अटलजी चाहते थे रामजन्मभूमि से जानकी जन्मभूमि तक संपर्क राजमार्ग बनाना:बस्तोला

साप्ताहिक साक्षात्कार

नेपाल संसार का एकमात्र घोषित ‘हिंदू राष्ट्र’ रहा है। परंतु कुछ समय पूर्व यह देश अपनी ‘हिंदू राष्ट्र’ की छवि से हाथ धो बैठा है। 5सारा विश्व जानता है कि किस प्रकार इस ‘हिंदू राष्ट्र’ को और उसके ‘राजा’  व राजशाही को कथित धर्मनिरपेक्षता वादी और कम्युनिस्ट मिलकर  निगल गये। तब से लेकर आज तक नेपाल लोकतंत्र और लोकतांत्रिक राजतंत्र के पालने में हिचकोले खा रहा है। कुछ लोग हैं जो उसे अतीत से काटकर ‘आज की सैकूलर दुनिया’ के भंवरजाल में फंसाकर कहीं दूर ले जाकर उसका शिकार करने की युक्तियों का षडयंत्र बुन रहे हैं, तो कुछ लोग अभी भी हैं जो नेपाल को ‘हिंदू-राष्ट्र’ का गौरव दिलाकर उसे पुन: इस पद पर आसीन हुआ देखना चाहते हैं। ऐसे लोगों की पसंद राजा की पुन: वापसी भी है, परंतु शर्त ये है कि राजशाही लौटे तो सही परंतु उसमें कहीं क्रूरता ना हो, अपितु लोकतांत्रिक रास्तों से ही वह लौटे।

इस सपने को साकार रूप देने के लिए सक्रिय लोगों में से एक हैं नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर के प्रमुख सलाहकार श्री अर्जुन प्रसाद बस्तोला, जो विश्व हिंदू महासंघ के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। पिछले दिनों उन्होंने दिल्ली का दौरा किया। यहां रहकर नई दिल्ली के सूर्या होटल के रूम नं. 334 में वह देश की विभिन्न हस्तियों से मिले हैं और उनसे अपने लक्ष्य के प्रति बातचीत की है। जिनमें अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पं. नंदकिशोर मिश्र और उनके साथ हिन्दू महासभा की उच्चाधिकार समिति के महासचिव राकेश कुमार आर्य एवं पूर्वोत्तर भारत प्रभारी श्रीनिवास एडवोकेट भी सम्मिलित थे।

जब हमने उनसे बातचीत की तो वह एक साक्षात्कार ही बन गया। यहां प्रस्तुत है श्री बस्तोला की ‘उगता भारत’ के मुख्य संपादक श्री आर्य के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

प्रश्न : बस्तोला जी, आपकी भारत यात्रा का प्रमुख उद्देश्य क्या है?

उत्तर: देखिए! प्राचीनकाल से ही भारत और नेपाल के सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। हमें कभी नही लगता कि हम किसी दूसरे देश में जा रहे हैं। मैं अपने घर आया हूं। रामायण काल से ही भारत के साथ नेपाल के ‘रोटी-बेटी’ के संबंध रहे हैं। मां जानकी नेपाल की थीं तो प्रभु राम भारत के थे। वह संबंध हमारे लिए आज तक गौरव की बात है। फिर भी मेरी यात्रा का तात्कालिक उद्देश्य भारत में विश्व हिंदू महासंघ का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन कराने की संभावनाओं पर विचार करना और उसकी पृष्ठभूमि में सम्मेलन की तैयारियों का जायजा लेना है।

प्रश्न : आप आजकल भारत -नेपाल संबंधों को लेकर कैसा अनुभव करते हैं?

