कश्मीर के गुमराह युवक और पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के पत्थरबाज युवाओं से आग्रह किया है कि वे आतंकवाद का रास्ता छोड़ कर राष्ट्र की मुख्यधारा में लौट आयें। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इन आतंकवादी कश्मीरी युवकों को ‘गुमराह’ हुआ माना है, और उनके कल्याण के लिए उन से अपेक्षा की है कि वे आत्मविनाश के रास्ते को छोडक़र आत्मविकास के रास्ते पर आए। देश के किसी भी प्रधानमंत्री से ऐसी ही अपेक्षा की जाती है, कि वह देश के प्रत्येक युवा को देश की मुख्यधारा में लाकर देश के विकास में उसकी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित करता रहे। पर यह बात भाजपा के प्रधानमंत्री और वह भी श्री मोदी यदि कश्मीर के आतंकवादी और पत्थरबाज युवाओं को ‘गुमराह’ मानें तो जँचती नहीं। विशेषत: तब जबकि श्री मोदी और उनकी पार्टी प्रारंभ से ही कश्मीर के आतंकवादियों को केवल आतंकवादी ही मानती आयी है। भाजपा जो पहले जनसंघ थी- ने कश्मीर समस्या को उसके यथार्थ स्वरुप में लेने का चिंतन देश को दिया। उसमें कोई दोगलापन नहीं था, इसके विपरीत वह पंडित नेहरू और उनकी कांग्रेस के कश्मीर समस्या संबंधी दोगलेपन की सडक़ से संसद तक मुखर आलोचना करती रही। उसने कश्मीर समस्या के अंतर्राष्ट्रीयकरण की नेहरू की ‘मूर्खता’ का तो पर्दाफाश किया ही साथ ही यह कहने में भी संकोच नहीं किया कि कश्मीर समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण नहीं- अपितु इस्लामीकरण हो रहा है- जो कि देश के लिए घातक है। उसने यह भी स्पष्ट किया कि यह इस्लामीकरण पूर्णत: प्रायोजित और सुनियोजित है। इस षड्यंत्र को कांग्रेस ने अपने ‘छदम्वाद’ से ढकने और ढंापने का प्रयास किया- पर जनसंघ और भाजपा इसे उघाड़ते रहे और उन्होंनें देश से हो रहे एक बड़े छल को उजागर करके ही दम लिया। इसके ‘दो निशान, दो विधान और दो प्रधान’ की नीति को चाहे कांग्रेस ने पचा लिया हो पर जनसंघ ने नहीं पचाया और अपने महान नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान भी सघर्ष दे दिया।

भाजपा के नरेंद्र मोदी जिस माटी के बने हैं उससे लोगों में यह धारणा बनी है कि वह सरदार पटेल की भांति स्पष्टवादी हैं और चोर को चोर कहकर उसे दण्डित करने में उन्हें देर नहीं लगती। उन्होंने अपने वक्तव्य से और कई बार अपने आचरण से ऐसे संकेत दिए थे कि वह निर्णय लेने में सरदार पटेल के ही अनुयायी हैं। परंतु कश्मीर में उन्होंने सरदार पटेल की नीतियों का अनुकरण न करके कुछ दूसरा ही रूप धारण कर लिया है। वह धारा 370 और 35 (ए)पर पूरी तरह मौन हैं। पता नहीं चल रहा है कि वे इन दो राष्ट्रघाती संवैधानिक प्रावधानों को क्यों दूध पिला रहे हैं? यह भी स्पष्ट नहीं है कि वे इन दो धाराओं को संविधान से हटाना चाहते भी हैं कि नहीं? माना कि शासन शासक को अपनी नीतियों को गुप्त रखने का पूरा अधिकार है, पर- यह भी तो सत्य है कि लोकतंत्र में चुनावी घोषणापत्र में शासक जनता को दिए गए वचनों को पूरा करने के लिए कृतसंकल्प होता है।भाजपा ने हर चुनाव में धारा 370 को हटाने का वचन देश की जनता को दिया है तो इस पर प्रधानमंत्री श्री मोदी का मौन निरर्थक ही जान पड़ता है। उन्हें देशहित में कश्मीर समस्या की जड़ के रूप में मुख्यत:इस धारा को अब यथाशीघ्र हटाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। देश की जनता की यह प्रबल इच्छा है।

