भौतिकवेता अल्बर्ट आइंस्टीन और भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति*

आर्य सागर खारी🖋️

आधुनिक भौतिकी के संस्थापकों में से एक महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन का साक्षात्कार ले रहे विज्ञान संवादाता पत्रकार ने जब आइंस्टाइन से पूछा———–।

सर क्या आप ध्वनि का वेग जानते हैं कितना है?
आइंस्टाइन ने कुछ देर मौन होकर जो जवाब दिया वह आधुनिक विश्वविद्यालयी शिक्षा को आईना दिखाने के लिए काफी था।

आइंस्टाइन ने कहा——————————-!

” मैं उस जानकारी को अपने मस्तिष्क चित् में नहीं रखता जो किताबों में आसानी से उपलब्ध हो। कॉलेज की एजुकेशन का उद्देश्य यह नहीं होना चाहिए किसी छात्र के मस्तिष्क में अधिक से अधिक इंफॉर्मेशन तथ्यों को वह भर दें बल्कि उसका उद्देश्य ऐसा होना चाहिए वह छात्र सोचने तर्क करने में प्रशिक्षित हो जाए।”

पश्चिम के विश्वविद्यालयों को तो पता नहीं लेकिन भारत के विश्वविद्यालय में आज भी रट्टा मार कॉपी पेस्ट ज्ञान की भरमार है अधिक से अधिक सूचनाओं तथ्यों को मस्तिष्क में स्टोर करना है ही उच्च शिक्षित होना माना जाता।

लेकिन भारत की परंपरागत गुरु शिष्य परंपरा में ऐसा नहीं था जिसका परिचय हमें भारत की उपनिषद दर्शन परंपरा में मिलता है । गुरु जन अपने शिष्य छात्र को किसी भौतिक अध्यात्मिक विषय पर सूत्र रूप से संक्षिप्त गहन गंभीर शैली में ही उपदेश देते थे। अध्ययन की शेष विषय वस्तु पर तर्क उहा पोह चिंतन छात्र स्वयं करते थे।

उस काल में अध्यात्म ,पदार्थ विज्ञान, गणित ,दर्शन आयुर्वेद ,व्याकरण पर मौलिक सर्जनात्मक जीवन लोकोपयोगी कार्य हमारे मनीषियों ने किया अध्ययन की इसी परंपरा का सहारा लेकर। अध्ययन अध्यापन कि वह परिपाटी आज सर्वत्र भारतवर्ष में लुप्त है। भारत को यदि विश्व गुरु बनाना है तो उसी आर्ष शिक्षण परंपरा को पुनर्जीवित करना होगा।

आर्य सागर खारी✍✍✍

Comment: