लोकतांत्रिक व्यवस्थाओ पर धार्मिक कट्टरता का आघात

विश्व के लोकतांत्रिक देशो को अपने अपने लोकतंत्र  के अस्तित्व के लिए संविधान की सर्वोपरिता बनाये रख कर विधि के अनुसार  प्रशासनिक व्यवस्थाओ को सुनिश्चित रखना होगा और   ‘धर्म विशेष’ की कट्टरता के असंतुलित व अनुचित  दबाबो  को प्राथमिकता देना बंद करना होगा।

निसंदेह आज पूरे विश्व में कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा से लोकतांत्रिक व्यवस्थाओ पर निरंतर आघात होता आ रहा है।क्योकी इन दहशतगर्दो का न तो कोई संविधान है और न ही कोई नियम व कानून , जिससे वे  किसी सीमित दायरे में रहकर अनुशासन के साथ लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध प्रकट कर सके? क्या इन धर्मविशेष के कट्टरपंथियो को किसी भी देश में केवल अपने ही तथाकथित मध्यकालीन  “आदर्शो व आदेशो ” के लिए ही आज 21वी सदी में  आधुनिक समाज का गला घोटने का कोई लाइसेंस मिला हुआ है?

क्यों नहीं दुनिया के विभिन्न धर्मो के विशेषज्ञ ,राजनेता व मानवाधिकारवादी , धार्मिक कट्टरता का हो रहा नंगा नाच ..’उसमे चाहे सीरिया-ईराक़ में आई. एस. द्वारा यजीदियो,ईसाईयो व यहूदियो का कत्लेआम हो,या फिर पेशावर में मासूम मुस्लिम बच्चों पर तालिबानियों का पैशाचिक अत्याचार हो या फिर नाईजीरिया में बोकोहराम का गैर मुस्लिमो के निरंतर सामूहिक हत्याकांड हो और पेरिस में चार्ली अब्दो के पत्रकारो सहित उनके कर्मियो पर अंधाधुन गोलियों की बौछार हो..’ पर चिन्ता व चिंतन करके कोई मार्ग निकालते? आखिर कब तक कोई सभ्य समाज  इस प्रकार के पागलपन को सहता रहेगा ?

हमारा देश भी इस धार्मिक कट्टरपन के जनूनी जिहाद से सुरक्षित नहीं है बल्कि सबसे अधिक प्रताड़ित व पीड़ित है। लोकतन्त्र में वोटो की राजनीति के चलते मुस्लिम समाज को संविधान से भी ऊपर हो कर अनेक प्रकारो से लाभांवित किया जाता रहा है।अनेक अवसरों पर राष्ट्रीय सुरक्षा की अवहेलना करते हुए मज़हबी आतंकवादियो के मनोबल को बढ़ावा मिला है।

अतःसमय रहते धर्म विशेष की जिहादी मान्यताओ पर आवश्यक संशोधन के लिए वैश्विक स्तर पर        विचार विमर्श नहीं किया जायेगा तब तक अपनी – अपनी संस्कृतियों ,सभ्यताओ व धर्मो  के अनुसार जीवन जीने के मौलिक अधिकारो से आधुनिक संसार वंचित ही होता रहेगा?

विनोद कुमार सर्वोदय
नयागंज,गाज़ियाबाद।

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