचार्य जी ने कहा कि बालक नचिकेता सत्य की खोज कर रहे थे। उन्होंने बताया कि यमाचार्य ने कठोपनिषद् में बताया है कि नचिकेता एक अग्नि भी है। आचार्य जी ने कहा कि वेदों में चार आश्रमों का विधान किया गया है। आश्रम व्यवस्था परमात्मा द्वारा प्रदत्त व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि आश्रम व्यवस्था को जानकर ही ब्रह्मयज्ञ को भलीप्रकार से जाना जा सकता है। आचार्य जी ने चार आश्रमों ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम की चर्चा की और उनके स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डाला। आचार्य जी ने श्रोताओं को बताया कि ब्रह्मचर्य आश्रम का प्रथम कर्तव्य संस्कृत व्याकरण सहित सभी वा अधिकांश विद्याओं का अध्ययन करना है। उन्होंने कहा कि जो सत्य व असत्य का यथार्थ रूप में ज्ञान कराती है उसे विद्या कहते हैं। इस विद्या को सीखना शिक्षा कहलाती है। 

आचार्य अनुज शास्त्री जी ने कहा कि जब तक हमारे देश में गुरुकुलीय, वैदिक तथा आश्रम व्यवस्थायें रहीं, इनसे सारी दुनियां में हमारे देश एवं संस्कृति की पहचान बनी थी। इसी काल में हमारे देश को विश्व के लोग सोने की चिड़िया नाम से पुकारते थे। आचार्य जी ने कहा कि प्राचीन भारत की शिक्षा व्यवस्था तथा न्याय व्यवस्था के कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था। उन्होंने बताया कि गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था में सबसे बड़ी बात सब विद्यार्थियों को समान माना जाता था। सभी विद्यार्थी चाहे वह राजा का पुत्र हो या निर्धन मनुष्य का, किसी से किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता था। आचार्य जी ने बताया कि जब ब्रह्मचारी शिक्षा पूरी कर लेते थे तो उनका वर्ण निर्धारिण गुरुकुल के आचार्य किया करते थे। यह वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य हुआ करते थे। 

आचार्य जी ने अपनी ओजस्वी एवं तेजस्वी वाणी में अपने विचार प्रस्तुत किये। आचार्य जी का स्वाध्याय अत्यन्त विस्तृत है। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक प्रसंग भी प्रस्तुत किये और वैदिक धर्म की महत्ता को प्रतिपादित किया। आचार्य जी के प्रवचन के पश्चात आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने आचार्य जी का धन्यवाद किया और अनेक सूचनायें दीं। उन्होंने बताया कि आगामी रविवार को भी आचार्य अनुज शास्त्री जी का प्रवचन होगा और वह कठोपनिषद् की कथा को आगे जारी रखेंगे। सभा को आर्यसमाज के युवा मंत्री श्री नवीन भट्ट जी ने भी सम्बोधित किया। इसके बाद आर्यसमाज के पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री जी ने शान्तिपाठ कराया। सत्संग में आर्यसमाज के पुराने और युवा सदस्यों सहित बाल वनिता आश्रम के बच्चे सम्मिलित हुए। सत्संग की समाप्ति के पश्चात प्रसाद वितरण सहित सभी सत्संगियों ने जलपान किया। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य
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