कश्मीर में आतंकवाद, अध्याय 15 (ग ) भारत ने की सर्जिकल स्ट्राइक

भारत ने की सर्जिकल स्ट्राइक

18 सितंबर को जैश ए मोहम्मद के पाँच आतंकवादियों ने उरी में स्थित भारतीय सेना के ब्रिगेड हेड क्वार्टर पर हमला कर दिया । इन आतंकवादियों के इस हमले में भारत के 19 जवान बलिदान हो गए थे। भारतीय राष्ट्रवाद के लिए समर्पित रहे प्रधानमंत्री मोदी के लिए इस प्रकार किया गया आतंकवादियों का हमला एक चुनौती था। फलस्वरूप केंद्र के संकेत पर सेना को खुली छूट दी गई कि आतंकवाद से किसी भी प्रकार से समझौता न किया जाए। इस घटना के 10 दिन पश्चात ही भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकवादियों के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई को पूर्ण किया। भारतीय सेना ने अपने पराक्रम, शौर्य और वीरता का परिचय देते हुए शत्रु देश पाकिस्तान द्वारा अधिकृत किए गए कश्मीर में 3 किलोमीटर भीतर जाकर आतंकवादियों को अपने निशाने पर लिया। सेना ने आतंकवादियों को भून कर रख दिया।
भारत की सेना ने एक नया इतिहास लिखा। सारे संसार ने उसके शौर्य और पराक्रम का लोहा माना। शत्रु को 1947 के पश्चात पहली बार बड़ा झटका लगा। जो पाकिस्तान भारत से सीधे दो-दो हाथ करने से बचकर भारत में अराजकता फैलाकर और कश्मीर में अलगाववादी शक्तियों को प्रोत्साहित कर भारत को तोड़ने की नीतियों पर काम कर रहा था, उसे लगा कि भारत की सेना युद्ध के समय ही अपना पराक्रम नहीं दिखाती है, अपितु वह शांति काल में भी अपना पराक्रम दिखाने में सक्षम है। कोई कितनी ही बड़ी चुनौती क्यों न हो उसके शौर्य का सामना नहीं कर सकती। राजनीतिक नेतृत्व की नपुंसकता हमारी सेना को चाहे मजबूत निर्णय से रोक ले पर यदि उसे अपने ढंग से काम करने की छूट दी जाए तो वह कुछ भी करने में सक्षम है।
पाकिस्तान के माध्यम से भारत के अन्य शत्रुओं को भी यह सन्देश चला गया कि भारत अपने ‘पुनरुज्जीवी पराक्रम’ का परिचय देते हुए फिर नये पराक्रम का इतिहास लिखने के लिए पूर्णतया कटिबद्ध हो चुका है। भारत की सेना की इस कार्यवाही का विश्व समुदाय की ओर से भी कुल मिलाकर स्वागत ही किया गया। पहली बार ऐसा हुआ कि भारत के इस प्रकार के कार्य को किसी दूसरे देश ने अपनी आलोचना का पात्र नहीं बनाया। इसका कारण केवल एक था कि सारा संसार अब यह भली प्रकार जान गया था कि भारत इस समय एक सक्षम और मजबूत नेतृत्व के हाथों में है ।

संसार ने माना भारत का लोहा

भारत इस बात को विश्व मंच पर स्थापित करने में सफल रहा कि वह आत्मरक्षा में अपने शत्रु के प्रति कोई भी कार्य करने के लिए स्वतंत्र है। क्योंकि जितनी किसी अन्य देश को अपनी संप्रभुता प्रिय है उतनी ही भारत को भी अपनी संप्रभुता से प्रिय है। अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय एकता व अखंडता के प्रति समर्पित रहना भारत का उतना ही अधिकार है जितना किसी अन्य देश को इस प्रकार का अधिकार प्राप्त है। भारतीय राजनीतिक नेतृत्व और सेना के पराक्रम ने संसार को बिना किसी बड़े भाषण के ही यह बात समझा दी कि भारत को अपने हितों की और देश की एकता व अखंडता की रक्षा करने का अधिकार है। देश के सम्मान को भारत बेच नहीं सकता। भारत के इस पराक्रमी नेतृत्व को देखकर सारे संसार ने उसका लोहा माना।
सेना के इस महान पराक्रमी कार्य ने संसार को भारत को नए दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रेरित किया। संसार के अन्य देशों का दृष्टिकोण भी अब भारत के संदर्भ में परिवर्तित होने लगा। चीजों की नई परिभाषाएं सामने आने लगीं। जैसे इस घटना से स्पष्ट हुआ कि धर्मनिरपेक्षता का अभिप्राय किसी वर्ग या समुदाय को असीमित अधिकार देना नहीं है। यदि कोई भी समुदाय ऐसे अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए राष्ट्रीय एकता और अखंडता की मर्यादाओं का उल्लंघन करेगा तो उसके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए भारतीय सुरक्षा बल किसी प्रकार का संकोच नहीं करेंगे । सांप्रदायिक आधार पर यदि देश की एकता और अखंडता को विखंडित करने के लिए बाहरी और भीतरी शक्तियां किसी प्रकार का कार्य करते हुए पाईं जाएंगी तो उनके विरुद्ध भी भारत उठ खड़ा होगा और अपनी परंपरागत उदारतापूर्ण नीतियों पर पुनर्विचार ही नहीं करेगा बल्कि उन्हें निसंकोच उतार भी फेंकेगा।
इतना ही नहीं भारत की इस कार्यवाही ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत अपने किसी पड़ोसी के प्रति शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की उदात्त भावना में भी तब तक ही विश्वास रखेगा जब तक उसका पड़ोसी इस प्रकार की नीतियों को शांति स्थापित करने के दृष्टिकोण से उचित मानेगा। भारत ने यह भी बता दिया कि प्यार एकपक्षीय नहीं होगा अपितु दूसरे के प्यार के दृष्टिकोण को समझकर ही अपनी ओर से प्यार का हाथ बढ़ाया जाएगा । यदि दूसरे के मन में खोट है तो छत्रपति शिवाजी महाराज की उसी नीति का अनुसरण किया जाएगा जो उन्होंने अफजल बेग की सोच, उसकी मानसिकता और उसकी तैयारी के दृष्टिगत उसके विरुद्ध अपनाई थी। भारत ने अपने बाहरी और भीतरी सभी शत्रुओं को यह भी बता दिया कि यदि आज ‘अफजल बेग’ जिंदा है तो छत्रपति शिवाजी महाराज भी अपने उसी पराक्रमी स्वरूप में जीवित है।
11 जुलाई 2017 को आतंकियों ने अपनी हताशा और निराशा को प्रकट करते हुए अमरनाथ यात्रियों की बस को निशाना बनाया । जिसमें 7 यात्रियों की मृत्यु हो गई और 19 घायल हुए। इस प्रकार की कार्यवाही आतंकवादियों ने अपने अस्तित्व का आभास दिलाने के लिए की। ऐसी कार्यवाही वास्तव में कायरतापूर्ण ही होती हैं। क्योंकि निहत्थों और निर्दोषों पर अत्याचार करना या उन पर किसी प्रकार का प्राण लेवा हमला करना किसी क्षत्रिय, वीर योद्धा को शोभा नहीं देता। जो लोग कायर होते हैं वही इस प्रकार की कार्यवाही करते हैं।
इस्लाम के मानने वालों ने अपने आज तक के इतिहास में ऐसी कायरता पूर्ण कार्यवाही एक बार नहीं, न जाने कितनी बार की हैं ? भारतीय वैदिक धर्म के अंतर्गत इस प्रकार की कार्यवाही को पाप माना जाता है। यद्यपि इस्लाम की व्यवस्था के अंतर्गत काफिरों पर यदि इससे भी निंदनीय ढंग से कोई कार्यवाही की जाती है तो वह भी पुण्य होती है। इस्लाम की इस प्रकार की व्यवस्थाओं ने भी कश्मीर के पिछले कई सौ वर्ष के इतिहास में आतंक और अत्याचार को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका निभाई है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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