वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून की स्थापना एवं कार्यों का परिचय

ओ३म्

===========
आर्यसमाज एक वैश्विक धार्मिक एवं सामाजिक संगठन है। धर्म का तात्पर्य सत्याचरण एवं आत्मा की उन्नति से लिया जाता है। आत्मा की उन्नति ज्ञान व सत्य सिद्धान्तों का अध्ययन कर उनका आचरण करने से होती है। सत्य ज्ञान के मुख्य स्रोत ईश्वर प्रदत्त वेदज्ञान की संहितायें व उन पर वैदिक ऋषियों की टीकायें, व्याख्या ग्रन्थ व भाष्य आदि हैं। वेदों के 6 अंग व 6 उपांग हैं। शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष तथा कल्प यह वेदांग हैं तथा 6 दर्शन योग, सांख्य, वेदान्त, वैशेषिक, न्याय और मीमांसा उपांग हैं। वैदिक साहित्य में उपनिषदों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। यह आध्यात्मिक विद्या के ग्रन्थ हैं। मनुस्मृति, बाल्मीकि रामायण और महाभारत ग्रन्थों की गणना वैदिक साहित्य में की जाती है जिनका अप्रक्षिप्त और वेदानुकूल भाग ही ग्राह्य है। इनके अतिरिक्त भी संस्कृत में अनेक प्राचीन ग्रन्थों सहित आर्यसमाज के विद्वानों द्वारा लिखे गये शताधिक ग्रन्थ हैं जिनका स्वाध्याय कर मनुष्य का आत्मा ज्ञानवान होता है। इस ज्ञान को गुरुओं से अथवा स्वाध्याय से प्राप्त करना और उसके अनुसार अपना जीवन बनाना ही साधना है। साधना में ईश्वरोपासना, यज्ञ, ध्यान, चिन्तन-मनन आदि का विशेष महत्व है। एक ऐसा स्थान जहां यह सब सुविधायें सुलभ हों, उसे साधना केन्द्र व साधन-आश्रम की संज्ञा दी जा सकती है। वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून भी ज्ञान पिपासु साधको को ज्ञान व साधना कराने में सहयोग प्रदान करता है। यहां साधना के लिए अनुकूल वातावरण हैं। यहां रहकर सभी आयु वर्ग के मनुष्य ज्ञान व सदाचार की साधना करके अपने जीवन को उसके अनुसार व्यतीत करने की शिक्षा लेकर व अभ्यास करके मनुष्य जीवन के लक्ष्य आत्मा की उन्नति एवं मोक्ष की ओर बढ़ सकते हैं।

महात्मा आनन्द स्वामी सरस्वती जी आर्यसमाज के विख्यात विद्वान व विप्र सन्त थे। आप वैदिक साहित्य के विद्वान एवं योगदर्शन के अनुसार साधना एवं जीवन व्यतीत करने वाले आदर्श योगी थे। सन् 1944 से आरम्भ करके तीन वर्ष तक आप देहरादून की तपोवन की पहाड़ियों में समय-समय पर आकर योगदर्शन के अनुसार स्वाध्याय, चिन्तन, ध्यान, संयम, मौन, एकाकी जीवन तथा ईश्वर प्राप्ति के सभी साधनों का अभ्यास करते थे। साधना में मन का नियंत्रित होना सबसे मुख्य माना जाता है। आपने व अन्य योगियों ने पाया है कि यहां तपोवन, देहरादून का वातवारण मन को बाह्य जगत से पृथक करने तथा उसे ईश्वर में स्थिर करने में बहुत सहायक है। वैदिक साहित्य के स्वाध्याय से अर्जित यथार्थ ज्ञान से ही मनुष्य की आत्मा उन्नत होकर मोक्षगामी बनती है। मनुष्य की आत्मा को मोक्ष मार्ग पर प्रेरित कर उसे मोक्ष के साधनों से परिचित कराना व शनैः शनैः साधना द्वारा आत्मा का उन्नति के पथ पर अग्रसर होना जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये आवश्यक है। साधना के सभी प्रकार से अनुकूल वातावरण होने के कारण ही महात्मा आनन्द स्वामी जी की प्रेरणा से उनके एक अत्यन्त धर्मनिष्ठ धनवान् सहयोगी अमृतसर निवासी तथा कपड़ा उद्योग से जुड़े सफल व्यवसायी बावा गुरमुख सिंह जी ने यहां सन् 1949 में लाखों रुपये व्यय करके लगभग 600 बीघा भूमि क्रय की थी और उस पर ‘वैदिक साधन आश्रम तपोवन’ की स्थापना की थी। देश, समाज, आर्यसमाज के लोग तथा सभी साधक इस कार्य के लिये इन दोनों महानुभावों के सदैव ऋणी रहेंगे।

