गणित पढ़ने का हमारा ढंग कितना उचित ?

चन्दन घुघत्याल

हाल ही में अलग-अलग बोर्ड के रिजल्ट घोषित हुवे हैं, गणित विषय में छात्र-छात्राओं का प्रदर्शन बाकी विषयों के मुकाबले अच्छा नहीं रहा है, जबकि गणित विषय में शत प्रतिशत अंक प्राप्त करना आसान होता है। छात्र-छात्राओं के प्रदर्शन से गणित अध्यापक और अध्यापिकाओं की चिंता को समझा जा सकता है। साल भर छात्र-छात्राओं के साथ मेहनत करने के बाबजूद रिजल्ट आशानुरूप न होना भी चिंताजनक है। आखिर गणित के प्रदर्शन स्तर को कैसे सुधारा जाए और इसे कैसे पढ़ा जाए, इस पर गहन चिंतन की आवश्यकता है।

गणित जो कि एक रोमांचक विषय है, उसका डर आज भी बच्चों में ही नहीं अपितु उनके अभिभावकों में भी है। बच्चे के गणित की परीक्षा के पहले माँ-बाप को ज्यादा घबराहट में भी देखा गया है। जिस से भी मिलिए उनमें से आधे लोग गणित से डरे मिलते हैं। आखिर टेक्नोलॉजी और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के इस दौर में गणित से यह डर क्यों होगा। जो भी बच्चे अच्छा कर रहे हैं वे भी ज्यादा समय गणित पढ़ने में ही लगाते हैं। या फिर ट्यूशन भी गणित, विज्ञान का ही पढ़ते हैं। हजारों-लाखों रुपया गणित विज्ञान के ट्यूशन में अभिभावक खर्च करते हैं। आखिर ऐसी स्थिति क्यों है? हजारों सालों से मौखिक गणित, मेंटल गणना, फलित ज्योतिष और नुमेरसी में माहिर भारत भूमि की वर्तमान पीढ़ी की ऐसी स्थिति क्यों है? क्या हमारे गणित पढ़ने और पढ़ाने का ढंग गलत है? क्या गणित पढ़ना और पढ़ाना केवल परीक्षा पास करना हो गया है? क्या हम रटने का सिद्धांत अपना रहे हैं? इन्ही विषयो पर इस लेख में अध्ययन करेंगे।

मैं हाल ही में अपने स्कूल के एलुमनाई निखिल मेहरा से मिला। निखिल एक अच्छे इंटरप्रेन्योर हैं और अच्छी फैक्ट्री चलाते हैं। वह बोले गणित में उनका डिब्बा हमेशा गोल ही रहा, लेकिन यदि उनकी बिटिया 70-80 प्रतिशत भी ले आए तो अच्छी उपलब्धि होगी। हालाँकि उनकी बिटिया नाइजा गणित में कक्षा 10 में 98 अंक लाई , जबकि मेहरा का गणित के प्रति नजरिया नकारात्मक था। और वह नाइजा की क्षमता का कम आकलन कर रहे थे। एक अच्छा व्यवसायी होने के बाबजूद वह गणित से आज भी डर रहे थे, लेकिन गणित की महत्ता को समझ रहे थे। यही हाल कानपुर के एक्सपोर्टर अंकित अग्रवाल का भी था। अपने दोनों बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने के बावजूद वह यही बोलते थे कि उनके अंक, गणित में उनके बच्चों द्वारा प्राप्त अंकों के आधे भी नहीं होते थे। मैंने उनसे यही कहा कि बच्चों के सामने वह गणित में अपनी उपलब्धि के बारे में नकारात्मक शब्द न कहें, इससे बच्चों की सोच गणित सीखने में बदल सकती है। इसी का प्रतिफल रहा कि वंशी और वैभव ने गणित में अच्छा किया और वैभव ने गणित में ही मास्टर डिग्री की उपाधि ली। कहने का मतलब यह है कि हमें बच्चों के सामने गणित के प्रति अच्छा दृष्टिकोण रखना होगा। गणित को अछूत नहीं बल्कि अति आवश्यक कारक मानते हुए गणित का सही महिमामंडन करना होगा। मैथ इज नॉट माय कप ऑफ़ टी कहने के बजाय अभिभावकों को गणितीय भाषा को अपने दैनिक वार्तालाप में प्रयोग करना होगा। गणित द्वारा पूरे ब्रह्माण्ड को समझने में किए गए उपयोग को बताना होगा। क्षेत्रफल, आयतन, भार, करेंसी, जनसँख्या, आमदनी, खर्च, बचत, मोल भाव, विभिन्न मिश्रण में अनुपात, कार चलाते समय स्पीड, अक्सेलरेशन और औसत दूरी, पेड़ों की ऊंचाइयो में समानुपात, कोण, आसपास में उपलब्ध वस्तुओं का आकार प्रतिकार, ध्वनि, प्रतिध्वनि, आदि अनेकों चीजों के द्वारा गणित के बारे में बातें की जा सकती हैं। वैसे भी गणित को वैश्विक भाषा मानने वाले आइंस्टीन ने अपने चारों ओर देखकर ही तो नए नए सिद्धांत दिए |

