मोदी सरकार कट्टरपंथियों का विश्वास जीतने में नाकाम है या फिर …

🙏बुरा मानो या भला🙏

 

——–मनोज चतुर्वेदी

बिहार के बांका के नवटोलिया में नूरी मस्ज़िद इस्लामपुर के परिसर में स्थित मदरसे में धमाके से मौलाना अब्दुल सत्तार मोकिन के चिथड़े उड़ गए। इस धमाके से मदरसे की पूरी इमारत ध्वस्त हो गई और आसपास के मकानों में भी दरार आ गई।


धमाके के पश्चात गांव के बहियार में एक गाड़ी से मौलाना का शव फेंककर कोई भाग गया था, उसके बाद पुलिस को इस मामले की जानकारी हुई। घटनास्थल से 5 लीटर के 2 गैस सिलेंडर, बम की सुतली, बारूद के अवशेष और मौलवी सत्तार मोकिन का खून सना कुर्ता मिला है। दोनों गैस सिलेंडर सुरक्षित हैं।
मदरसा कमेटी के लोगों ने भी इसकी जानकारी पुलिस को नहीं दी।

यहाँ उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में छोटी-2 बातों पर बम धमाके होते रहते हैं। जून 2020 में 50 बम धमाके हुए थे जिसमें पुलिस ने 7 लोगों को गिरफ्तार किया था।
मीडिया सूत्रों से ख़बर मिली है कि मदरसे के दफ़्तर में एक ट्रंक के भीतर बम रखा हुआ था।

जरा कल्पना कीजिये कि यदि यह बम किसी ट्रेन, बस या किसी भीड़भाड़ वाली जगह पर फटता तो कितने निर्दोष और मासूम लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती। प्रश्न यह है कि जब इससे पहले भी बम धमाकों की घटनाएं होती रही हैं तब उन मामलों को गम्भीरता से क्यों नहीं लिया गया? क्या इसे स्थानीय पुलिस-प्रशासन और गुप्तचर एजेंसियों की नाकामी नहीं कहना चाहिए?
मदरसों में बम धमाके होने की यह पहली और आखिरी घटना नहीं है, और मदरसों में हथियारों का मिलना भी अब कोई नई बात नहीं रह गई है। लेकिन हर बार राजनीतिक मजबूरियों अथवा मज़हबी दबाव में इस तरह की घटनाओं पर लीपापोती कर दी जाती है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि कश्मीर, असम, केरल,पश्चिम बंगाल और उत्तरप्रदेश सहित देश की राजधानी दिल्ली में भी कुछ मस्जिदों और मदरसों को आतंकियों की शरणस्थली बना दिया गया है। कई मदरसों में स्वतंत्रता दिवस पर झंडा भी नहीं फहराया जाता है और राष्ट्रीय गान गाने की भी मनाही है।
देश की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने भी इस बात के लिए सरकारों को चेताया है कि कुछ मदरसों में मजहबी शिक्षा की आड़ में मासूम बच्चों में कट्टरपंथी विचारधारा को पुष्पित-पल्लवित करने का प्रयास किया जा रहा है। यह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है कि इस प्रकार की राष्ट्रविरोधी और आतंकी गतिविधियों को चलाने के लिए इन मदरसों में आर्थिक सहायता कहाँ से और क्यों होती है।
लेकिन उस सबके बावजूद सरकार और प्रशासन गांधी के तीन बंदरों की तरह आंख, कान और मुहं बन्द किये बैठा रहता है।

यक्ष प्रश्न यह भी है कि हमारी राष्ट्रवादी केंद्र सरकार इस प्रकार के मामलों पर कोई सख़्त कार्यवाही करने से क्यों कतराती है। क्या यह माना जाए कि “सबका साथ-सबका विश्वास” का नारा बुलंद करने वाली मोदी सरकार लाख कोशिशों के बावजूद इन कट्टरपंथी ताकतों का विश्वास नहीं जीत पाई है, या फिर यह माना जाए कि अब मोदी सरकार सावरकर और राष्ट्रवाद को पीछे छोड़कर उदारता और गाँधीवाद की राह पर निकल पड़ी है।

यहां यह भी पूछा जाना चाहिए कि सरकारों के ख़िलाफ़ फ़तवा देने वाले और इस्लाम खतरे में है कि दुहाई देने वाले आज मस्जिदों में बलात्कार करने वाले और मदरसों में बम बनाने वाले तथाकथित धर्मगुरुओं पर कोई फ़तवा क्यों नहीं देते? इस्लाम को अमन और शांति का पैगाम बताने वाले तमाम शांतिदूत संगठन और उनके राजनीतिक आका भी ऐसी समस्त घटनाओं पर मौन व्रत धारण किये क्यों बैठे हैं।

🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है।

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