भारत में सती प्रथा और राजा राममोहन राय

भारत की राजधानी बंगाल में,
मानव मात्र का धर्म एक है इसका प्रचार किया राजाराममोहन राय ने ।
सती प्रथा का विरोध, बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थन आदि करने के लिए एक संगठन बनाना गया 20 अगस्त 1828 में।
उसके बाद बंगाल में आर्य समाज की स्थापना हुई 1885 में ।
इसका बाद जन्म हुआ रामकृष्ण मिशन का 1897 में ।
इसके बाद बंगाल के धरती पर विशेष कर बंगालियों ने अपने हिंदुत्व के प्रचार के लिए कई संगठन बना जैसा स्वामी प्रणवानंद जी ने भारत सेवाश्रम संघ बनाया 1917 में ।
उसके बाद अपने गुरुडम वाद को चलाने के लिए इसी बंगाल में ।
ठाकुर अनुकूल चंद्र ने अपना संगठन बनाया 1946 में ।
इसके बाद बंगाल में और संगठन बना आनन्द मठ के नाम जो 1955 में इसकी स्थापना हुई ।
आज सम्पूर्ण विश्व भर में ।
स्काॅन वालों का प्रचार हुआ यह भी बंगाल में जन्म लिया 13 जुलाई 1966 को ।
यह थोड़ी सी जानकारी बंगाल प्रान्त में कौन कौन संगठन का कब कब स्थापना हुई लिखा हूं ।
इसके अतिरिक्त और भी नए नए कई संगठनों की स्थापना हुई है ।
आज भी भारत भर मतुआ संप्रदाय का प्रचार बंगाल में जोरों पर है । जिसका जन्म कुछ दिन पहले हुआ था ।
आज यह संगठन भारत सरकार द्वारा प्रचारित प्रसारित हो रही है ।
गीता प्रेस गोरख पुर का कल सुना आप लोगों ने जो अभी अभी 100 साल मनाया है ।
भारत के प्रधान मंत्री ने खुद गोरख पुर गए और सौ करोड़ रुपया भी दे कर आए ।
मेरा कहना यह है की इस भीड़ में आर्य समाज कहां खड़ा है ?
मोमबत्ती जला कर ढूंढ़ ने पर भी बंगाल प्रान्त में आर्य समाज का नाम देखने को क्यों नहीं मिल रहा है ?
जो आर्य समाज बंगाल में 1885 में स्थापना हुई वह आज बंगाल में अपना प्रचार प्रसार क्यों नहीं कर पाया ?
मेरा सवाल यहां है, और इसका जो कारण मुझे नजर आया वह यह है की, बंगाल में सार्वदेशिक सभा दिल्ली ने मुझे भेजा था दिल्ली से 1985 में बंगाल आर्य प्रतिनिधि सभा में ।
मैं दिल्ली से बंगाल में प्रचारक नियुक्त हुआ ।
6 वर्ष निरन्तर बंगाल में रहा आर्य समाज में मेरा कोई उपयोग नहीं हुआ ।
बल्कि और जितने भी संगठन बंगाल में है जिसे मैं लिखा हूं उन लोगो ने पूरे बंगाल में मेरा उपयोग किया ।
मंच उन लोगों की लगी, और वैदिक विचार एकेश्वर बाद पर होता रहा मेरा ।
जो कुरान और बाइबिल में एकेश्वरवाद नहीं है ।
इसे मैं कुरान और बाइबिल से प्रमाणित करता रहा।
विशेष कर लोग मुझे बुलाते थे इन्हीं विचारों को सुनने के लिए ।
6 वर्ष सम्पूर्ण बंगाल भर तहलका मचा दिया, जब की मेरी जन्मस्थली भी इसी बंगाल में है ।
कई बार लोगों ने इसकी जानकारी लेने का भी प्रयास किया, मैं कहां से किस परिवार से हूं आदि।
वीएचपी द्वारा बहुत परिवारों को घर वापसी इसी एकेश्वर बाद इस्लाम में नहीं है इसका प्रमाण दे कर मुस्लिम परिवार के लोगों को वैदिक धर्मी बनाया ।
सबसे आश्चर्य की बात है की मैने यह सब सिखा जाना समझा आर्य समाज में आने के बाद।
पहले मैं भी नहीं जानता था इस सत्यता को ।
वेद के आगोश में आ कर ही जाना इसे ।
लेकिन बंगाल आर्य समाज का दुर्भाग्य देखिए की आर्य समाज में आज तक मेरा उपयोग न दिल्ली के अधिकारियों ने किया और न बंगाल आर्य समाज के अधिकारियों ने किया है ।
लेकिन भारत से लेकर विदेशों तक आर्य समाजों की प्रायः समाजों में मेरा 40 वर्ष तक जगह जगह आर्य समाजों में जाता रहा, एक बात मैं नहीं समझ पाया की दिल्ली तथा बंगाल के अधिकारियों ने मेरा उपयोग क्यों नहीं कर पाया?
