विश्व शांति के लिए योग ही एक उपाय:मोदी

32243155.cmsव्यूरो कार्यालय

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका में जाकर जिस प्रकार मीडिया में मोदी का ‘इंडिया फीवर’ चढ़ाने में सफलता हासिल की है, उससे हर भारतीय को गर्व और गौरव की अनुभूति हुई है। मोदी ने अमेरिका में जहां भी कदम रखा है, वहीं ‘मोदी-मोदी’ का शोर सुनने को मिला, जिससे लगा कि वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी उसी प्रकार लोकप्रिय होते जा रहे हैं जिस प्रकार भारत के राजनीतिक गगन पर उन्होंने एकाधिकार स्थापित कर लिया है।

न्यूयार्क के सेंट्रल पार्क में ग्लोबल सिटीजन फस्टीवल के मौके पर आयोजित एक रॉक कंसर्ट में मोदी ने मजबूत दक्षेस की वकालत की और मेडिसन स्क्वायर में मोदी ने जिस प्रकार भारतीयता को स्पष्ट करने का प्रयास किया, वह भी काबिले तारीफ है। प्रधानमंत्री की सभा के दौरान लघु भारत नजर आया।

अच्छा हुआ कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को कश्मीर के मुद्दे पर करारा जवाब नहीं दिया। उन्होंने जो जवाब दिया वह सिर्फ पाकिस्तान के लिए नहीं बल्कि हिंसक होती जा रही दुनिया के लिए है। भारत के प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान द्वारा कश्मीर का मुद्दा उठाये जाने को मूल मुद्दा न बनाते हुए अपनी तरफ से एक बार फिर शांति और सहयोग की जो अपील की वह काबिले तारीफ है। दो पड़ोसी सनातन दुश्मन होकर नहीं जी सकते। भारत की इसी मूल विदेश नीति का अब तक पाकिस्तान दुरुपयोग करता रहा है। नरेन्द्र मोदी ने उसी भारतीय नीति का प्रतिपादन तो किया ही लेकिन एक ऐसी नीति का प्रतिपादन किया जिसके लिए उन्हें विशेष रूप से धन्यवाद दिया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र महासभा में खड़े होकर पूरी दुनिया से योग-दिवस मनाने की अपील न सिर्फ ऐतिहासिक है बल्कि युगानुकूल भी है।

साठ पैंसठ साल की कोशिशों के बाद भी अभी भारत दुनिया में न तो अपनी आर्थिक शक्ति के कारण पहचाना जाता है और न ही सामरिक शक्ति के कारण। पूरी दुनिया में भारत की सनातन आध्यात्मिक पहचान है और बीते सौ सवा सौ सालों में योग ने उसे नये सिरे से स्थापित किया है। जिस अमेरिका में खड़े होकर प्रधानमंत्री मोदी ने योग का अंतरारष्ट्रीय दिवस मनाने की अपील की है उस वैज्ञानिक अमेरिका में सबसे पहले वेदान्त सिद्धांत स्वामी विवेकानंद ने प्रतिपादित किया था। उस वक्त भी दुनिया शांति की तलाश कर रही थी और स्वामी विवेकानंद ने शांति के लिए भारत की ओर देखने का सुझाव दिया था। जिस वसुधैव कुटुंबकम के वैदिक सिद्धांत को भारत अपना आधार मानता है उसे विश्व मंच पर पहली बार नरेन्द्र ने शिकागो में प्रतिपादित किया था। इसके बाद के सवा सौ साल केवल अमेरिका में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में योग क्रांति का काल रहा है। भारत की सन्यास परंपरा ने न सिर्फ अमेरिका को विश्वशांति के स्थाई उपाय योग का मार्ग दिखाया बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी योग मार्ग प्रशस्त किया गया।

भारतीय सन्यासियों ने अशांति के अतिक्रमण के बीच योग जो प्रतिक्रमण किया था उसका परिणाम आज सौ सवा सौ साल बाद दिखाई देने लगा है। दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां भारत के किसी योगी का कोई न कोई योग आश्रम न संचालित हो रहा हो। अरब के देशों में भी शांति के उपाय में योग के उपासकों का अभाव नहीं है। आष्ट्रेलिया से लेकर अफ्रीका तक और अमेरिका से लेकर यूरोप तक सब जगह शांति के लिए न सिर्फ प्रशासन नाकाफी साबित हो रहे हैं बल्कि धर्म भी मनुष्य की मदद करने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। धर्मों के संगठित स्वरूप ने ऐसा जटिल रूप अख्तियार कर लिया है कि पूरी दुनिया धर्म आधिपत्य के नये औजार बन गये हैं। ऐसे में मानवधर्म योग बिना किसी धार्मिक मान्यता के साथ छेड़ छाड़ किये हुए मनुष्य को सकारात्मक और शांति का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

अगर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह कह रहे हैं कि योग सिर्फ आसन नहीं है तो वे बिल्कुल सही कह रहे हैं। योग को सिर्फ आसन नहीं कहा जा सकता। आसन योग का एक अंग हैं। योग एक समग्र जीवन दर्शन है जो आत्म का परमात्मा से नहीं बल्कि आत्मा को आत्मा से मिलाने का उपाय करता है। एक स्वस्थ और निरोगी व्यक्ति न सिर्फ अपने लिए बल्कि दुनिया के लिए भी एक वरदान है। आधुनिक युग में दुनिया में योग का बीज बोनेवाले बिहार योग विद्यालय के स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे योग भविष्य की संस्कृति है। वर्तमान में बिहार योग विद्यालय के कुलाधिपति स्वामी निरंजनानंद इससे भी आगे जाकर कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती को जिस योग की शिक्षा दी थी वह धर्म की या मोक्ष की शिक्षा नहीं थी। संसार में पहली बार जिस पाशुपत योग का जन्म हुआ उसके मूल में मनुष्य के दुखों की मुक्ति का उपाय था। उसके शारीरिक और मानसिक रोगों और अवसादों से उबरने के उपाय थे। आज तक योग मनुष्य को तन मन से निरोग करने का सबसे सफल उपाय बना हुआ है।

इसलिए योग के लिए विश्व का एक दिन तो समर्पित होना ही चाहिए। दुनिया में शांति के 364 दिन के उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं। शस्त्र और शास्त्र दोनों मनुष्य के मन में वह शांति स्थापित नहीं कर पा रहे हैं कि वह ठीक अपने बगल में खड़े मनुष्य को सिर्फ मनुष्य के रूप में पहचान सके। धर्म, भाषा, देश, जाति, वर्ग, लिंग, रंग और भी न जाने कितने मतभेद मनुष्य को मनुष्य से दूर किये हुए हैं। सिर्फ योग मार्ग ही इन दूरियों को पाट सकता है और मनुष्य को सिर्फ मनुष्य से ही नहीं बल्कि संसार और प्रकृति के साथ अपनत्व का बोध करा सकता है। इस बात को एक योगाभ्यासी ही समझ सकता है। और संयोग से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद योग के अनुशासन वाले व्यक्ति हैं इसलिए उनका यह आह्वान न सिर्फ भारत के लिए गौरव की बात है बल्कि दुनिया के लिए भी शांति का एक सुअवसर है।

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