उत्तर : आजकल भारत-नेपाल संबंधों को लेकर कुछ दु:ख होता है। हमारे कूटनीतिक संबंध तो खराब हैं और जनता द्वारा परंपरा से स्थापित सांस्कृतिक संबंध बहुत ही सुदृढ़ हैं। आज आवश्यकता दोनों देशों द्वारा जनभावनाओं के अनुरूप अपने कूटनीतिक संबंधों को भी बेहतर बनाने की है। ऋग्वेद काल में भी भारत नेपाल के बेहतर संबंध थे। जिन्हें जनता आज भी पूर्ण मनोयोग से निभा रही है। क्या ही अच्छा हो कि इन परंपरागत संबंधों को हमारा दोनों देशों का राजनीतिक नेतृत्व भी बेहतर बनाने की दिशा में गंभीर प्रयास करे। इस दिशा में  अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने ासन शासन के दौरान सचमुच दिल से कुछ दकरना चाहा था। उनका मन बन चुका था कि रामजन्मभूमि (अयोध्या) से जानकी-जन्मस्थली (जनकपुरी-नेपाल) तक एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का संपर्क राजमार्ग बनाया जाए। इस संपर्क राजमार्ग को अटल जी ने ‘रामजन्मभूमि जानकी जन्मभूमि राजमार्ग’ का नाम दिया था। परंतु दु:ख इस बात का रहा कि उस समय बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे, जिन्होंने इस राजमार्ग की योजना में अडंगा डाला और बिहार में उसके लिए अपेक्षित भूमि के अधिग्रहण में बाधा डालने का काम किया। फलस्वरूप एक अच्छा प्रयास सफल नही हो पाया। आज भाजपा की सरकार प्रचण्ड बहुमत के साथ भारत में बनी है, तो हम अपेक्षा करते हैं कि पुन: इस प्रयास को किया जाए।

प्रश्न : आपका विश्व हिंदू महासंघ अंतर्राष्ट्रीय हिंदू सम्मेलन क्यों करना चाहता है? क्या धर्मनिरपेक्षता के इस युग में ऐसे सम्मेलन उचित माने जाएंगे?

उत्तर : देखिए, संपूर्ण विश्व में एक अरब 85 करोड़ 78 लाख के लगभग हिन्दू जनशक्ति है। जो बिखरी पड़ी है, उसकी समस्याओं  पर, वैश्विक अपेक्षाओं पर विचार विमर्श किया जाना आवश्यक है। हमारा मानना है कि संसार में मानवतावाद तभी तक जीवित है, जब तक कि हिंदू जीवित है। इसलिए हिंदू अंतर्राष्ट्रीय महासम्मेलन किया जाना आवश्यक है। जहां तक धर्मनिरपेक्षता का प्रश्न है तो संपूर्ण विश्व में आज भी 69 देश ऐसे हैं जो ईसाई राष्ट्र कहलाते हैं, जबकि 43 देशों का शासन इस्लामिक परंपराओं से चलता है, और पनामा जैसे सत्ताईस देशों का संविधान ऐसा है जो धर्मनिरपेक्षता या धर्मसापेक्षता पर मौन है। विश्व में केवल भारत और टर्की ही धर्मनिरपेक्ष देश हैं। तब भारत को भी विचारना चाहिए कि उसके लिए धर्म निरपेक्षता कितनी उचित है?

प्रश्न : धर्मनिरपेक्षता और अमेरिका पर आपका क्या मानना है? 

उत्तर : आर्य जी, अमेरिका भारत जैसे देशों को ही धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाता है। परंतु उसकी अपनी स्थिति कुछ और ही है। वहां के संविधान के अनुसार अमेरिका एक कैथोलिक ईसाई राष्ट्र है। एक कैथोलिक व्यक्ति ही अमेरिका का राष्ट्रपति बन सकता है। जिस देश की ऐसी साम्प्रदायिक मान्यताएं हों तो वह किसी अन्य देश को धर्मनिरपेक्षता का पाठ कैसे पढ़ा सकता है? वैसे अंग्रेजी के रिलीजन का अर्थ संप्रदाय है, धर्म नही। धर्म और जूठा (भोजन की जूठन के संबंध में) ये दो शब्द ऐसे हैं जिनका स्थानापन्न शब्द अंग्रेजी में है ही नही।

प्रश्न : तब नेपाल के हिंदू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में परिवर्तन को आप कैसा समझते हैं?

उत्तर : नेपाल को हिंदू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने में बड़े स्तर पर षडय़ंत्र रचे गये। जिससे इस देश से राजा और राजशाही के अंत के साथ-साथ इसका हिंदू स्वरूप भी मिटाया गया। पर आज भी नेपाल की 85 प्रतिशत जनता अपने राजा के साथ है और वह अपने देश को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में ही देखना चाहती है। इस बिंदु पर यदि जनमत करा लिया जाए तो वास्तविकता की जानकारी से संपूर्ण विश्व ही अचंभित रह जाएगा। देश की जनता संवैधानिक और लोकतांत्रिक राजशाही चाहती है। वह राजा को अपना संविधान प्रमुख देखना चाहती है।

प्रश्न : नेपाल को पुन: हिंदू राष्ट्र बनाने में भारत की क्या जिम्मेदारी हो सकती है?

उत्तर : भारत की जिम्मेदारी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो भारत नेपाल के संबंध बहुत ही अच्छे थे। तब भारत की 1200 किमी लंबी उत्तरी सीमा की रक्षा नेपाल नरेश एक सैनिक के रूप में करते थे। उधर से भारत को कोई डर नही था, परंतु राजशाही के अंत के पश्चात परिस्थितियों में व्यापक परिवर्तन आया है। अब भारत को अपनी इस सीमा पर प्रतिवर्ष सुरक्षा के नाम पर 64000 करोड़ खर्च करना पड़ रहा है। यदि भारत नेपाल को पुन: हिंदू राष्ट्र घोषित कराने में सहयोग करे और नेपाल नरेश वहां पुन: सत्तासीन हों तो भारत को फिर अपना एक विश्वसनीय प्रहरी मिल सकता है।

प्रश्न : नेपाल के कितने दल ऐसे हैं जो नेपाल को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाना चाहते हैं?

उत्तर : नेपाल के भीतर केवल जनता देश को ‘हिंदू राष्ट्र’ के रूप में देखना चाहती है। अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्रों के चलते कोई भी प्रमुख राजनीतिक दल देश को पुन: हिंदू राष्ट्र घोषित कराने से बचता है।

प्रश्न : भारत के नेताओं से कभी अब से पहले नेपाल को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने पर विचार किया है?

उत्तर : हां, 2008 में भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी जब नेता विपक्ष थे तो उनसे और राजनाथ सिंह सहित कई बड़े नेताओं से मुलाकात की थी, परंतु तब उन्होंने कहा था कि अभी हमारी सरकार नही है, सरकार में आने पर विचार करेंगे।

प्रश्न : अब भारत की सरकार से कैसे संकेत मिल रहे हैं?

उत्तर : अब भारत की सरकार से सकारात्मक और उत्साहजनक संकेत मिल रहे हैं। मैं आशावादी हूं, भारत में अक्टूबर के अंतिम सप्ताह या नवंबर के प्रथम सप्ताह में अंतर्राष्ट्रीय हिंदू सम्मेलन होना निश्चित है। तब निश्चय ही कोई आशा की किरण हमें निकलती दिखाई देगी। हमें सकारात्मक सोच के साथ आशाओं की भोर का स्वागत करने हेतु तैयार रहना चाहिए। विश्व हिंदू महासंघ की भारत ईकाई के अध्यक्ष श्री प्रमोद कुमार चरौडिय़ा विश्व सम्मेलन की तैयारियों में जुटे हैं।

प्रश्न : भारत से आपके आत्मीय लगाव का कारण क्या है?

उत्तर : देखिए मैंने बताया था कि रामायण काल से भारत नेपाल के संबंध मधुर रहे हैं। महाभारत काल में भी राजा विराट यहां श्रीकृष्णजी के और पाण्डवों के धर्मयुद्घ में साथ देने के लिए आये थे। यहां तक कि 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो राजा महेन्द्र ने भारत का पक्ष लिया। इसलिए हम तो भारत को अपना बड़ा भाई मानते हैं। हिंदू हृदय सम्राट वीर सावरकर ने इस विषय में लिखा था कि भारत की आजादी के पश्चात नेपाल नरेश को भारत का राजा घोषित किया जाए। यह एक सोच थी, जिसे बहुत ही विचार के पश्चात वीर सावरकर ने प्रकट किया था।

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