मैं 1990 में कोलकाता से कानपुर,चला गया एक के बुलाने पर । फिर स्वामी शिवानंद जी ने गाजियाबाद, बुला लिया।
और इसके बाद दिल्ली में बिताया ।
बंगाल में आर्य समाज किस चिड़िया का नाम है यह तो आज तक बंगाल के लोग ही नहीं जान पाए ।
और जितने भी संगठन है बंगाल में जिसे उपर लिख चुका हूं यह लोग अपने प्रचार कार्य जिम्मेदारी से निभा रहे है ।
बंगाल में आर्य समाज क्या है आज तक बंगाल वालों को पता ही नहीं है ।
और न यह समाज के लोग बंगाल वालों को अपने साथ जोड़ना चाहते ।
इसके दो कारण मैने पाया जो थोड़ा बहुत बंगाली जुड़े हैं उन्हें समाज के अधिकारी अपने धन से बांध रखे हैं, उन्हें भी प्रचार से मतलब नहीं पैसों से मतलब है, उसकी पूर्ति हो रही है उन्हें और क्या चाहिए ?
समाज के अधिकारी बंगाल के लोगों को नहीं चाहते उन्हें अपनी कुर्सी का खतरा है ।
आज बंगला भाषी कुछ युवाओं को में अपने प्रयास से तैयार किया हूं जो ऋषि दयानन्द जी के विचारों से वेद विचारों से जोड़ा हूं ।
जो लोग कभी कभी कोलकाता आर्य समाज में भी आते है, जिन लोगों का उपनयन संस्कार मेरे द्वारा किया गया ।
कुछ दिन हो रहा है 38 युवा एकत्र हुए जिन्हें उपनयन लेना था ।
कुछ का उपनयन तो अपने निवास पर कराया, यह जो युवा आए हमें बैठने के लिए कोई स्थान नहीं मिली, उन लोगों को लेकर में विद्या सागर कालेज में बैठा । पर ज्यादा देर तक बैठने से मना किया न यज्ञ हुआ और न उपनयन ।
और बंगाल प्रतिनिधि सभा में मुझे बैठने के लिए दीनदयाल गुप्ता सभा प्रधान ने मना किए ।
यह स्थिति है बंगाल में आर्य समाज को लोगों ने जानकारी तो नहीं करा पाए, मेरे द्वारा जानकारी दिए जाने पर भी इन्हें पसन्द नहीं ।
इस स्थिति में बंगाल में आर्यसमाज का प्रचार कैसा हो ?
जब की यही बंगाल सभा ने अपने तीन वर्ष के रिपोर्ट में प्रचार कार्य में, मेरा नाम दो जगह लिख रखा है ।
बहुत कुछ बाकी है लिखना धन्यवाद के साथ महेंद्र पाल आर्य। 27/12/2023

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