अम्बेडकर जी ने वर्षों पहले जो कहा था वह आज भी सच है।

भारत मे कई स्थानों पर रामनवमी की यात्रा पर मस्जिदों और मुस्लिम बस्तियों से पत्थरबाजी की खबरे आ रही हैं। सऊदी अरब बदल रहा है पर भारतीय मुस्लिम की मानसिकता वही है।

सऊदी अरब किंगडम ने सुन्नी मुस्लिम संगठन तबलीगी जमात को आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगातर प्रतिबंधित कर दिया है। यानि, अब सऊदी अरब में तबलीगी जमात लोगों को कट्टर बनाने का काम नहीं कर सकेगी। इतना ही नहीं, सऊदी अरब ने तबगीली जमात को ‘आतंकवाद का दरवाजा’ करार दिया है। सऊदी सरकार ने मस्जिदों के मौलानाओं से कहा है कि शुक्रवार से लोगों को तबलीगी जमात के बारे में चेतावनी देना शुरू कर दें, क्योंकि ‘ये समाज के लिए खतरा हैं।’ सऊदी अरब के इस्लामिक मामलों के मंत्रालय ने कई सारे ट्वीट करके अलग-अलग प्वाइंट में विस्तार से बताया है कि इस ‘कट्टरपंथी’ संगठन को वह क्यों प्रतिबंधित कर रहा है।
पिछले 3 सालों से सऊदी अरब हर वो कड़े कदम उठा रहा है, जिनसे देश को इस्लामिक कट्टरपंथ से आजादी मिले। लिहाजा सऊदी अरब के मस्जिदों में लाउडस्पीकर बजाने पर भी प्रतिबंध लगाया जा चुका

भारतीय मुस्लिम मानसिकता

डा. अम्बेडकर ने मुस्लिम राजनीति के सन्दर्भ में अपने विचार “पाकिस्तान एंड द पार्टीशन आफ इंडिया” (1940, 1945 एवं 1946 का संस्करण) में विस्तार से प्रकट किए। डा. अम्बेडकर ने भारत पर मुसलमानों के क्रूर तथा रक्तरंजित आक्रमणों का गहराई से अध्ययन किया था। उन्होंने मोहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी, मोहम्मद गोरी, चंगेज खां, बाबर, नादिरशाह तथा अहमद शाह अब्दाली के अत्याचारों का भी वर्णन किया।

डा. अम्बेडकर ने उन चाटुकारों तथा दिशाभ्रमित वामपंथी इतिहासकारों को फटकारते हुए लिखा कि “यह कहना गलत है कि ये सभी आक्रमणकारी केवल लूट या विजय के उद्देश्य से आए थे”।

डा.अम्बेडकर ने अनेक उदाहरण देते हुए बताया कि इनका उद्देश्य हिन्दुओं में मूर्ति पूजा तथा बहुदेववाद की भावना को नष्ट कर भारत में इस्लाम की स्थापना करना था। इस सन्दर्भ में उन्होंने कुतुबुद्दीन ऐबक, अलाउद्दीन खिलजी, फिरोज तुगलक, शाहजहां तथा औरंगजेब की विस्तार से चर्चा की है।

डा.अम्बेडकर ने साफ साफ बताया कि “इस्लाम विश्व को दो भागों में बांटता है, जिन्हें वे दारुल-इस्लाम तथा दारुल हरब मानते हैं। जिस देश में मुस्लिम शासक है वह दारुल इस्लाम की श्रेणी में आता है। लेकिन जिस किसी भी देश में जहां मुसलमान रहते हैं परन्तु उनका राज्य नहीं है, वह दारुल-हरब होगा। इस दृष्टि से उनके लिए भारत दारुल हरब है। इसी भांति वे मानवमात्र के भ्रातृत्व में विश्वास नहीं करते”।

डा. अम्बेडकर के शब्दों में- “इस्लाम का भ्रातृत्व सिद्धांत मानव जाति का भ्रातृत्व नहीं है। यह मुसलमानों तक सीमित भाईचारा है। समुदाय के बाहर वालों के लिए उनके पास शत्रुता व तिरस्कार के सिवाय कुछ भी नहीं है।”

उनके अनुसार “इस्लाम एक सच्चे मुसलमान को कभी भी भारत की अपनी मातृभूमि मानने की स्वीकृति नहीं देगा। मुसलमानों की भारत को दारुल इस्लाम बनाने के महत्ती आकांक्षा रही है”।
मुस्लिम धर्म के बारे में भी विस्तार से लिखते हैं, “मुसलमानों में समता नहीं हैं. इस धर्म में महिलाओं के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता. मुसलमानों के अलावा वे सभी को काफिर मानते हैं. और ‘मुसलमानों के देश/ समाज में काफिरों के साथ दोयम दर्जे का हीन व्यवहार होना चाहिए’ यह उनके धर्म में ही लिखा हैं.” इस सन्दर्भ में बाबासाहब ने अनेक उदाहरण दिए हैं. तैमूरलंग की मिसाल देकर वे बताते हैं कि उसने हिन्दुओं पर कैसे पाशविक अत्याचार किये थे.

तो फिर ऐसे मुसलमानों के साथ हिन्दुओं की एकता संभव है क्या..? अगर है, तो कैसे..? इस बारे में पुस्तक के अंत में बाबासाहब लिखते हैं, “हिन्दू – मुस्लिम एकता ‘तुष्टिकरण’ (appeasement) या ‘समझौता’ (settlement) इन दो ही रास्तों से संभव हैं. (If Hindu – Moslem unity is possible, should it be reached by appeasement or settlement..? – Chapter IV, Page 264).

इसमें उल्लेख किया गया तुष्टिकरण (appeasement) यह शब्द बाबासाहब ने मुसलमानों के सन्दर्भ में अनेकों बार प्रयोग किया हैं. ‘कांग्रेस पार्टी मुसलमानों का तुष्टिकरण करती हैं, जो देश के लिए घातक हैं’, यह कहते हुए बाबासाहब लिखते हैं – Congress has failed to realize is the fact that there is a difference between appeasement and settlement and that the difference is an essential one (Chapter IV, Page 264).

इसी अध्याय में बाबासाहब ‘तुष्टिकरण’ शब्द की व्याख्या करते हैं. वे लिखते हैं, “तुष्टिकरण याने आक्रान्ता का दिल जीतने के लिए उसके किये हुए खून, बलात्कार, चोरी, डकैती आदि को अनदेखा करना” (Appeasement means to offer to buy off the aggressor by convincing at or collaborating with him in the rape, murder and arson on innocent Hindus, who happen for the moment to be the victims of his displeasure).

अर्थात ‘कितना भी तुष्टिकरण किया जाय, आक्रांता की कितनी भी अनुनय की जाए, उनकी मांगों का कोई अंत नहीं होता…’

बाबासाहब ने बड़े ही आग्रह के साथ जनसंख्या की अदला-बदली को प्रतिपादित किया है. ‘पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान में सभी मुसलमान और हिंदुस्तान में सभी हिन्दू’ यह उनकी पक्की सोच है. और पूरी आस्था के साथ उन्होंने अपनी इस राय को बार बार दोहराया है.

बाबासाहब की यह राय आगे भी कायम रही है. भारत स्वतंत्रता की दहलीज़ पर है, और ऐसे समय, 20 जुलाई, 1947 में प्रकाशित अपने वक्तव्य में बाबासाहब कहते हैं – “बंगाल और पंजाब का विभाजन यह केवल उन प्रान्तों के निवासियों का प्रश्न नहीं है. यह राष्ट्रीय प्रश्न है. इन प्रान्तों की सीमा रेखा तय करना, सुरक्षा और व्यवस्थापन इन मुद्दों के आधार पर ही संभव है. जनसंख्या की अदला-बदली को यदि कांग्रेस और लीग मानती, तो यह समस्या खड़ी ही नहीं होती. (खंड 17, पृष्ठ 355)

साभार प्रस्तुत रमेश अग्रवाल

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