सड़क के किनारों पर कब्जे का दशकों पुराना तरीका….

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सड़क के किनारे मज़ारें -कब्रें रातों-रात नहीं उग आतीं ! इसके पीछे सुनियोजित तरीके से सनातन जनों के अंधविश्वास, भीरुता और अ-जागरूकता का भरपूर उपयोग किया जाता है ! सड़क के किनारे 90 प्रतिशत स्थित कब्रों में कोई मुर्दा दफ्न नहीं होता… शायद ही आपने सड़क के एकदम किनारे मुर्दे को दफ्न करते किसी को देखा होगा !…
लेकिन पक्की सजी-धजी… लिंटरयुक्त कब्रें आपको हर सड़क के किनारे मिलेंगी ! इन कब्रों पर मोमिन सिर नहीं झुकाते… नियाज़ नहीं चढ़ाते… क्योकि उन्हें पता होता है कि इन कब्रों को जगह घेरने,मज़हबी और व्यापारिक हितों को साधने के लिए बनाया गया है ! इन कब्रों पर दान-दक्षिणा-प्रसाद और सिक्के चढ़ाने वाले अधिकांश हिन्दू अर्थात काफ़िर ही होते हैं….

भारत मे सड़क घेरने के सौ तरीके हैं, कोई रोकने टोकने वाला नहीं… कोई सरकारी एजेंसी इन्हें नहीं रोकती !.. नीचे का चित्र देखिये… दरअसल यह एक अवैध मजार बनाने की पुख्ता तैयारी है ! पेड़ पर एक हरे दुपट्टे के नीचे एक गुल्लक लगा दी गई है ! इसका मतलब हर मोमिन समझता है कि यहां कब्र/ मजार बनाने की तैयारी है ! हरा चमकीला -दुपट्टा , गुल्लक (दानपात्र) और अक्सर हरा झंडा भी लगा होता है…

हिन्दू और मोमिन गुल्लक में पैसे डालने शुरू कर देते हैं… आस पास- के ईंट के भट्टों से #ईंट लादे ट्रैक्टर-ट्राली-घोड़ा गाड़ी वाले हिन्दू और मोमिन ट्रैक्टर-चालक-मजदूर जितनी बार पेड़ पर लटकी गुल्लक के सामने से निकलते हैं…दो-चार ईंटें डालते निकलते हैं ! हिन्दू ट्रैक्टर चालक -मजदूर फ्री में ईश्वर-अल्लाह की स्तुति में अपनी आहुति डालते हैं… मोमिन ट्रैक्टर चालक -मजदूर जानता है कि यह तब्लीग और मज़हब का कार्य है… ! गुल्लक को अनाथ नहीं छोड़ा जाता… मुख्य और व्यस्त मार्गों पर एक शख्स इन गुल्लकों और ईंटों की रखवाली भी करता रहता है…..

हर्र लगे न फिटकरी… महीने दो महीने में कब्र बनाने लायक ईंटें हो जाती है… तब एक दिन अमूमन शाम 3-4 बजे दस -बारह लोग प्रकट होते हैं… दो-तीन घण्टे में कब्र तैयार… मये प्लास्टर-रंग-रोगन इत्यादि के… अगले झटके में ऐसे ही लिंटर भी पड़ जाता है !… एक मुतबल्ली बैठ जाता है… हिन्दु जन आकर श्रद्धा पूर्वक प्रसाद चढ़ाते हैं, पीर बाबा से भूत भगाने लगते हैं…
धंधा चल निकलता है…

 

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