सनातन धर्म का उदभव और विकास युगयुगांतर से : जानियें चार-युग और उनकी विशेषताएं……*

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⏳ युग :- शब्द का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या वर्षों की काल-अवधि। जैसे कलियुग, द्वापरयुग, सत्ययुग, त्रेतायुग आदि ।

यहाँ हम चारों युगों का वर्णन करेंगें। युग वर्णन से तात्पर्य है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई, एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय देना। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है –

🕰️ सतयुग :- यह प्रथम युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –

इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 17,28,000 वर्ष होती है ।

इस युग में मनुष्य की आयु – 1,00,000 वर्ष होती है ।

मनुष्य की लम्बाई – 32 फिट (लगभग) [21 हाथ]

सत्ययुग का तीर्थ – पुष्कर है।

इस युग में पाप की मात्र – 0 विश्वा अर्थात् (0%) होती है।

इस युग में पुण्य की मात्रा – 20 विश्वा अर्थात् (100%) होती है ।

इस युग के अवतार – मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह ( सभी अमानवीय अवतार हुए ) है।

अवतार होने का कारण – शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख देने के लिए।

इस युग की मुद्रा – रत्नमय है।

इस युग के पात्र – स्वर्ण के है।

इस युग में दो परस्पर दुश्मन दोनो अलग अलग लोको में रहते थे, यथा पाताल लोक, आकाश लोक या पृथ्वी लोक। यानी अच्छाई और बुराई दोनो अलग अलग लोको में होती है।

⏰ त्रेतायुग :- यह द्वितीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –

इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 12,96,000 वर्ष होती है ।

इस युग में मनुष्य की आयु – 10,000 वर्ष होती है।

मनुष्य की लम्बाई – 21 फिट (लगभग) [ 14 हाथ ]

त्रेतायुग का तीर्थ – नैमिषारण्य है।

इस युग में पाप की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है।

इस युग में पुण्य की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है।

इस युग के अवतार – वामन, परशुराम, राम (राजा दशरथ के घर)

अवतार होने के कारण – बलि का उद्धार कर पाताल भेजा, मदान्ध क्षत्रियों का संहार, रावण-वध एवं देवों को बन्धनमुक्त करने के लिए।

इस युग की मुद्रा – स्वर्ण है।

इस युग के पात्र – चाँदी के है।

इस युग में दो परस्पर। दुश्मन एक ही लोक में रहते है पर देश और जाति भिन्न भिन्न होती है जय राम भारत और रावण लंका। यानी अच्छाई और बुराई दोनो एक ही लोक में होती है।

⏲️ द्वापरयुग :- यह तृतीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –

इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 8.64,000 वर्ष होती है।

इस युग में मनुष्य की आयु – 1,000 वर्ष होती है।

मनुष्य लम्बाई – 11 फिट (लगभग) [ 7 हाथ ]

द्वापरयुग का तीर्थ – कुरुक्षेत्र है।

इस युग में पाप की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है।

इस युग में पुण्य की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है।

इस युग के अवतार – कृष्ण, (देवकी के गर्भ से एंव नंद के घर पालन-पोषण), बुद्ध (राजा के घर)।

अवतार होने के कारण – कंसादि दुष्टो का संहार एंव गोपों की भलाई, दैत्यो को मोहित करने के लिए।

इस युग की मुद्रा – चाँदी है।

इस युग के पात्र – ताम्र के हैं।

इस लोक में दोनो परस्पर दुश्मन एक ही देश और एक ही परिवार के होते है जैसे कौरव पांडव या कृष्ण कंस, यानी अच्छाई और बुराई दोनो एक ही परिवार में होती है।

⏱️ कलियुग :- यह चतुर्थ युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –

इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 4,32,000 वर्ष होती है।

इस युग में मनुष्य की आयु – 100 वर्ष होती है।

मनुष्य की लम्बाई – 5.5 फिट (लगभग) [3.5 हाथ]

कलियुग का तीर्थ – गंगा है।

इस युग में पाप की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है।

इस युग में पुण्य की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है।

इस युग के अवतार – कल्कि (ब्राह्मण विष्णु यश के घर )।

अवतार होने के कारण – मनुष्य जाति के उद्धार अधर्मियों का विनाश एंव धर्म कि रक्षा के लिए।

इस युग की मुद्रा – लोहा है।

इस युग के पात्र – मिट्टी के है।

इस लोक में परस्पर दुश्मन दोनो एक ही परिवार तो क्या एक ही काया देह में रहते है अर्थात अच्छाई और बुराई एक ही शरीर में वास करती है।

अब आप देखिए की बुराई पर लोको से सिमट कर मनुष्य के शरीर में घर कर गई है और धीरे धीरे ये विष पूरे मस्तिष्क को अधिकार कर रहा है।

जय सनातन जय भारत जय हिन्दू धर्म

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