प्रतिष्ठित द दून स्कूल के एलुमिनाई और बर्कली, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा प्राप्त अभिनव केजरीवाल का गणित पढ़ने के बारे में कहना है कि गणित पढ़ने के लिए केवल प्रश्नों का उत्तर देना ठीक नहीं है। गणित वास्तव में पढ़ने के लिए, हरेक सम्भावना, जिससे हम किसी प्रश्न का उत्तर ढूंढना चाहते हैं, को हमको खोजना और समझना होगा। केवल उत्तर पर पहुंचना गणित पढ़ना नहीं होता, उत्तर तक किस-किस प्रकार पहुंचा जा सकता है, वह महत्वपूर्ण है। केजरीवाल वर्तमान में टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप में चीफ ऑफ़ स्टाफ के पद पर कार्यरत हैं और वह मानते हैं कि गणित ने उनमें तर्क-वितर्क करने की क्षमता विकसित की है। उनका कहना है कि गणित पढ़ने और पढ़ाने की विधियों में क्रांतिकारी परिवर्तन करने की नितांत आवश्यकता है।

कुमाऊं विश्विद्यालय, उत्तराखंड आवासीय विश्वविद्यालय सहित अन्य विश्व विद्यालयों के कुलपति रह चुके महान गणितज्ञ प्रोफेसर एचयस धामी, जिन्होंने गणित अध्यापन के साथ-साथ गणित के एडवांसमेंट और रिसर्च में उल्लेखनीय कार्य किया है, उनका कहना है कि गणित जीवन जीने की कला सीखाता है। गणित हमारे चारों ओर विद्यमान है, गणितीय संक्रियाएँ किसी न किसी पैटर्न या मॉडल में दिख ही जाती हैं। गणित को तोते की तरह रटना या करना नहीं बल्कि समझना चाहिए। एक रोबोट और मनुष्य के दिमाग में अंतर दिखना चाहिए। गणित में ज्यादा रिसर्च करने की जरुरत है। गणित का डर दूर करने के लिए वह गणित को करके सीखने और परीक्षा प्रणाली में सुधार किये जाने पर जोर देते हैं। वह कहते हैं कि उच्च शिक्षा में कई हद तक सुधार किये गए हैं, अब स्कूली शिक्षा में भी आमूलचूल परिवर्तन किये जाने की आवश्यकता है।

राजकीय इण्टर कॉलेज महाकालेश्वर (चौखुटिया) के प्रधानाचार्य श्री गोपाल घुघत्याल ने गणित को सर्वोच्च स्थान पर विराजमान रहने वाले शक्तिशाली राजा के सामान बताया। उनके अनुसार गणित सभी विषयों की रीढ़ की हड्डी है और यह ही सोचने समझने के लिये आधार तैयार करता है उन्होंने कहा कि अच्छे और प्रेरक अध्यापक रुचिपूर्ण तरीके से बच्चों को यदि गणित पढ़ाएं तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे और गणित का अन्य विषयों के साथ अच्छा समागम होगा। लर्निंग और प्रोग्रेसिव माहौल में बच्चों में गणित के प्रति स्वतः आकर्षण होगा और बच्चे कक्षा में सीखे ज्ञान को अपने चारो ओर की चीजों को सीखने में लगाएंगे, जिससे एक्सपीरिएंसियल लर्निंग की परिकल्पना भी पूर्ण होगी।

अल्मोड़ा में एक विद्यालय के संचालक श्री गणेश दत्त भट्ट गणित को जीवन का अनिवार्य अववय बताते हैं और जोर देकर कहते हैं कि जिस तरह जीवन हेतु ऑक्सीजन की आवश्यकता है उसी तरह किसी भी विषय की गूढ़ जानकारी हेतु गणितीय ज्ञान होना आवश्यक है। वह कहते हैं कि गणित मनुष्य के साथ जन्म से पहले से ही जुड़ जाता है और जीवन के बाद यह पारलौकिक जीवन यात्रा में भी साथ रहता है।

मुंबई IIT से कंप्यूटर में बी टेक कर रहे छात्र सृजन ने अपना अनुभव साझा करते हुवे बताया कि गणित केवल इंजीनियरिंग के लिए ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण है। गणित करने से अनुशासन सीखता है और साथ ही स्वाध्याय की ललक बढ़ती है। गणित में पारंगत होने का कोई भी शॉर्टकट नहीं है, लगातार अभ्यास, कॉन्सेप्ट्स का डे टुडे एक्टिविटीज में उपयोग करने से और गणितीय संक्रियाओं (थेओरेम्स) का विजुलाइज़ेशन करने से गणित को अच्छा सीखा जा सकता है। बार बार अभ्यास करने और अनेकों विधियों से प्रश्न हल करने, ओलिंपियाड सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न हल करने से गणित में निपुणता अवश्य आएगी।

नोएडा के प्रतिष्ठित कैंब्रिज स्कूल की गणित अध्यापिका सुश्री प्रीती घई, गणित के प्रश्नों को हल करने को योग- प्राणयाम मानती हैं। वह कहती हैं कि यदि गणित को एक चल्लेंजिंग फ्रेंड की तरह स्वीकार किया जाय तो यह दोस्ती ताउम्र रहती है। गणित का स्तर सुधारने के लिए हर बच्चे को गणित को हर्डल रेस की तरह लेते हुवे राह में पढ़े हर रुकावट को गेम स्पिरिट की भांति पार करना चाहिए। सुश्री घई कहती हैं कि समर्पण भाव से गणित करने से सफलता अवश्य मिलती है।

बिरला पब्लिक स्कूल पिलानी (राजस्थान) में गणित अध्यापक और हेडमास्टर रहे श्री आनंदबल्लभ सती कहते हैं कि गणित पढ़ने के लिए आत्म विश्वास और जनून की जरुरत होती है। सामने यदि लक्ष्य हो तो हर विषय पढ़ने में मजा आता है। वह गणित के प्रति रूचि को एक स्वतःस्फूर्ति घटना बताते हैं। वह कहते हैं कि पढ़ने के साथ ही उन्होंने अजीविका के लिए पढ़ाना प्रारम्भ किया तो उनकी गणित के प्रति जिज्ञाषा बढ़ी, उसी जिज्ञाषा को उन्होंने बच्चों में ट्रांसफर किया और इन्क्वारी बेस्ड टीचिंग की | जिसके परिणाम स्वरुप उनका परीक्षाफल अच्छा रहा और साथ में बच्चों में गणित का डर भी कम हुवा।

भारतीय वायु सेना में कार्यरत विंग कमांडर दीपक लोखाना कहते हैं कि लोग जिस तरह साहसिक क्रियाकलापों जैसे पर्वतारोहण, रिवर राफ्टिंग, स्कीईंग आदि में भाग लेकर अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमताओं को मजबूत करते हैं ताकि जीवन में आने वाली बाधाओं का मुकाबला करने की क्षमता विकसित हो। उसी तरह गणित के प्रति उनका रुझान बचपन से ही एक चैलेंज की तरह अपने आप हुवा। उन्होंने गणित की हर प्रॉब्लम को एक चैलेंज की तरह लेते हुवे करियर के हर सोपान में सफलता प्राप्त की।

गणित को यदि एक एडवेंचर की तरह पढ़ा या पढ़ाया जाय तो वास्तव में यह रोमांचकारी लगेगा और मन मुताबिक आउटपुट देगा। इसी तरह की सोच भारतीय सेना में कर्नल प्रवीण जोशी (सीओ कुमाऊं रेजीमेंट) रखते हैं। कर्नल जोशी गणितीय सोच होने को ही आज अपनी उपलब्धि का आधार बताते हैं। वॉर जोन की स्ट्रेटजीज को वह गणित के गुणा, भाग और प्रश्न हल करना जैसा बताते हैं। कर्नल जोशी गणित शिक्षा को अनिवार्य बताते हैं और जोर देकर कहते हैं कि गणित के बेसिक्स और दैनिक उपयोग में गणित को बच्चों को पढ़ाया जाय, तो वे गणित के प्रश्न ख़ुशी ख़ुशी करेंगे। गणित के टर्म्स का अर्थ बच्चों को बताया जाय और हर टॉपिक का पढ़ने का कारण भी बताने से वे गणित की महत्ता को समझेंगे तो डर नाम की चीज ही नहीं होगी।

