माँ यमुना को उसके बेटे मुक्त कराने निकले हैं

जिसमें है कान्हा की यादें व्रज की गउओं का दुलार,
कदम्ब पेंड वंशी की धुन राधा का अनुपम सा प्यार,
बछड़ों का मोहक क्रीड़ापन फैला जहाँ कछारों में,
और कदम्ब के वृक्ष किनारे फैले जहाँ हजारों में,
प्रेमसुधा की चातक गोपी जहाँ आय इठलाती थीं,
राधा रानी संग कन्हैया के जहँ रास रचाती थीं,
स्वच्छ चाँदनी के खिलने पर आती मधुर बहार जहाँ,
नीर क्षीर सी हो जाती थी यमुना की जलधार वहाँ,
ऐसी पावन जलधारा को फिरसे पाने निकले हैं,
माँ यमुना को उसके बेटे मुक्त कराने निकले हैं,

गंगा यमुना सरस्वती सब नहीं मात्र केवल जल हैं,
ये माँ तरिणी पालन की रूपा ये ही सब भूमण्डल हैं,
इसकी गोदी में पलते हैं कितने भूखे परिवार यहाँ,
इससे मिलते हैं लाखों लोगों को रोजगार यहाँ,
अविरल इसके बहने बस से जीवन मर्म सुरक्षित है,
इसकी जल की धाराओं में अपना धर्म सुरक्षित है,
कृष्ण कन्हैया यमुना मैया रिश्ता नहीं पुराना हो,
दूषित शोषित धार बचाने कान्हा फिरसे आ जाओ,
कालिंदी से पुनः कालिया दूर भगाने निकले हैं,
माँ यमुना को उसके बेटे मुक्त कराने निकले हैं,

जिसने अपने अंचल नीचे हमें सदा ही पाला है,
उसको हत्यारे बेटों ने आज कैद कर डाला है,
जिसकी अविरल धारा अब तक कोई काट नहीं पाया,
जिसको व्रज की यादों से कोई छाँट नहीं पाया,
जिसकी इक इक बूँदे मानो लगती मँहगी मोती हैं,
जिसके बस स्पर्श मात्र से भय बाध दूर सब होती हैं,
जिसने ममता में आ तुमको सुख के मार्ग अनेक दिए,
बदले में कूड़े विष प्याले तुमने उस पर फेंक दिए,
ऐसे पापी और दुष्टों का मूल मिटाने निकाले हैं,
माँ यमुना को उसके बेटे मुक्त कराने निकले हैं,

सुन लो सुन लो माँ यमुना के बेटे की हुँकार सुनो,
और कलम के बेटे की ये तीखी सी ललकार सुनो,
इन्द्रप्रस्थ के सिंहाशन में बैठी ओ सरकार सुनो,
सुनो उमा जी राजनाथ जी मोदी मेरे यार सुनो,
माँ यमुना की जलधारा को फिर अविरल बह जाने दो,
महज स्वार्थ के प्रतीकों को पानी में ढह जाने दो,
बहते इन शहरी नालों का जल्दी स्वयं प्रबंध करो,
सूर्य सुता की जल धारा में जहर घोलना बंद करो,
कलरव करते श्यामल जल पे जान लुटाने निकले हैं,
माँ यमुना को उसके बेटे मुक्त कराने निकले हैं,

कवि- ‘चेतन’ नितिन खरे
महोबा, बुन्देलखण्ड

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