पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकास पार्टी का आह्वान

भारत के संविधान के अनुच्छेद-3 में नया राज्य गठन करने की शक्तियां संसद को हैं।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नई हाईकोर्ट की खण्डपीठ गठन करने पर व्यवहारिक दिक्कतें बताई हैं कि इससे कार्यक्षमता एवं गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ेगा व क्योंकि एक राज्य में एक ही मुख्य न्यायाधीश व एक ही एडवोकेट जनरल होता है, इसलिए नई पीठ गठित नही हो सकती है, जबकि इसके विपरीत इलाहाबाद हाईकोर्ट की खण्डपीठ लखनऊ में तथा बॉम्बे हाईकोर्ट की खण्डपीठ मुंबई, नागपुर, पणजी, औरंगाबाद में, कलकत्ता हाईकोर्ट की खण्डपीठ प्रधान पीठ कलकत्ता दूसरी जलपाईगुडी, गुवाहाटी हाईकोर्ट की गुवाहाटी में पहली तथा दूसरी अरूणाचल प्रदेश में तीसरी आईजोल, चौथी ईटानगर, कर्नाटक  हाईकोर्ट की प्रथम प्रधान शाखा बेंगलूर, दूसरी धारवाड़, तीसरी गुलबर्गा में, मध्य प्रदेश की प्रधान पीठ जबलपुर, दूसरी ग्वालियर, तीसरी इंदौर में, मद्रास हाईकोर्ट की प्रधान पीठ चैन्नई, दूसरी मदुरै में तथा राजस्थान हाईकोर्ट की प्रधान पीठ जोधपुर, दूसरी जयपुर में कार्यरत है, इन हाई कोट्र्स की कार्यक्षमता एवं गुणवत्ता पर आज तक कोई प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ा है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश जनसंख्या के हिसाब में देश का सबसे बड़ा प्रांत है, फिर इसमें चार पीठ क्यों नही हो सकती हैं? पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता के साथ ही यह सौतेला व्यवहार क्यों? मगर अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता जाग चुकी है, वह अपने अधिकारों को लेकर रहेगी और राज्य सरकार की दोगली नीति एवं सौतेलेपन व्यवहार व लूट अब नही चलने वाली है।

‘‘अब विकास की गंगा लाना है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश अलग प्रांत बनाना है।’’

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता के साथ सौतेलापन का व्यवहार ब्रिटिश शासन से सन 1775 में प्रारंभ हुआ तथा वर्ष 1901 में अवध व आगरा दोनों प्रांतों को मिलाकर संयुक्त प्रांत कर दिया गया, व आज भी काले अंग्रेजों द्वारा दमन जारी है।

वर्ष 1930 में गोलमेज सम्मेलन लंदन में महात्मा गांधी, मौ. अली जिन्ना व भाई परमानंद ने उत्तर प्रदेश के विभाजन को उचित बताया था, वर्ष 1953 में स्वतंत्रता के पश्चात श्री फजल अली की अध्यक्षता में ‘राज्य पुनर्गठन आयोग’ बना, जिसके समक्ष 97 विधायकों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों को मिलाकर नया राज्य बनाने की मांग रखी। आयोग के सदस्य श्री के.एम. पणिक्कर तथा हृदयनाथ कुंजरू ने भी इसका समर्थन किया।

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने भी अलग राज्य बनाने का समर्थन किया। वर्ष 1977 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने छोटे राज्य बनाने का संकल्प लिया, तो स्व. चौधरी चरण सिंह ने भी समर्थन किया।

वर्ष 1978 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में एक विधायक श्री सोहनवीर सिंह तोमर द्वारा विभाजन का प्रस्ताव रखा गया।

वर्ष 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार विधान मण्डल से प्रस्ताव विभाजन संबंधी पारित कराकर केन्द्र सरकार को भेजा, जिस पर आज तक निर्णय नही लिया गया।

सत्ताच्युत होने के पश्चात कांग्रेस नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री जयराम रमेश का भी प्रशासनिक दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश के विभाजन के विषय में विचार आया है।

लेकिन अब ज्यादा देर सहन नही होगा। उत्तर प्रदेश की जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 28 जिलों को मिलाकर नये राज्य के गठन के लिए ‘‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकास पार्टी’’ का गठन कुछ बुद्घिजीवियों, किसानों, व्यापारियों द्वारा गतवर्ष लिया गया।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 1. सहारनपुर, 2. मुजफ्फरनगर, 3. शामली, 4. बिजनौर, 5. मेरठ, 6. हापुड़, 7. गाजियाबाद, 8. मुरादाबाद, 9. रामपुर, 10. बागपत, 11. गौतमबुद्घ नगर, 12. बुलंदशहर, 13. ज्योतिबाफुलेनगर (अमरोहा), 14. बदायूं, 15. पीलीभीत, 16. शाहजहांपुर 17. अलीगढ़, 18. हाथरस, 19. मथुरा, 20. एटा, 21. आगरा, 22. फिरोजाबाद, 23. मैनपुरी, 24. फर्रूखाबाद, 25. इटावा, 26. कासगंज, 27. सम्भल, 28. बरेली को मिलाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश अलग राज्य बनाने को संघर्ष करना है, जिससे कि जनता को सस्ता व सुलभ न्याय मिल सके तथा चहुंमुखी विकास हो सके, क्योंकिसामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक न्याय के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता कब तक पिसती रहेगी?

इस प्रस्तावित पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 29 संसदीय क्षेत्र आते हैं-1. सहारनपुर, 2. कैराना, 3. मुजफ्फरनगर, 4. बिजनौर, 5. नगीना, 6. मुरादाबाद,  7. रामपुर, 8. सम्भल, 9. अमरोहा, 10. मेरठ, 11. बागपत, 12. गाजियाबाद, 13.  गौतमबुद्घ नगर, 14. बुलंदशहर,  15.  अलीगढ़, 16. हाथरस, 17. मथुरा, 18. आगरा, 19. फतेहपुर, 20. फिरोजाबाद, 21. मैनपुरी, 22. एटा, 23. बदायूं, 24. आंवला, 25. बरेली, 26. पीलीभीत, 27. शाहजहांपुर, 28. इटावा, 29. फर्रूखाबाद।

इस प्रस्तावित प्रांत की आबादी सन 2014 की जनगणना के अनुसार लगभग 6.50 करोड़ है। सम्भावित प्रदेश का क्षेत्रफल 7000 वर्ग कि.मी. है, इसमें 135 विधान सभायें हैं। मेरठ, आगरा, मथुरा, का ऐतिहासिक महत्व है। गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, गौतमबुद्घ नगर, बुलंदशहर उत्पादन व राजस्व के हिसाब से सर्वोत्तम जनपद हैं। भारत के 29 प्रांतों में उत्तर प्रदेश का स्थान पिछड़ेपन में 28वां है। क्योंकि पश्चिमी  उत्तर प्रदेश की आय व राजस्व को पूर्व के जिलों पर खर्च किया जाता है, यदि यह अलग राज्य बन जाते हैं तो इसकी परचेजिंग पैरिटी पॉवर (पी.पी.पी.) क्रयशक्ति एवं ग्रास डवलपमेंट प्रोडक्शन (जी.डी.पी.) पूरे भारत में नही वरन विश्व में सर्वाधिक होगी क्योंकि अकेला जनपद गौतमबुद्घ नगर 14,000 करोड़ राजस्व अदा करता है।

हम अपनी अलग राजधानी व अलग हाईकोर्ट प्राप्त करेंगे, राज्य व्यवस्था, प्रशासकीय कुशलता, सुशासन, प्रबंधकीय दृष्टिकोण से विभाजन परम आवश्यक है। इसलिए केन्द्र सरकार पुन: राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन करे और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता की भावनाओं के अनुसार छोटा अलग प्रांत बनाये यदि ऐसा होता है, तो हमारा सदियों से होता आ रहा शोषण समाप्त होगा। हम  अपनी शिक्षानीति, स्वास्थ्य नीति, सिंचाई नीति, आरक्षण नीति, पश्चिमी  उत्तर प्रदेश रेल कारपोरेशन अलग से बनाकर नई रेल नीति, विकलांग, वृद्घ, विद्यार्थी, बेरोजगारों के कल्याण हेतु नीति, गन्ना किसान के संबंध में स्पष्ट नीति, किसानों की आबादी के संबंध में नयी नीति, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा वर्कर्स के कल्याण के लिए नीति, नेत्रहीन व निर्बल आय वर्ग के बच्चों के हॉस्टल, पशुधन विकास, दुधडेरी नीति, बिजली की समस्या का निपटारा सडक़, परिवहन, निर्बल आय वर्ग के लोगों को आवास, औद्योगिक विकास, भूमि अधिग्रहण की समस्या का निपटारा, कानून एवं व्यवस्था का प्रश्न, पुलिसिंग, पर्यावरण, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत व अन्य स्थानी नियमों के सुचारू रूप से कार्य एवं विकास की नीति, भ्रष्टाचार निवारण, अनाथालय, भिक्षावृत्ति पर रोक, फुटपाथ पर सोने वालों के लिए समुचित साधन एवं व्यवस्था,बेसहरा, विधवा व वृद्घावस्था पंैशन, महंगाई, पर अंकुश टैक्स में कमी, नैतिक शिक्षा को अनिवार्य करना, समृद्घ, सुशिक्षित, समर्थवान अलग योग्य नागरिक तैयार मात्र फूड प्रोसेसिंग कृषि में आमूल चूल परिवर्तन करके किसानों की आय वृद्घि कराकर उन्नत एवं उत्तम बनाना, मजदूरों का भरपूर मजदूरी के अवसर प्रदान करना आदि। इस प्रकार के कार्य स्वयं करके हम सब मिलकर उत्तम प्रदेश बनाएंगे, त्वरित न्याय के सिद्घांत पर चलेंगे तथा अधिवक्ता बंधुओं के लिए बीमा, पैंशन आदि की व्यवस्था करेंगे। ‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकास पार्टी’ के सदस्य और इस महायज्ञ में अपनी आहुति डालने का सुअवसर प्राप्त करें। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनायें।

निदेवक : देवेन्द्र सिंह आर्य एडवोकेट (राष्ट्रीय अध्यक्ष) के.पी.सिंह तोमर (वरिष्ठ महासचिव)

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