छात्र अनंत से जब गणित सीखने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने गणित को अपना सबसे अधिक पसंदीदा विषय बताया। उन्होंने कहा कि वह रोज गणित के प्रश्न करते हैं, लॉजिकल एंड रीजनिंग प्रश्न भी करते हैं जिसके फलस्वरूप उनके बाकी विषयों में भी अच्छी समझ है। गणित में रूचि और संख्यात्मक माइंडसेट का श्रेय वह अपने परिवार के अकादमिक वातारण और अपने गणित के शिक्षक को देते हैं। अनंत वैदिक गणित में भी काफी पारंगत है साथ ही उसे गणित में होने वाले तात्कालिक एडवांसमेंट की भी अच्छी जानकारी है।

ग्रहणी सुश्री चंद्रा मनराल कहती हैं कि जब वह कक्षा ७ -८ में पढ़ती थी तो उन्हें गणित के प्रमेयों को रटाया जाता था, गणित के लम्बे सवालों को भी एक तरह से याद करने को कहा जाता था। हर प्रश्न को कुंजी से उतारकर वह लिख देती थी। गणित की समझ तो विकसित किसी ने भी नहीं की जिसके कारण उनको गणित से डर लगने लगा। गणित को गलत तरह से पढ़कर उनकी रूचि समाप्त हो गयी और उन्होंने पढ़ाई ही छोड़ दी। सुश्री मनराल बताती हैं कि वह एक होनहार छात्रा थी और अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम स्थान प्राप्त करती थी , उन्हें सरकार द्वारा कक्षा ६-८ तक छात्रवृत्ति भी मिलती थी। लेकिन पढ़ाई के प्रति डर ने उनके पंखों की उड़ान को विराम दे दिया। न जाने ऐसे कितने ही लोग होंगे जिन्होंने गणित को गलत ढंग से पढने और पढ़ाने की वजह से अपनी शिक्षा अधूरी ही छोड़ दी।

एक कॉर्पोरेट फर्म में काम कर रहे श्री मोहन चंद्र से जब मैंने उनकी गणित सीखने की यात्रा के बारे पूछा तो उन्होंने दर्द भरी कहानी बताई। अल्मोड़ा के सुदूर गांव में उन्होंने तीन बार कक्षा दस की परीक्षा दी और वह हर बार गणित में फेल हो गए। उसके बाद अल्मोड़ा में एक ऑटोमोबाइल शॉप में काम करने लगे। वहां उन्होंने रात रात पढ़ कर दसवीं की परीक्षा पास की, फिर इण्टर, बी ए और L L B की परीक्षा पास कर कुछ साल कोर्ट में प्रैक्टिस की और आज अच्छे मुकाम पर पहुंचे हैं। कहने का मतलब है कि केवल गणित में फेल होने की वजह से उन्होंने अपने जीवन के तीन साल बर्बाद किये। पांच विषयों में पास होने वाला बच्चा आखिर गणित में ३३ अंक भी क्यों नहीं ला पाया होगा ? यह एक सोचनीय विषय है। कहाँ कमी रही होगी ? श्री मोहन जैसे कम ही होंगे जिन्होंने अपनी लगन से पढ़ाई की और आगे बढे, अन्यथा सैकड़ों बच्चे दसवीं में २-३ बार गणित में फेल होने के कारण महानगरों में ढाबों या फैक्ट्रियों में काम करने को मजबूर हुवे होंगे।

गणित में अच्छा करने के लिए इसको रुचिपूर्ण बनाना होगा। खेल खेल में सीखने की विधि से गणित को सीखना होगा। पैटर्न , ब्लॉक्स, चैस, लूडो, मैथ पज़ल्स, मैजिक स्क्वायर, टैन ग्राम्स, सुडोकू आदि एक्टिविटीज़ कक्षा में करने से बच्चों की जिज्ञाषा बढ़ेगी और वे गणित को प्रश्न हल करना ही नहीं समझेंगे अपितु एक खेल की तरह सीखेंगे। अप्पर प्राइमरी स्तर पर बच्चेों को प्रोजेक्ट बेस्ड और फील्ड ट्रिप के माध्यम से गणित सीखने को प्रेरित करना होगा। हाई स्कूल और इण्टर लेवल पर रिसर्च, प्रैक्टिकल्स, इन्वेस्टीगेशन और मॉडलिंग , डेटा – एनालिसिस, ग्राफ्स और टेक्नोलॉजी पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है।

गणित हमारी जिंदगी का एक दिलचस्प और रोचक हिस्सा है जिसको हम सभी को पढ़ना ही पढता है, क्योंकि अंकों को पहचानना, हिसाब लगाना, खरीददारी करना आदि आदि के साथ हम सभी को अपने आसपास की चीजों को समझने और तार्किक बुद्धि की जरुरत होती है। इसी विषय को पढ़कर हम बहुत ही महत्वपूर्ण सेक्टर जैसे इंजीनियरिंग, साइंस, अर्थव्यवस्था, मनोविज्ञान आदि से जुड़कर बहुत तरह के कामों में सीखे ज्ञान को इस्तेमाल करते है।

गणित में अच्छा होने का पहला मंत्र है बेसिक कॉन्सेप्ट्स में मास्टरी करना। यदि बेसिक कॉन्सेप्ट्स मजबूत हैं तो समझदारी से पढ़ा हुवा कांसेप्ट हमेशा याद रहेगा। अंक गणित, बीजगणित और रेखागणित के बेसिक तथ्य और सूत्र एक बार समझ लिए जाँय तो ये हर स्तर पर काम आते हैं। दूसरी बात मैं स्वाध्याय (सेल्फ स्टडी) को देता हूँ। स्वाध्याय और बार बार प्रैक्टिस से प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है। तीसरा महत्वपूर्ण मंत्र है पढ़ने का प्रभावी तरीका। नोट्स बनाना, फार्मूला चार्ट बनाना, सिस्टेमेटिक ढंग से पढ़ना,टॉपिक वाइज फ्लो चार्ट बनाना, हर तरह के प्रश्नों को करना, फार्मूला का सटीक उपयोग करना हमारे गणित को मजबूत करता है। ट्रिक्स, निमोनिक्स , एनेक्डोट्स के साथ भी कॉन्सेप्ट्स को याद रखा जा सकता है। चौथा मंत्र मैं खेल खेल में मनोरंजन के साथ सीखने को मानता हूँ। जैसे कि क्रिकेट खेलते हुवे औसत रन रेट, इकॉनमी रेट आदि सीखा जा सकता है। ऊनो कार्ड गेम के द्वारा भी अंक गणित सीखा जा सकता है। लूडो गेम और ताश के बावन पत्तों से प्रोबबिलटी को सीखा जा सकता है।

मेरा स्वयं का अनुभव रहा है जो बच्चे क्लासरूम में एक्टिव रहकर पढ़ते हैं, डिस्कशन करते हैं , और बहुत सारे प्रश्न पूछते हैं वे बच्चे गणित में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। क्लासरूम में समझना, टीचर्स के साथ साथ प्रश्न हल करना, क्रॉस क्ववसचनिंग करना, और दिए हुवे असाइनमेंट को करने वाला छात्र छात्रा गणित में अच्छा करते हैं। स्कूल लेवल से ही गणितीय क्रियाकलापों में भागीदारी करने वाले हमारे अनगिनत छात्र छात्राओं ने ‘STEM’ विषयों में काफी नाम कमाया है। गणित में रिसर्च पेपर लिखना, प्रोजेक्ट करना , गणित के प्रयोग करना, अपने चारों ओर गणित और गणित के पैटर्न को ढूंढने वाले बच्चे, जीवन के बिभिन्न क्षेत्रों में अच्छा कर रहे हैं। प्रश्नों को अच्छी तरह पढ़कर, समझ कर , सुनकर, बिभिन्न विधियों से प्रश्न हल कर और सीखे सूत्रों का सटीक उपयोगकर गणित में प्रदर्शन अवश्य सुधरेगा। गणित को अपना जीवनोपयोगी वस्तु समझकर और गणित के कॉन्सेप्ट्स को अपने से जोड़कर देखने से यह बहुत सरल लगता है। गणित को मूर्त से अमूर्त से जोड़ते हुवे पढ़ाएं , हर चीज को गणित से जोड़ें और हर चीज में गणित देखें क्योंकि इसे हम हर पल उपयोग करते हैं, और इसमें हर समस्या का समाधान ढूंढते हैं। यह करियर पथ का अवरोधक नहीं बल्कि खेवनहार है। गणित को दोस्त बनाएं। हरकोई गणित में अच्छा कर सकता है।

(चन्दन घुघत्याल द दून स्कूल देहरादून में डिपार्टमेंट ऑफ़ मैथमेटिक्स से जुड़े हैं)

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

Comment: