भारत में जनप्रतिनिधियों के लिए क्या होनी चाहिए आवश्यक शर्तें ?

 

डा. उदयशंकर पाण्डेय अपनी पुस्तक प्राचीन भारत की राज्य व्यवस्था’ में विभिन्न नीतिकारों, विद्वानों, ग्रंथों और स्मृतियों का उद्घरण दे देकर हमें बताते हैं कि उन सबमें राजा में किन गुणों की आवश्यक माना गया है-
याज्ञवल्क्य : याज्ञवल्क्य ने राजा के गुणों की गणना के क्रम में कहा है कि-राजा को शक्ति संपन्न, दयावान, दानी, दूसरों के कर्मों को जानने वाला, तपस्वी, ज्ञानी एवं अनुभवी लोगों के विचारों को सुनकर निर्णय लेने वाला, मन एवं इंद्रियों को अनुशासित रखने वाला, अच्छे एवं बुरे भाग्य में समान स्वभाव वाला कुलीन, सत्यवादी, मनसा एवं कर्मणा पवित्र, शासन कार्य में दक्ष, शारीरिक, मानसिक एवं बौद्घिक दृष्टि से सबल व्यवहार एवं वाणी में मृदुल आचार्यादि प्रतिपादित वर्णधर्म एवं आश्रमधर्मों का पोषक, अकृत्य कर्मों से अलग रहने वाला, मेधावी, साहसी, गंभीर, गुप्त बातों तथा दूतों के संदेशों एवं अपनी कमी की गोपनीयता की रक्षा करने वाला, शत्रुओं पर दृष्टि रखने वाला, भेदनीति का ज्ञाता, दुर्बलों का रक्षक, तर्कशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं शासन शास्त्र में प्रवीण होना चाहिए।

विष्णु स्मृति

विष्णु स्मृति में राजा के लिए कुलीन, धर्मपरायण, प्रसन्नचित, विनोदी स्वभाव वाला, वृद्घों से सम्मान सहित विचार विनिमय करने वाला, सदाचारी, सत्यवादी, वचनबद्घ, कृतज्ञ, विशालचित, उत्साही, अप्रमादी, दृढ़-संकल्पी, स्वानुशासन प्रिय और अच्छे चरित्रवान मंत्रियों का चयन करने वाला होना माना गया है। कौटिल्य के अनुसार राजा को वाग्मी, प्रशल्य स्मरणशक्ति, बलवान, उन्नतमन, संयमी, निपुण, विपत्तिग्रस्त शत्रु पर आक्रमण न करने वाला, किसी के उपकार या अपकार का यथोचित प्रतिकार करने वाला, लज्जावान, दीर्घदर्शी, दूरदर्शी प्रजा को बिना कष्ट दिये कोष बढ़ाने वाला, दूसरों का उपहास न करने वाला, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या, पशुता से दूर रहने वाला, प्रियभाषी, हंसमुख होना चाहिए।

आचार्य भीष्म

आचार्य भीष्म ने शांतिपर्व में अन्य गुणों का वर्णन करने के अतिरिक्त राजा के लिए कहा है कि-वह सत्य का रक्षक, व्यवहार में सरल दूसरों का धन एवं धर्म नष्ट न करने वाला, वेदत्रयी (ज्ञान, कर्म, उपासना) का ज्ञाता, संकरता से बचाने वाला, इत्यादि श्रेष्ठ गुणों से युक्त होना चाहिए।

आचार्य शुक्र

आचार्य शुक्र ने अच्छे राजा के भीतर 8 गुण आवश्यक माने हैं-दुष्ट निग्रह, दान देना, प्रजापालन, राजसूयादि यज्ञ करना, न्यायपूर्वक कोषवृद्घि, कर-वसूलना, शत्रु मानमर्दन, एवं राज्य की सीमा का विस्तार करना।

महात्मा विदुर

विदुर ने राजा के लिए लोकप्रिय होना अति आवश्यक माना है।

इस प्रकार के राजधर्म में जो राजा अपनी प्रजा का हितसंवर्धक होता है और प्रत्येक प्रकार से राज्य की प्रजा का कल्याण करने में तत्पर रहता है, अध्ययन, यजन और दान में निमग्न रहता है, सदा त्यागमय जीवन यापन करना ही उचित समझता है, वही राजा उत्तम होता है।

इन सारे गुणों में राजा के लिए व्यसनी, व्यभिचारी, कामी, अनपढ़, अशिक्षित, मद्यपान करने वाला और अपने प्रति निष्ठावान लोगों को ही समय आने पर कठोर दण्ड देने वाला कहीं नही लिखा है। जबकि सभी मुगल बादशाह व्यसनी, कामी, क्रोधी और हिंदुओं का नरसंहार करने वाले ,मानवता के हत्यारे रहे। जिस बादशाह को ‘महान’ कहकर पढ़ाया जाता है उसमें महानता का एक भी ऊपरिलिखित गुण विद्यमान नहीं था। इसके बावजूद आज का लोकतंत्र और आज की राजनीति इन दुष्ट अत्याचारी क्रूर निर्दयी, निर्मम , मानवता के हत्यारे शासकों की आरती उतारने में लगा हुआ है। जिससे देश की युवा पीढ़ी का बहुत अधिक अहित हुआ है। क्योंकि वह अपने वास्तविक इतिहास नायकों के बारे में सच जान नहीं पाई।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारे संविधान में जहां भारत के जनप्रतिनिधियों के निर्वाचन के संबंध में केवल इतना लिखा है कि वह भारत का नागरिक हो, 25 वर्ष की अवस्था पूर्ण कर चुका हो, किसी न्यायालय से सजायाफ्ता मुजरिम ना हो और कोढ़ी दिवालिया या पागल ना हो- वहां राजा या जनप्रतिनिधि के भीतर आवश्यक समझी गई उपरोक्त शर्तों को भी लिखा जाए। यदि हम ऐसा करने में सफल हो सके तो निश्चय ही हम भारत के लोकतंत्र को सही पटरी पर आते हुए देखेंगे। क्योंकि ऐसी स्थिति में अत्याचारी, बलात्कारी, हत्यारे और अपराधी
लोग राजनीति में नहीं आ सकेंगे और देश के विधान मंडलों में प्रवेश कर पाने से भी रुक जाएंगे। देखते हैं केंद्र की मोदी सरकार और सारा विपक्ष कब इस दिशा में कदम उठाता है?

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

 

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