*महिषासुर मर्दिनि वैष्णवी माता*

Dr D K Garg
भाग 1
पौराणिक कथा -दुर्गा महिषासुर मर्दिनि भी है, दुर्गा ने महिषासुर का दामन किया था।महिषासुर एक असुर था उसका पिता असुरों का राजा रंभ था. रंभ को एक महिषी (भैंस से प्रेम हो गया। महिषासुर इन्हीं दोनों की संतान था। इंसान और भैंस के समागम से पैदा होने की वजह से महिषासुर जब चाहे मनुष्य और जब चाहे भैंस का रूप धारण कर सकता था।
महिषासुर ने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की कि उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे वरदान मांगने को कहा, महिषासुर ने कहा कि उसे ये वरदान दें कि देवता या दानव कोई उस पर विजय प्राप्त न कर सके, ब्रह्मा का वरदान पाकर महिषासुर आततायी हो गया, वो देवलोक में उत्पात मचाने लगा, उसने इंद्रदेव पर विजय पाकर स्वर्ग पर कब्जा जमा लिया। ब्रह्मा विष्णु महेश समेत सभी देवतागण परेशान हो उठे. महिषासुर के संहार के लिए सभी देवताओं के तेज से मां दुर्गा का जन्म लिया।
मां दुर्गा को सभी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र दिए, भगवान शिव ने अपना त्रिशूल दिया, भगवान विष्णु ने अपना चक्र दिया, इंद्र ने अपना वज्र और घंटा दिया, इसी तरह से सभी देवताओं के अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित मां दुर्गा शेर पर सवार होकर महिषासुर का संहार करने निकली।
विश्लेषणः
इस कथा को दो प्रकार से समझना होगा एक शरीरधारी रानी दुर्गा की कथा जिसने महोबा के महिशासुर राजा का वध किया ।
दूसरे वेद मन्त्रों में प्रयोग दुर्गा शब्द और इसका अलंकारिक भाषा में भावार्थ ।
प्रचलित पौराणिक कथा आज के वैज्ञानिक युग में पूरी तरह से नकार देनी चाहिए क्योंकि इस प्रकार की बिना सिर पैर के कथानक पर विश्वास करना मूर्खतापुर्ण है ।

इस कहानी पर बहुत प्रश्न उठते हैं?
प्रश्न १-क्या मनुष्य और भैंस के समागम से संतान उत्पन्न हो सकती है ?
२-वे सन्तान जो मनुष्य का और भैंस का रूप धारण कर ले क्या यह सम्भव है ?
3.क्या हमारे पूर्वक मूर्ख और चरित्र से गिरे थे कि भैस से संभोग करेंगे?
4.क्या ब्रह्मा विँष्णु महेश जो परमात्मा के ही नाम हैं क्या वे परमात्मा शक्तिहीन है जो उस महिषासुर के सामने शक्तिहीन हो गए ?
5-जिन ब्रह्मा विष्णु महेश ने शक्तिशाली दुर्गा की उत्पत्ति की वे स्वयं दुर्गा से अधिक शक्तिशाली थे वे क्यों नहीं दानव को मार सके ?

  1. आगे कहा है की महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंसा और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था.ये बात भी ईश्वर के नियमो के विपरीत है ।
  2. कथा में आगे कहा है की महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा का अर्थ है उसने शांतिप्रिय जनता का जीना दूभर कर दिया। इससे पूर्व वहाँ रहने वालों की जिंदगी स्वर्ग की तरह थी परन्तु उसने उत्पात मचाना शुरू कर दिया।
    उसने सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया का मतलब उसके डर से वह देवता तुल्य विद्वान लोगों ने पलायन शुरू कर दिया ।
    और कोई उपाय न मिलने पर देवताओं ने उसके विनाश के लिए दुर्गा का सृजन किया,
    गजब की तुकबंदी है इस कहानी मे।

महिषासुर का भावार्थ: महिष शब्द के दो अर्थ है। पहला भैंसा 2. वह राजा जिसका शास्त्रानुसार अभिषेक हुआ हो ।
असुर का अर्थ है जिसकी प्रवृति अच्छी ना हो , राक्षसी हो ,अमानवीय हो।
इस प्रकार यदि महिषासुर शब्द किसी मानव के लिए प्रयोग हुआ है तो इसका अर्थ भैंसा नहीं हो सकता क्योकि भैंसा एक पशु है , लेकिन किसी राजा की प्रवृति भैंसा जैसी होने के कारण अलंकारिक भाषा में उसको महिषासुर कहा गया प्रतीत होता है। इसलिए महिषासुर का अर्थ होता है एक ऐसा राजा जिसकी प्रवृति अमानवीय हो ,असुरो की तरह हो । राजा जब अत्याचारी हो तो वह मनमानी करने लगता है और देवतातुल्य जनता कष्ट से त्राहि त्राहि करने लगती है।इतिहास पर गौर करे तो अनेकों मुगल बादशाह और तानाशाह के उदाहरण मिलेंगे।और जनता सिर्फ ईश्वर से प्रार्थना करने और उपयुक्त अवसर की तलाश के अलावा कुछ नही कर सकती ,ऐसे असुर राजा का एक दिन विनाश होता ही है।जैसे इस कथानक में असुर राजा का रानी दुर्गा ने संहार किया।
वैदिक भावार्थ;

इस कथानक में महिषासुर मन के लिए प्रयोग हुआ है। मनुष्य अपने मन का राजा है और ये मन महिषासुर की भांति है जिसमे अशुद्ध -कलुषित प्रवर्तियाँ भी जन्म लेती रहती है। मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है इसलिए उसमे देव और असुर दोनों प्रकार की प्रवर्तिया जाग्रत होती रहती है। उदाहरण के लिए कभी अत्यधिक गुणी व्यक्ति में अहंकार भी हो जाता है ,कभी ज्ञान का दुरूपयोग भी होता है , इसको महिषासुर प्रवृति का नाम दिया है।
इसके ऊपर ब्रहविद्या के द्वारा ,ज्ञान-विज्ञानं के द्वारा नियंत्रण करना, संयम करना ही महिषासुर का दमन है।
इस अध्यात्म ज्ञान, ब्रह्म विद्या को ही माँ दुर्गा की उपाधि प्राप्त है और यह देखो यह दुर्गा माँ सिंह पर सवार है, सिंह इसका वाहन है। जब आत्मा इनके ऊपर सवार होकर, इनको धर्म के मार्ग पर चलाता है तो यही अलंकारी रूप में शेर की सवारी बन जाती है।
दुर्गा के आठ हाथ अष्टांग योग का प्रतीक है जिनमे यम ,नियम आदि आते है। इसके हाथ में त्रिशूल का अर्थ है माया रूपी तीन शूल –सत ,रज और तम इनको एक जगह लेकर अर्थात माया के तीनों गुणों पर अपने नियंत्रण द्वारा ही आप साधना में सफलता प्राप्त कर सकते है। भगवान विष्णु ने अपना चक्र दिया का भावार्थ है की सृस्टि को चलने वाले ईश्वर ने जीवात्मा को शांति और ज्ञान प्रदान किया जिसके बल पर जीवात्मा ने अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर मां दुर्गा शेर पर सवार होकर महिषासुर का संहार किया ।

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