जम्मू कश्मीर मे इस समय भाजपा सरकार में भी सम्मिलित है, और लोगों की धारणा बन रही है कि कश्मीर सरकार में सम्मिलित रहकर जो ‘मालपुए’ भाजपा को खाने को मिल रहे हैं- उनके चलते वह अपना राष्ट्रधर्म भूल चुकी है। वैसे भी भाजपा व श्री मोदी को उनका राष्ट्रधर्म स्मरण कराने वाले भीष्म पितामह अटल जी ‘बाणशैय्या’ पर हैं। अब 2002 गोधरा कांड के समय दिए गए राष्ट्रधर्म संबंधी उपदेश को अटल जी मोदी जी के लिए दोहरा नहीं सकते। अन्यथा मोदी जी के लिए इस समय कश्मीर को लेकर उनकी नीतियों के संदर्भ में किसी अटल जी जैसे सौम्यराष्ट्रवादी नेता के मार्गदर्शन की ही आवश्यकता है- जो उनसे कह सके कि कश्मीर में स्वार्थवाद की राजनीति बंद करो और मंत्रीपद का मोह त्याग कर सडक़ पर आओ, और देखो कि धारा 35(ए) और 370 को हटाने के लिए हमारा एक एक कार्यकर्ता इस समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी बनने को तैयार है। कश्मीर इस समय स्वार्थवाद की नहीं राष्ट्रवाद की अपेक्षा करता है, और मांग करता है कि सारे राजनीतिक दल इसी राष्ट्रवाद के झंडे तले आकर कश्मीर के नागों को कुचलने का काम करें। मोदी जी को इसकी पहल करनी होगी- सारा देश उनके साथ है। जहां तक कश्मीरी आतंकवादियों की गुमराह होने का प्रश्न है तो इस संबंध में स्पष्ट है कि यह युवक गुमराह नहीं हैं- अपितु अपने पूरे होशो हवास में रहकर अपने कार्य के परिणाम को भली-भांति जानकर बिना किसी ऊहापोह के अपने ‘पवित्र उद्देश्य’ के प्रति समर्पित होकर कार्य कर रहे हैं। भटकाव तो अचानक आता है। कश्मीर में जो कुछ हो रहा है वह सब कुछ अचानक नहीं हो रहा है, वह तो 1947 से हो रहा है और उसका प्रेरणा स्रोत वह नारा है जो 1947 में दिया गया था कि- ‘हंस कर लिया पाकिस्तान, लडक़े लेंगे हिंदुस्तान’ यह एक सोच है -जिसे देश को कभी एक मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्नाह के चित्र को देखकर समझा जा सकता है तो कभी जे.एन.यू. में लगने वाले-‘भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह’ जैसे घातक नारों के रूप में देखा जा सकता है। कहने का अभिप्राय है कि विष कश्मीर तक ही सीमित नहीं है- अपितु वह देश के हृदय तक प्रभाव दिखा रहा है। देश की जनता ने मोदी जी में विश्वास व्यक्त करते हुए उन्हें देश की सत्ता इस लिये सौंपी थी कि वह एक सफल वैद्य की भांति देश की इस घातक बीमारी का उपचार करेंगे। अब देश को यह सुनकर निराशा हो रही है कि वह भी कश्मीर के आतंकवादियों को ‘गुमराह’ मान रहे हैं।

भाजपा को अब श्री मोदी के नेतृत्व में सत्ता संभाले 4 वर्ष हो गए हैं- इस के नेताओं ने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए बड़े-बड़े बयान तो दिए हैं पर उनको पुनर्वासित करने की दिशा में एक भी कदम नहीं उठाया हैं। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। श्री मोदी ने 2014 में वोट मांगते हुए अपनी कई जनसभाओं में कहा था कि वह 2019 में जब लोगों के बीच आएंगे तो उन्हें अपना ‘होमवर्क’ दिखाएंगे। उनका संकेत यही था कि वह जिन वायदों को करके सत्ता प्राप्त करने जा रहे हैं उन्हें अगले 5 वर्ष में पूर्ण करके भी दिखाएंगे। तब श्री मोदी के लिए आतंकवादी केवल आतंकवादी थे- देश को अब जब वह 2019 में अपना ‘होमवर्क’ दिखाने जा रहे हैं तो देशवासियों को यह जानकर दु:ख हो रहा है कि श्री मोदी भी आतंकवादियों का उपचार करते-करते अपने पूर्ववर्तियो की उसी बीमारी का शिकार हो गए हैं, जिसके चलते वे लोग कभी भी आतंकवादियों को आतंकवादी कह कर उनका सही उपचार नहीं कर पाए थे। सचमुच नेतृत्व को निराशाजनक नहीं होना चाहिए। उसे अन्यायी को कुचलने के प्रति और पीडि़त को न्याय दिलाने के प्रति अपनी वचनबद्धता सदा प्रकट करनी चाहिए और न केवल प्रकट करनी चाहिए अपितु उसके लिए कार्य भी करना चाहिए। मोदी जी के लिए आतंकवाद और आतंकवादियों के लिए वही शब्द होने चाहिए जो अपेक्षित हैं। 1947 से अब तक आतंकवादी गतिविधियों में लगे लोग कुछ बूढ़े होकर मर लिए हैं तो कुछ बूढ़े हो चुके हैं- वे यदि भटके होते तो उम्र के इस पड़ाव पर वह राष्ट्र की मुख्यधारा में आ जाते- पर वह आए नहीं, उल्टे अपना संख्याबल बढ़ा कर अपने उत्तराधिकारी तैयार कर रहे हैं। मोदी जी इन 70 वर्षीय आतंकवादियों को क्या कहोगे? यह भी स्पष्ट हो जाना चाहिए। 

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