बिखरे मोती : मिथ्याचार से सदाचार ही श्रेयस्कर है-

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मिथ्याचार से सदाचार ही श्रेयस्कर है-

मिथ्याचार को छोड़ कै,
धारण कर सदाचार।
सम्यक संयम विवेक से,
करना सद्व्यवहार॥2165॥

संसार में परमपिता परमात्मा सबसे बड़ा सहारा है –

आश्रय ले हरि ओ३म का,
सबसे बड़ा सहाय।
सीधा जा बैकुंठ को,
ज्यो उसका हो जाय॥2166॥

भक्ति – मार्ग अति कठिन है इसलिए सदैव सतर्क रहिए-

भक्ति मार्ग कठिन है,
मत करना कोई चूक।
आत्मा में परमात्मा,
देख रहा है मूक॥ 2167॥

तृष्णा में फंसे लोगों को स्वर्ग कैसे मिले –

भक्ति भलाई की नहीं,
और चाहे परलोक।
तृष्णाओं में मन फसा,
कैसे होय अशोक॥2168॥

अशोक अर्थात् शोक रहित होना

भक्ति की सबसे बड़ी बाधाएं क्या है-

भक्ति में बाधा बने,
आलस और प्रमाद।
श्रद्धान्त मन से सदा,
करो प्रभु को याद॥2169॥

किसी सौभाग्यशाली परम तपस्वी को ही ईश्वर की आगोश मिलती है –

धन्य घड़ी इस जन्म की,
जब उठे भक्ति का जोश।
किस्मत वाले को मिले,
ईश्वर की आगोश॥2170॥

मन और रसना कैसे हों ?

हरि – चर्चा होवै जहां,
मन मेरा लग जाय।
रसना तो वो ही भली,
जो प्रभु नाम रटाय॥2171॥

जिनकी सायुज्यता प्रभु से निरन्तर बनी रहती है –

आभामण्डल दिव्य हो,
जो रहे प्रभु के पास।
आनाहत – चक्र से उर्मियो,
करे दुरितों का नाश॥2172॥

समस्त समष्टि का त्राण कैसे सम्भव है-

प्रकृति संस्कृति में,
यदि जुड़े विज्ञान।
यह त्रिवेणी प्रबल है,
करे सृष्टि का त्राण॥2173॥

मन के दो रूप:-
इस मन के दो रूप हैं,
एक रावण एक राम।
आश्रय राम का लीजिये,
काटे कष्ट तमाम॥2174॥
क्रमशः

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