प्रदेश  में  प्रशासन  पस्त लेकिन समाजवादी मस्त

मृत्युंजय दीक्षित

एक ओर जहां आजकल प्रदेश  का कामकाज बेहद सुस्त हो गया है हर विभाग में अफसरों की लापरवाही के परिणाम सामने आ रहे हैं तथा समाजवादी सरकार की लोकलुभावन योजनाएं एक के बाद एक फेल होती जा रही हैं उस समय सैफई में जिस प्रकार से सपा मुखिया मुलायम के पोते तेज प्रताप का बेहद खर्चीला तिलक समारोह आयोजित किया गया उससे तो यह साफ प्रतीत हो रहा है कि अपने आप को गरीबों का मसीहा बताने वाले समाजवादी अब गरीबों के मसीहा नहीं रहे। समाजवादियों की ऐसी षान औ षौकत देखकर तो पूर्ववर्ती समाजवादी डा. राममनोहर लोहिया भी स्वर्ग में बैठकर अपना सिर पीट रहे होंगे। इतने महंगे तिलक व पूर्व में  सपा  मुखिया का जन्मदिन से तो यही प्रतीत हो रहा है कि अब समाजवादी समाजवादी नहीं रहे अपितु वह भी केवल और केवल वंषवादी परम्परा का सत्ता का नषा हो गये हंै जो सैफई में धूम मचा रहा है। पहले समाजवादी मुखिया मुलायम सिंह ने रामपुर में अपना जन्मदिन  मनाने में करोडों खर्च कर डाले तथा वहीं उनकी बहू सांसद डिम्पल यादव ने अपना जन्मदिन विदेश में मनाया।

     वर्तमान राजनीति के दौर में  राजनेताओं व सत्ताधीष जिस प्रकार से  सामाजिक व पारिवारिक उत्सवों को इतने बड़े पैमाने पर आयोजित कर रहे हैं वह केवल और केवल अपने धनबल और जनबल का प्रदर्षन होता है। यह नेता अपने ऐष्वर्य का अद्भुत प्रदर्षन कर रहे हैं। कालाधन का षोर मचाया जा रहा है जबकि वास्तविक काला धन तो हमारे नेताओं के पास देष के अंदर ही मौजूद है। यह लोग केवल गरीबी दूर करने का नारा दे रहे हैं  और उसी के सहारे अपनी गरीबी को दूर कर रहे है।

  बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री तथा चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव ने अपनी बेटी राजलक्ष्मी का विवाह उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री सपा मुखिया मुलायम सिंह के पोते  तेेज प्रताप यादव के साथ तय किया है। राजनैतिक विष्लेषकों का अनुमान है कि इस वैवाहिक गठबंधन के माध्यम से लालू यादव जनता परिवार  के एकीकरण और उप्र तथा बिहार में अपनी राजनैतिक पकड़ को और मजबूत करना चाह  रहे हैं। लालू के पोते का तिलक समारोह कई और बहुत से कारणों से भी चर्चा मंे रहा । इस तिलक समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह,उप्र के राज्यपाल रामनाईक, मध्य प्रदेष भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौड़ सहित समाजवादी पार्टी के लगभग सभी प्रमुख नेता षामिल हुए। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन, अमर सिंह की उपस्थिति भी चर्चा में रही। अगर सबसे अधिक जिसने सुर्खियां बटोरी व लोगों को खुषियां बांटीं उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे। सैफई का हर कोई षख्स प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ फोटो सेषन करवाना चाह रहा था। प्रधानंत्री मोदी से राजद नेता लालू यादव ने जिस गर्मजोषी से हाथ मिलाया व फोटो खिंचवाया वह बहुत ही दुर्लभ नजारा था। उन तस्वीरों व क्षणों को देखकर हर कोई आष्चर्यचकित होकर दांतों तले  उंगली दबा रहा था। मीडिया में कहा गया कि यह तो उसी प्रकार से हो रहा है कि जैसे कि षाहरूख- सलमान एक फिल्म में एक साथ काम रहे हों। वैसे ही ऐसे अवसरों को राजनैतिक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए। लोगों को यह कतई अनुमान नहीं था कि प्रधानमंत्री मोदी तेजू के तिलक समारोह मंे उपस्थित होंगे। आजकल देष की राजनीति में कटुता का दौर चल रहा है। व्यक्तिगत रूप से आरोपों – प्रत्यारोपो का  दौर चल रहा है। साथ ही अल्पमत बहुमत को डिगाने व झुकाने के लिए  हरसंभव प्रयास कर रहा है। राजनीति में सामाजिक समरसता लानेक के उददेष्य से तो यह प्रयास दोनों ओर से ही काबिलेतारीफ है। लेकिन क्या इन समारोहों में मुलाकातों से विपरीत विचारधाराओं में  आपसी सामंजस्य स्थापित हो सकेगा व देषहित में सबका साथ सबका विकास का नारा हकीकत मंे परिवर्तित हो सकेगा।

        इस समारोह में एक बात और हुई और वह यह है कि  सपा सरकार में कद्दावर मुस्लिम नेता व मंत्री आजम खां नहीं उपस्थित हुए थे। कयास लगाये जा रहे हैं कि आजम खां नेता जी से नाराज हो गये हैें। आजम ने मोदी व मुलायम की मुलाकात को बादषाहों की मुलाकात कहकर अपनी नाराजगी भी जाहिर कर दी है। आजकल प्रदेष की राजनीति में  मंत्री आजम और राज्यपाल रामनाईक के बीच गहरे विवाद भी चर्चा का कंेंद्रबिंदु बने है। यह तो था कुछ राजनीति का  सकारात्मक पहलू लेकिन इस आयोजन में जिस प्रकार से अनाप- षनाप खर्च किया गया है वह भी कम हैरतअंगेज नहीं है। कहा जा रहा है कि इस परिवार में इतना भव्य समारोह पहली बार हुआ है। करीब एक लाख से अधिक लोगों ने अलग- अलग पंडालों में खाना खाया। पंडालों में समारोह देखने के लिए एलसीडी लगाये गये थे। घरेलू सिलेंडर लगे थे तथा बच्चों से भी काम कराया जा रहा था। बिहार से पंडित आये थे। पीएम नरंेद्र मोदी  के कारण सुरक्षा  का भी अभूतपूर्व अंजाम था। करीब एक लाख बनारसी पान पूरे समारोह में  खप गया। प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति  ओबामा के साथ लखटकिया सूट पहना तो चुनावी मुददा बना दिया गया लेकिन जब षरद यादव ने चमकीला जैकेट पहना तो मीडिया में वह सुर्खियों में नहीं आया। क्या षरद यादव का सुनहला जैकेट उनकी गरीबी व धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है। तेजू के तिलक समारोह को मीडिया की जबर्दष्त कवरेज भी मिल गयी। अगर समाजवादी गरीबों व किसानों के मसीहा हैं तो इतने महंगे उत्सव आखिर किसलिए । एक तरफ समाजवादी सरकार आरोप लगाती है कि प्रदेष में विकास के लिए पैसा नहीें तथा केंद्र सरकार विकास के लिए पर्याप्त धन नहीं देती उस पर से यह षान- औ- षौकत दिखावा नहीं तो और क्या है?

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