​अपने ही फेंके जाल में फंस गया चीन, हांफती इकॉनमी के लिए गले की फांस बनी शी जिनपिंग की नीति*

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छोटे और गरीब देशों को पहले लोन देना और फिर उस लोन के दम पर उस देश पर कब्जा करना चीन की पुरानी चाल है। चीन की आक्रमक विदेश नीति में लोन डिप्लोमेसी का अहम रोल रहा है, लेकिन अब यही लोन डिप्लोमेसी उसके गले की फांस बन गया है।

◆ कोविड के कारण लॉकडाउन के सख्त नियम ने चीन की अर्थव्यवस्था पर गहरा चोट किया है।
◆ चीन में वस्तुओं की कीमतें घट रही हैं। चीनी पैसा खर्च करने की स्थिति में नहीं है। जुलाई से ही चीन डिफ्लेशन के दौर से गुजर रहा है।
◆ स्थानीय सरकारों का भारी-भरकम कर्ज, रिकॉर्ड लो बर्थ रेट, डूबता रियल एस्टेट मार्केट और चरम पर पहुंचा बेरोजगारी दर चीन के लिए सिरदर्द बना हुआ है।
◆ चीन में लोकल गवर्नमेंट ने भारी-भरकम कर्ज ले रखा है। यह कर्ज अब बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है।

चीन ने निचले और मध्यम अर्थव्यवस्था वाले देशों को करीब 1100 अरब डॉलर से अधिक के लोन बांटे, जिनमें से 80 प्रतिशत देश ऐसे हैं, जो इस पैसे को चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में चीन की मुश्किल बढ़ गई है कि वो इन पैसों की वसूली कैसे करेगा?

■ चीन की लोन डिप्लोमेसी हमेशा से विवादों में रही है। छोटे देशों को पहले इंफ्रास्टक्चर के नाम पर लोन बांटना और फिर उसपर धौंस दिखाना चीन की पुरानी चाल रही है।
■ चीन के सरकारी बैंक, जितना अपने यहां लोन नहीं बांटते, उससे ज्यादा कर्ज वो दूसरे देशों को दे रहे हैं।
■ भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश भी चीन के कर्ज के जाल में फंसा हुआ है। लेकिन अब चीन की लोन डिप्लोमेसी उसके लिए गले की फांस बनता जा रहा है। चीन ने जो लोन छोटे देशों को फंसाने के लिए बांटे अब वो फंस गया है।
■ चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है। सस्ते लेबर और आधुनिक तकनीक के दम पर यह दुनिया की फैक्ट्री बना बैठा है। चीन की आक्रमक विस्तार नीति अब उसके लिए मुसीबत बन गई है।
■ चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है। सस्ते लेबर और आधुनिक तकनीक के दम पर यह दुनिया की फैक्ट्री बना बैठा है। चीन की आक्रमक विस्तार नीति अब उसके लिए मुसीबत बन गई है।
■ अपनी आक्रमक विस्तार नीतियों, अपनी महत्वकांक्षाओं के लिए चीन पानी की तरह पैसे का इस्तेमाल करता रहा है। चीन गरीब और छोटे देशों को सशर्त लोन बांटता रहा है।
■ लोन के साथ ऐसी शर्तें होती हैं, जो उसे ही फायदा पहुंचाए। लोन के लिए दिए गए शर्तों में एक शर्त यह भी होता है कि अगर तय समय पर कर्ज वापस नहीं किया गया तो वो देश अपने कुछ अधिकार चीन को देगा। इसी शर्त के तहत चीन ने श्रीलंका से उसका हम्बनटोटा पोर्ट छीन लिया।
■ सिर्फ श्रीलंका ही नहीं कई देश चीन की इस चाल का शिकार बन चुके हैं। इसी तरह से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के लिए भी चीन ने यही चाल चली।
■ पाकिस्तान चीन का कर्ज नहीं लौटा सका, जिसके बाद ग्वादर पोर्ट को 40 साल के लिए चीन की कंपनी को लीज पर सौंप दिया गया। इस बंदरगाह से चीन तो फायदा हो रहा है।

चीन ने जिन छोटे और गरीब देशों को लोन बांटे, उनमें से 80 फीसदी देश ऐसे हैं, जो लोन चुकाने की हालात में नहीं है। ऐसे में चीन का फंसा लोन उसके लिए मुसीबत बनता जा रहा है। सवाल यह है कि आखिर चीन इन पैसों की वसूली कैसे करेगा?

प्रेषक : मां राज्य लक्ष्मी जी ( अमेरिका )

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