गीता मेरे गीतों में… कविता 14
स्थित बुद्धि
हो नहीं सकता संसार उसका जो कामनाओं से युक्त है।
वही जीत सकता संसार को जो कामनाओं से मुक्त है।।
दिन आपाधापी में बिताना और रात में षड़यंत्र रचना।
लक्षण नहीं ये वीर के – यूँ ही किसी पर व्यंग्य कसना ।।
सदा सम्मान दूसरों का करे – वही वीर बुद्धियुक्त है …
द्वन्द्व में फंस नहीं जीत सकता कोई वीर इस संसार को।
निर्द्वन्द्व होना ही पड़ेगा – निज आत्मा के परिष्कार को।।
नहीं मिल सकी कभी मंजिल उसे जो रहा द्वन्द्व युक्त है …
जो दुःख की ना चिन्ता करे, कमलसम सदा खिलता रहे।
सदा सन्तोष से उसे स्वीकार ले जो भी यहाँ मिलता रहे ।।
परमेश्वर के आशीष से वही जन – होता यहाँ संयुक्त है ….
सुख में नहीं जो फूलता और व्यवहार भी रखे संतुलित।
निकट धर्म के है वही -जिसका आचरण भी सन्तुलित ।।
सुख दुःख में सदा एक रहना यही तर्क बुद्धि युक्त है …
कभी हो नहीं सकता संसार तेरा, तू भी न रम संसार में ।
ये आवागमन का चक्र है – मत फंसना किसी दुष्चक्र में।।
रहो द्वन्द्व से सदा दूर ही जीने की युक्ति यही उपयुक्त है ..
ममता , भय और क्रोध को -जो छोड़ चुका संसार में।
‘स्थितधी’ कहलाता वही प्रभु का कृपापात्र है संसार में।।
मोक्ष पद मिलता उसे जो ऐसी दिव्यता से युक्त है …
सुख – दुख, लाभ – हानि , यश -अपयश, मान – अपमान।
जो इनमें सदा समभाव बरते, ‘स्थितप्रज्ञ’ है वही इंसान।।
उसका अधिकार मन पर होता ,वही संसार से विमुक्त है …
मनोकामनाएं रमाती हों , जब हमें संसार के विषयों में।
उन्हें ही ‘राग’ कहते हैं , बताया छूटने का मार्ग ऋषियों ने।।
जो जन ‘राग’ में फंसता , वही रहता सदा भय युक्त है …
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत