भारत में हिन्दुत्व के लिए हैं गम्भीर चुनौतियां
भारतवर्ष हिन्दुओं की अंतिम शरणस्थली है। हिन्दू ही हैं जो इस देश को अपना मानते हैं और अपना मानकर भी इससे प्रेम करते हैं। आज यह विचारणीय है कि यदि विश्व के किसी भी कोने में, हिन्दुओं पर आक्रमण होते हैं तो हिन्दू कहां जायेंगे..? स्वाभाविक रूप से वे हिन्दुस्थान में अर्थात भारत वर्ष में ही आएंगे। इसके विपरीत मुस्लिम या ईसाइयों के लिए ऐसा नहीं हैं। उनके लिए तो बहुत सारे देश हैं। वे अपने किसी भी देश में शरण ले सकते हैं। लेकिन हिन्दुओं के लिए एकमात्र भारत ही है..!
अब तनिक विचार करते हैं कि हमारे भारत में आज क्या परिस्थितियां हैं..? एक पोर्टल, भारत में हिन्दुओं का प्रतिशत 79 प्रतिशत दिखा रहा हैं, तो दूसरा मात्र 74.3 प्रतिशत दिखा रहा है। देश में मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत बढ़ा है। एक पोर्टल ने अनुसार यह 14.2 प्रतिशत हैं। इसमें अवैध अप्रवासी मुस्लिम शामिल नहीं हैं। अर्थात, जो एकमात्र देश पूरे विश्व में हिन्दुओं की शरणस्थली हैं, उसी देश में हिन्दू जनसंख्या का प्रतिशत निरन्तर घट रहा है। यह हिंदुत्व के लिये एक बड़ी चुनौती है। जब हम ऐसा कहते हैं तो इसमें कोई साम्प्रदायिकता नहीं है, अपितु देश की वस्तुस्थिति पर गम्भीर चिंतन करने के लिए लोगों को प्रेरित करना हमारा उद्देश्य है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत सम्प्रदायनिरपेक्ष देश है, और इसका यह स्वरूप तभी तक बना रह सकता है-जब तक यहां हिन्दू बहुसंख्यक है।
अभी कुछ दिन पहले अमरीका के थिंक टैंक, क्कद्ग2 क्रद्गह्यद्गड्डह्म्ष्द्ध ष्टद्गठ्ठह्लह्म्द्ग ने एक डेटा प्रकाशित किया हैं जिसके अनुसार सन 2050 तक विश्व की सबसे ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या भारत में होगी. पूरे विश्व के मुस्लिम जनसंख्या का 11 प्रतिशत हिस्सा भारत में रहेगा, और हिन्दुओं के प्रतिशत में जबरदस्त गिरावट आएगी।
ये आंकड़े चौकाने वाले हैं। एक बड़े संकट की ओर इंगित कर रहे हैं. सन 1947 में इसी आधार पर तो भारत के टुकड़े हुए थे। सन् 2050 में, बंटवारे के सौ वर्ष पश्चात, फिर नए बंटवारे का समय आयेगा क्या,..? हिंदुत्व के सामने की सबसे बड़ी चुनौती यही हैं.
आज तक का इतिहास तो यही कहता हैं कि जिस भूभाग में हिन्दू जनसंख्या का प्रतिशत गिरा, वह देश से बाहर निकलने का, या देश की नीतियों के विपरीत चलने का प्रयास करता है और इसलिये हिन्दू जनसंख्या घटना, यह बड़े चिंता का विषय है।
इस्लामी आतंकवाद, बंगलादेशी घुसपैठ आदि के साथ ही ईसाई मिशनरियों द्वारा किया जाने वाला धर्मांतरण भी एक चुनौती है। आज तक के इतिहास में हिन्दुओं ने किसी का बलात् या लालच देकर धर्मांतरण किया है, ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है। मूलत: हिंदू धर्म में ‘धर्मांतरण’ का कोई प्रावधान ही नहीं है, लेकिन भोले भाले हिन्दू वनवासियों के धर्मांतरण के अनेक उदाहरण है, झारखण्ड जब बिहार से अलग हुआ, तब झारखंड की असलियत का पता चला। ईसाई मिशनरियों द्वारा किए गए जबरदस्त धर्मांतरण के कारण झारखण्ड में हिन्दू जनसंख्या का प्रतिशत मात्र 67 प्रतिशत ही बचा है। मिजोरम में तो यह 2.75 प्रतिशत है। नागालैंड में 8.75 प्रतिशत इन दोनों राज्यों में ईसाई जनसंख्या 90 प्रतिशत से ज्यादा है।
मुस्लिम और ईसाई धर्मावलंबियों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुत्व के लिए चुनौती खड़ी करना तो एक बात है किन्तु असल समस्या है, हिन्दुओं की ही. हिंदुत्व को अगर कही से ख़तरा है तो वह छद्म सेक्युलर और वामपंथी हिन्दुओं से है। इन सब को ‘हिंदुत्व’ इस शब्द से खासी चिढ़ है। इनमें से अनेक, ‘मुस्लिम वोट बैंक’ के खातिर हिन्दू समाज की प्रताडऩा करते हैं. जैसे-ममता बेनर्जी. किसी समय विभाजन का दंश झेल चुका बंगाली हिन्दू इस समय बड़ी मुसीबत में हैं. अपनी आराध्य देवता, माँ दुर्गा, माँ काली का विसर्जन करने की अनुमति लेने के लिये भी उसे कोर्ट जाना पड़ता हैं…! पश्चिम बंगाल के, बँगला देश से सटे अनेक जिले ऐसे हैं, जहाँ बंगला देशी मुसलमानों की घुसपैठ अच्छी तादाद में हुई है और हिन्दुओं को नरक जैसे वातावरण में जीना पड़ रहा है।
जैसे-जैसे हिंदुत्व ताकतवर होता जाएगा, वैसे-वैसे वामपंथ कमजोर पड़ता जायेगा. और इसलिए बौखलाहट में केरल, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में हिन्दुओं पर कायराना हमले हो रहे हैं. उनको नृशंसता से मारा जा रहा है।
हिंदुत्व का अगला रास्ता कठिन है, कांटों से भरा है। हिंदुत्व के बलशाली होने से अनेक विघातक ताकतों का सफाया होना तय है। और इसीलिए, ये सारी ताकतेें, हिंदुत्व के विरोध में एक होंगी। हिंदुत्व को कड़ी चुनौती मिलेगी अगले पांच साल बाद से। आज आईएसआईएस जैसी अंतर्राष्ट्रीय मुस्लिम आतंकवादी संगठन के राडार पर हम नहीं हैं. अगले पांच साल बाद, इन आतंकवादी संगठनों के नाम बदलेंगे लेकिन हिंदुत्व इनका बड़ा दुश्मन रहेगा. और इसलिए, पांच वर्षों के बाद, ऐसी सभी विघातक शक्तियों से जो युद्घ झेलना है, उसकी तैयारी हिंदुत्व के पुरोधाओं को अभी से करनी पड़ेगी। रास्ता कठिन है, मार्ग कंटकाकीर्ण है, लक्ष्य काफी दूर है। फिर भी, यदि दिशा स्पष्ट है और मन में प्रामाणिक भाव है, तो हिंदुत्व की विजय सुनिश्चित है। याद रहे यह जीत हमारी किसी एक सम्प्रदाय की नहीं होगी, अपितु इस देश की मौलिक चेतना की जीत होगी और उस जीत पर हम सबका सामूहिक और मौलिक अधिकार होगा।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।