न्यायिक सुधार – एक सरल पहल

मनीराम शर्मा

आज भारतीय  न्यायतंत्र उसके पडौसी देश पाकिस्तान और श्रीलंका से भी अश्रेष्ठ  है| मूलतः यह तात्कालीन ब्रिटिश परम्पराओं और औपनिवेशिक कानूनों पर आधारित है  जिसे श्री मोतीलाल नेहरू ने नैनी जेल में बंद होने पर जन विरोधी बताकर सिरे से ही खारिज  कर दिया था और अपना बचाव करने के लिए मना कर दिया  किन्तु अफसोसजनक है कि छिपे हुए उद्देश्यों के लिए इसके बावजूद  यही प्रणाली स्वतंत्र भारत में जारी रखी गयी|

भारतीय कानून और न्याय व्यवस्था ब्रिटिश परम्पराओं  पर आधारित होने के कारण इसमें आपकी प्रतिबद्ध सरकार द्वारा वर्तमान में उसके अनुरूप संविधान सम्मत परिवर्तन आसानी से किये जा सकते हैं और न्यायिक मनमानियों पर अंकुश लगाकर जनता के प्रति जिम्मेदारी लायी जा सकती है | संविधान के अनुच्छेद 50 में यह प्रावधान है कि  कार्यपालिका और न्यायपालिका स्वतंत्र होंगे किन्तु न्यायपालिका में  आज भी न्यायिक और प्रशासनिक कार्य एक ही  व्यक्ति  -मुख्य न्यायाधीश द्वारा संपन्न किये जाते हैं जोकि संविधान के उक्त प्रावधान के विपरीत है | इंग्लॅण्ड में  सुप्रीम कोर्ट में प्रशासनिक  कार्य  और न्यायिक कार्य के लिए अलग अलग मुखिया हैं| अत: भारत में भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में तदनुसार कार्य विभाजन किया जाए | इंग्लॅण्ड के सुप्रीम कोर्ट का प्रशासनिक मुखिया सभी न्यायालयों के त्वरित और कुशल संचालन के लिए जिम्मेदार भी है |

इंग्लॅण्ड में न्यायिक निरीक्षणालय अलग से कार्यरत है और वहां पर न्यायालयों में विचाराधीन या निर्णित मामलों की पुनरीक्षा करने के लिए एक न्यायिक पुनरीक्षा आयोग और कार्यरत है जो किसी  भी मामले की किसि भी स्तर पर समीक्षा कर सकता है| ऐसे ही  आयोग भारत में स्थापित किये जाएं  तो न्यायिक मनमानी व भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा|

हमारे संविधान के अनुच्छेद 32(3) में यह प्रावधान है कि संसद कानून बनाकर रिट क्षेत्राधिकार जिला न्यायालय को सौंप सकती है | आज विश्व के बहुत से देशों में यह क्षेत्राधिकार जिला स्तर पर उपलब्ध भी है| आज हाई कोर्ट तक पहुंचना आम नागरिक के लिए कठिन कार्य है और हाई कोर्ट में कार्यभार की अधिकता के कारण मामलों की सुनवाई में असहनीय विलम्ब भी होता है जिससे न्याय हित को हानि पहुंचती है | अत: उपयुक कानून बनाकर जिला न्यायालयों को रिट क्षेत्राधिकार प्रदान किया जाए| इन परिवर्तनों के लिए कोई ज्यादा संशोधनों की भी आवश्यकता नहीं रहेगी |

आज वक्त आ गया है न्यायपूर्ण समाज की रचना के लिये केवल विचार ही व्यक्त ना करे बल्कि न्यायपूर्ण आचरण भी करे तभी देश  में न्यायपूर्ण समाज की रचना संभव हो पायेगी। न्यायपूर्ण समाज में ही शांति, सदभाव, मैत्री, सहअस्तित्व कायम हो पाता है और विकास का मार्ग प्रसस्त होना संभव है । अत: उक्त परिपेक्ष्य में आपसे अपेक्षा है कि वे इस स्थिति पर मंथन कर देश में अच्छे कानून का राज पुनर्स्थापित करें|

(यह पत्र एडोवोकेट मनीराम शर्मा   दिनांक 11.11.14 को प्रधानमंत्री को लिखा था जिसका संक्षिप्‍त अंश आपके समक्ष है)

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