पूरा सच बता रहे हैं पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल ज्ञानवापी मस्जिद

मुगलों ने अपने शासनकाल के दौरान किस प्रकार हिंदुओं के धर्म स्थलों को क्षतिग्रस्त किया या तोड़फोड़ कर नष्ट किया, इस पर भारत के तथाकथित मुस्लिम विद्वान या तो चुप्पी साधे हुए हैं या फिर लीपापोती कर किसी प्रकार मुगलों के समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे हैं। वे स्पष्ट रूप से यह नहीं मान रहे हैं कि मुगलों ने अपने शासनकाल के दौरान हिंदुओं के धर्म स्थलों को नष्ट किया था या किसी भी प्रकार से क्षतिग्रस्त किया था। जबकि इसी समय यदि पाकिस्तानी टी0वी0 चैनलों पर या सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा की ओर ध्यान दिया जाए तो वहां बड़े खुले शब्दों में मुगल शासकों और विशेष रूप से औरंगजेब के कार्यों की प्रशंसा की जा रही है।
पाकिस्तान के टी0वी0 चैनलों पर पैनलिस्ट स्पष्ट शब्दों में कह रहे हैं कि हमारे आलमगीर औरंगजेब ने हिंदुओं के मंदिरों को नष्ट किया था, यह तो सच्चाई है। पाकिस्तान के टी0वी0 चैनलों के एंकर और पैनलिस्ट इस बात पर बहुत ही अधिक प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं कि उनके आलमगीर औरंगजेब ने हिंदुओं के एक नहीं लाखों मंदिरों को तोड़ा। इतना ही नहीं वह यह भी कह रहे हैं कि पाकिस्तान में भी ऐसे अनेक मंदिर हैं जिनको औरंगजेब के शासनकाल के दौरान तोड़ा गया था और उन्हें मस्जिद के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था। पाकिस्तान स्थित ऐसी 6 मस्जिदों के नाम भी गिनाए जा रहे हैं जो अपने अतीत में हिंदुओं के भव्य मंदिर के रूप में रही थीं।
पाकिस्तान के टी0वी0 चैनलों पर चर्चाओं में भाग ले रहे हैं एक प्रतियोगी ने कहा कि भारत के मुसलमानों को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि मुगलों ने अपने शासनकाल में हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ा। उसने कहा कि भारत के मुस्लिम नेता सच्चाई से मुंह क्यों चुराते हैं ? क्यों नहीं स्वीकार करते कि हमारे आलमगीर औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा।
।पाकिस्तान के टीवी चैनलों के प्रतियोगियों की इस प्रकार की टिप्पणियों से पता चलता है कि वह पाकिस्तान में रहकर जहां अपने आप को सुरक्षित समझकर औरंगजेब और उसके काले कारनामों की खुली चर्चा कर रहे हैं, वहीं इस सच को समझकर भी हिंदुस्तान के टी0वी0 चैनलों के मुस्लिम प्रतियोगी खुले शब्दों में औरंगजेब के काले कारनामों की वकालत नहीं कर रहे हैं। यद्यपि उसे बचाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। वह अपने बचाव में उन छद्म इतिहासकारों का उल्लेख करते हैं जिन्होंने इतिहास का सत्यनाश करके औरंगजेब जैसे क्रूर शासक को भी उदार दिखाने का प्रयास किया है और उसके हिंदू विरोधी आचरण को या तो छुपा लिया है या उस पर लीपापोती करने का प्रयास किया है।
इस्लाम के सच को स्वीकार करते हुए पाकिस्तानी टी0वी0 चैनलों पर लोग बड़े गर्व के साथ कह रहे हैं कि यह तो हमारे इस्लाम में हमारा कर्तव्य है कि हम काफिरों के धर्म स्थलों को नष्ट कर दें। हमारे पैगंबर साहब ने मदीना में जब कब्जा किया तब हिंदुओं की तरह बुतपरस्ती में यकीन करने वाले यजीदी लोगों ने मदीना में कई मंदिर बना रखे थे , जिसमें अग्निदेव और उनके दूसरे देवताओं की मूर्तियां थीं। तब हमारे पैगंबर ने अपने हाथों से उन मूर्तियों को तोड़ा और उस समय के मुसलमानों को हुक्म दिया कि बुतपरस्ती ना सिर्फ हराम है बल्कि जब तुम किसी राज्य पर काबिज हो जाओ तब वहां के सभी बुतों को नष्ट कर दो। यही कारण है कि तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर पहली बार कब्जा किया था तब उसने बामियान में स्थित गौतम बुद्ध की दो विशाल प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया था।
जब isis ने इराक पर कब्जा किया तब मेसोपोटामिया दौर की बेहद बहुमूल्य आर्टीफैक्ट्स जिसमें तमाम मूर्तियां थी उन मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया। हम मुस्लिम लोग ऐसे लोगों को जिन्होंने तमाम मूर्तियों को तोड़ा उन्हें गर्व से बुतशिकन कहते हैं। महमूद गजनवी को बुतशिकन की उपाधि से नवाजा गया है। अभी इस्लामाबाद कॉरपोरेशन ने जब हिंदू मंदिर के लिए जमीन अलॉट की तब हमारे उलेमाओं ने यही कहकर विरोध किया कि इस्लाम की जमीन पर कोई बुत नहीं बन सकता और मंदिर की नींव उखाड़ दी गई।
एक प्रतियोगी ने ईमानदारी से कहा कि काफिरों के धर्म स्थलों को नष्ट करने का तो हमारा इतिहास है । उसने हिन्दुओं को एक प्रकार का सकारात्मक संदेश देते हुए यह भी कहा कि अविभाजित हिंदुस्तान ही नहीं जब हमारे खलीफाओं ने स्पेन होते हुए यूरोप पर हमला किया तब हमने हजारों चर्चों को मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया, लेकिन इस पर स्पेन, ऑस्ट्रिया, सर्बिया के ईसाई हिंदुओं की तरह न्यायालयों के चक्कर में नहीं पड़े। इसके विपरीत उन्होंने एक झटके में ऐसे 800 चर्च जो लगभग 400 वर्षों तक मस्जिद के रूप में प्रयोग किए जाते रहे थे, उन्हें तुरंत चर्च में पुनः परिवर्तित कर दिया था। उसने कहा कि आप इन हिंदुओं की बेचारगी और लाचारी देखिए कि ये अपने ही मंदिरों को पाने के लिए न्यायालयों में कई शताब्दियों से चप्पल घिस रहे हैं!
इस प्रकार की चर्चा से स्पष्ट है कि हिंदुओं को इतिहास के न्यायालय से निर्णय लेना चाहिए ना कि आज के भौतिक न्यायालयों से किसी प्रकार की सहायता की अपेक्षा करनी चाहिए। इतिहास सचमुच उस समय एक न्यायालय ही होता है जब उससे तथ्यों की पड़ताल करने को कहा जाता है। वह सही सही सूचना देते हुए वस्तुस्थिति को हमारे सामने प्रकट कर देता है। यदि अनेक प्रमाणों से कोई बात सत्य सिद्ध हो रही है तो उसके लिए न्यायालयों में जाना कितना उचित है ?

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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