क्षेत्र में जल और वायु का प्रदूषण बनता जा रहा है मौत का मंजर

श्रीनिवास एडवोकेेट
दादरी। तहसील दादरी सूबे की एक मात्र ऐसी तहसील है जो सबसे अधिक राजस्व प्रदेश के खजाने के लिए देती है, लेकिन विकास के नाम पर यहां विनाश ने जिस प्रकार पांव पसारे हैं उससे प्रशासन की लापरवाही तो स्पष्टï झलकती ही है साथ ही भविष्य की एक भयावह तस्वीर भी उभर कर सामने आ जाती है। जी हां, और हम यहां बात कर रहे हैं क्षेत्र में बढ़ते जल और वायु प्रदूषण की।
पिछले बीस सालों में यहां जल्दी से औद्योगिक प्रतिष्ठानों का विस्तार हुआ है। जी.टी. रोड पर अब दादरी और गाजियाबाद के बीच कहीं पर भी हरियाली नजर नही आती। सारी खेती योग्य भूमि इस समय औद्योगिक प्रतिष्ठानों ने हथिया ली है। जिससे औद्योगिक प्रतिष्ठानों के मालिकों ने अपनी कंपनियों का गंदा पानी जमीन के नीचे उतारने का प्रबंध कर लिया है। प्रशासन की इसमें मिलीभगत रही और इस मिलीभगत का परिणाम ये आया है कि जी.टी. रोड और उसके इर्द गिर्द स्थापित औद्योगिक प्रतिष्ठानों केे प्रदूषित पानी के जमीन में उतारे जाने से पूरे क्षेत्र का पानी ही खराब हो गया है। अब से बीस-पच्चीस साल पहले केवल गाजियाबाद की कुछ कंपनियों की वजह से गिरधरपुर, सुनारसी, दुरियाई, कचैड़ा, वारसाबाद, चिपियाना, बुजुर्ग, छपरौला इत्यादि गांवों का पानी खराब होना शुरू हुआ था, परंतु अब तो स्थिति बहुत ही खराब हो गयी है, अब क्षेत्र केे ग्राम दुजाना, बिशनूली, महावड़, बम्बावड, कूड़ीखेड़ा, आकिलपुर, छिड़ौली, कल्दा, इरादतपुर, सादोपुर, अच्छेजा, बादलपुर, रोजा जलालपुर, सादुल्लापुर, धूममानिकपुर, बिसाहड़ा, रानौली लतीफपुर, सीदीपुर, ततारपुर, चौना, पटादी, कलौंदा, जारचा, प्यावली ताजपुर, छांयसा, छौलस, इत्यादि गांवों का पानी भी खराब हो चुका है, या खराब होता जा रहा है।
सबसे खतरनाक स्थिति गांव सादोपुर की रही है। जहां पिछले दो वर्षों में प्रदूषित जल केे पीने से फैली कैंसर बीमारी से कई लोगों की मौत हो चुकी है। प्रशासन को सारी जानकारी है, परंतु कोई भी कुछ करने को तैयार नही है। लोगों को अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया गया है। अधिकारियों की यदि बात करें तो वह अपने लिए घर से अपनी गाड़ी में आर. ओ. का पानी रखवाकर चलते हैं, परंतु मानवीय संवेदना का विषय ये है कि जिन कंपनियों के प्रदूषित जल से आम आदमी मरने की स्थिति में जा रहा है उनके लिए अच्छे जल की व्यवस्था क्यों नही की जा रही है?
आर.ओ. मशीन बनाने वाली कंपनियों की तो चांदी कट रही है और ये कंपनियां अपने उत्पाद बना-बेचकर स्वयं भी चांदी काट रही हैं, परंतु आम आदमी तो जीवन मौत की लड़ाई लड़ रहा है और उसका जीना मुहाल होता जा रहा है। उनकी सुध कौन लेगा?
शिकायत करते हैं तो हडक़ाते हैं अधिकारी
गांव सादोपुर केे लोगों से जब हमारी टीम ने पूछा कि आपकेे लिए प्रशासन ने क्या कुछ किया है? तो लोग इस प्रश्न का जवाब देने केे लिए तैयार नही थे, उनका कहना था कि यदि कुछ छपवा देंगे तो बाद में अधिकारियों के हडक़ाने वाले फोन आएंगे। इसलिए कुछ भी स्पष्ट बताने से लोग बच गये। परंतु इससे प्रशासन की तानाशाही की जानकारी तो मिल ही जाती।
फ्लैट कल्चर के होंगे गंभीर परिणाम
ग्रेटर नोएडा में बन रहे लाखों फ्लैट्स केे कारण अगले दस वर्ष में ही लगभग बीस लाख की आबादी का बोझ यहां बढऩे वाला है। अब सवाल ये है कियहां की मूल आबादी के लिए ही यदि प्रशासन शुद्घ जल और शुद्घ हवा नही दे पा रहा है तो आने वाले बीस लाख लोगों केेलिए इनकी व्यवस्था कहां से करेगा? निश्चित रूप से तब की स्थिति पर विचार करने से ही रूह कांप उठती है। यहां पानी, हवा, शुद्घ सब्जी, शुद्घ फल और शुद्घ दूध-घी आदि मिलने मुश्किल हो जाएंगे। आज ही पानी की बिसलेरी की बोतल दूध से महंगी हो चुकी है। पूरे नोएडा व ग्रेटर नोएडा में कहीं पर भी हरियाली के लिए इतना क्षेत्र नही छोड़ा गया है कि जहां से सब्जी आदि की पैदावारी हो सके। दूध, घी के लिए गौ आदि दुधारू पशुओं के पालने पर पूरी तरह रोक है। जिससे शुद्घ दूध और घी बच्चों के लिए मिलने मुश्किल हो चुके हैं। मनोरंजक बात ये है कि सोसाइटीज या फ्लैट्स में पार्कों व सडक़ों पर मनुष्य के तो थूकने पर भी प्रतिबंध है परंतु कुत्ता कोई गंदगी फेेला दे तो ‘साहब’ का कुत्ता होने के कारण उस पर कोई प्रतिबंध नही है। सचमुच आज आदमी से ज्यादा कीमती कुत्ता हने गया है। लगता है कि आने वाले समय में आदमी की परवरिश (?) शायद कुत्ता ही करने लगे।

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