“सनातन को नष्ट” करने वाली विषैली भाषा अभिव्यक्ति नहीं_?

तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स एंड आर्टिस्ट एसोसिएशन के ‘सनातन उन्मूलन सम्मेलन’ पर 2 अगस्त को चेन्नई में आयोजित हुई एक बैठक में तमिलनाडु राज्य के एक मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने अपने वक्तव्य में सनातन धर्म की तुलना कोरोना, डेंगू और मलेरिया आदि से करके अपनी विषैली भाषा में कहा कि “सनातन धर्म सामाजिक न्याय के विरुद्ध है, इसका विरोध नहीं, बल्कि इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया जाना चाहिए” l क्या इस विष वमन का वास्तविक अर्थ यह नहीं होगा कि सनातनी हिन्दुओं और उनकी संस्कृति का सर्वनाश करने की घिनौनी सोच वाले ईसाई मिशनरियों, जेहादियों और वामपंथियों आदि को और अधिक दुस्साहसी बनाया जाए ? इतना ही नहीं सनातन विरोधी उदयनिधि के प्रभाव में इस हिन्दू विरोधी कार्यक्रम का नाम “सनातन विरोध करना नहीं”, बल्कि “उसका खात्मा करना” रखा गया l

यह कितनी दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना है कि आज सनातन विरोधी राजनीति इतनी अधिक आक्रमक और दूषित हो गई है कि हिन्दुओं के हज़ारों वर्षो के गौरवशाली एतिहासिक अस्तित्व को भी संकट में डालने के लिए सारे हथकंडे अपनाये जा रहे हैं l

क्या इस घृणित एवं जहरीली शैली में सनातन को नष्ट करने की भाषा बोलने वालों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कोई छूट दी जा सकती है या फिर देश के 80% बहुसंख्यक हिन्दू समाज के प्रति घृणा और हिंसा को भड़काने की “हेट स्पीच” के अंतर्गत कोई न्यायालय स्वत: संज्ञान लेने की आवश्यकता समझेगा?

यदि कोई स्वाभिमानी हिन्दू इसके अर्थ को विस्तार से समझेगा तो वह आत्मग्लानि की पीड़ा में कहीं इतना अधिक आक्रोशित न हो जाय कि वह जेहादियों के समान ‘सर तन से जुदा’ के प्रभाव में आकर कानून को भी अपने हाथ में लेने का अपराध कर बैठे? लेकिन हिन्दुओं को अपनी सनातन संस्कृति पर गर्व है कि वे अपने शाश्वत सनातन धर्म के समान ही स्वभाव से ही सहिष्णु और उदार होते हैं l इसलिए सनातन के विरुद्ध षडयंत्र रचने वालों को संविधान और विधान की सहायता से ही कुचलने का आक्रमक प्रयास करना होगा l

यह भी विशेष ध्यान में रखना चाहिए कि ‘सनातन धर्म को मिटाने की बात’ करने वालों को यदि कोई ‘मिटाने की बात’ भी करेगा तो उनके विरुद्ध कोई “स्वत: संज्ञान” ले, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा,क्योंकि “छ्द्म धर्मनिरपेक्षता” का यही चरित्र बन चुका है l

हमारे नीति-नियंताओं को “सनातन को नष्ट” करने वाली विषैली भाषा बोलने वालों को “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के अधिकार से वंचित करना होगा अन्यथा कट्टरपंथियों और उदारवादियों में बढ़ते वैमनस्य को नियन्त्रित नहीं किया जा सकेगा?

विनोद कुमार सर्वोदय

(राष्ट्रवादी चिंतक एवं लेखक)

गाजियाबाद l

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