आश्रम के लिये आरम्भ में जो लगभग 600 बीघा भूमि खरीदी गई थी, कुछ समय बाद जमींदारी प्रथा उन्मूलन में उसका लगभग दो तिहाई भाग सरकार ने छीन लिया। पूर्व अधिकारियों से इसका रिकार्ड प्राप्त नहीं हुआ जिस कारण वर्तमान अधिकारियों को इसका ज्ञान नहीं है। अब आश्रम के पास लगभग दो सौ बीघा भूमि है जिसमें मुख्यतः तीन परिसर हैं। पहला परिसर नालापानी गांव में हैं जहां आश्रम की अपनी एक नवनिर्मित भव्य एवं वृहद यज्ञशाला, एक बड़़ा व एक छोटा भव्य सभागार, पुस्तकालय, ध्यान केन्द्र, रसोईघर एवं भोजन कक्ष, बाग-बगीचा, एक वृहद चिकित्सालय भवन एवं 400 बालक-बालिकाओं का एक जूनियर हाईस्कूल है। साधको के लिये कुटियायें एवं अतिथि निवास भी हैं। आश्रम कार्यालय है और खाली भूमि भी है। अस्पताल, सभागार, कार्यालय एवं मंत्री जी का कक्ष तो अभी नये व भव्य रूप में बने हैं। यज्ञशाला का पुनरुद्धार कर उसे भव्य एवं नयनाभिराम रूप दिया गया है। दूसरा परिसर 4500 वर्ग गज की गोशाला है जो प्रथम आश्रम से 2 किमी. दूरी पर तपोवन की पहाड़ियों में स्थिति है और चारों ओर साल के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों व वनों से घिरी हुई है। यह परिसर भी अच्छा बड़ा है जहां अच्छी एक दर्जन गौवें हैं। तीसरा परिसर मंगलूवाला गांव में प्रथम आश्रम से 3 किमी. व गोशाला से 1 किमी. की दूरी पर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यह तपोभूमि कहलाता है। यह पूरा आश्रम वनों से आच्छाादित है। इसी को ईश्वर के ध्यान, मन की एकाग्रता, चिन्तन-मनन व साधना के लिये सर्वोत्तम बताया जाता है। यहीं पर महात्मा आनन्द स्वामी जी एवं महात्मा प्रभु आश्रित जी महाराज सहित कुछ प्रमुख योग साधकों को साधना की इष्ट आध्यात्म-सम्पत्ति ईश्वर साक्षात्कार होने का अनुमान है। यह परिसर भी काफी विस्तृत हैं। यहां वर्तमान में चतुर्वेद पारायण यज्ञ एवं साधना शिविर स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के सान्निध्य में आयोजित किये जाते हैं। शिवरात्रि के आसपास लगभग एक माह का शिविर प्रतिवर्ष लगता है। आश्रम के वर्ष में दो बार जो दो उत्सव होते हैं उनमें भी यहां शनिवार का दिन यज्ञ, भजन व सत्संग आदि के लिये निर्धारित किया जाता है। यहां भी साधकों के लिये 10 कुटियाओं सहित एक विशाल एवं भव्य यज्ञशाला, सभागार, गीजर से युक्त शौचालय, विद्युत, जल आदि सुविधायें सुलभ है। एक अन्य स्थान ऐसा है जिसे साधना के लिये बहुत उत्तम बताया जाता है। यहां एक चबूतरा बना है। उस पर वृक्षों की छाया रहती है। यहां बैठ कर ध्यान करने से योगी व साधक को शीघ्र सफलता मिलती है, ऐसा आश्रम के साधक बतातें हैं।

तपोभूमि में आरम्भ काल में जिन प्रमुख लोगों ने साधनायें व तप किया है उनमें कुछ प्रमुख नाम हैं महात्मा आनन्द स्वामी जी, उनके गुरु स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी, महात्म प्रभु आश्रित जी, महात्मा आत्मानन्द सरस्वती जी, पं. दौलत राम शास्त्री जी, महात्मा बलदेव जी एवं महात्मा दयानन्द वानप्रस्थी जी आदि। स्वामी सम्बुद्धानन्द जी भी यहां कई वर्षों तक रहे। वह बहुत विद्वान, योगी एवं उच्च कोटि के साधक थे। हमने उनके द्वारा आर्यसमाज धामावाला देहरादून एवं भारत सरकार के एक विश्व विख्यात संस्थान भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून में एक-एक सप्ताह के योग साधना एवं वेद विद्या प्रशिक्षण शिविर लगवाये थे। स्वामी जी की मृत्यु इसी आश्रम में हुई थी। आश्रम के उत्सवों में अनेक बार उनके विद्वतापूर्ण उपदेश सुनने का अवसर भी हमें मिला। उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। वह लम्बी दाढ़ी रखते थे, गौर वर्ण था और बोलने व प्रवचन की शैली भी श्रोताओं पर उनके ज्ञान व व्यक्तित्व आदि के गुणों का प्रभाव छोड़ती थी। आश्रम में सन् 1999 में एक उपदेशक विद्यालय खोला गया था। प्रथम नौ मास के एक शिविर में 7 पुरोहित तैयार हुए थे। उसके बाद यह उपदेशक विद्यालय चल नहीं सका। स्वामी दीक्षानन्द जी ने सन् 2000 में यहां संस्कृत-संस्कृति-स्वाध्याय शिविर चलाया था। समय-समय पर यहां अनेक प्रकार के उपयोगी शिविर आयोजित किये गये। वर्तमान में भी आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी यहां अनेक अवसरों पर विद्यालयों के युवाओं के लिये योग्यता विकास ;ैापसस क्मअमसवचउमदजद्ध के शिविर संचालित करते हैं। यह शिविर नियमित रूप से होते हैं जिनमें स्थानीय विद्यालयों व देश के दूरस्थ स्थानोें के लोग भी भाग लेते हैं। इनसे हमारे युवा वैदिक संस्कृति के सम्पर्क में आकर उपासना एवं यज्ञ के संस्कार भी ग्रहण करते हैं।

सन् 1952 में महात्मा प्रभु आश्रित जी महाराज ने रोहतक में तीन माह की गायत्री यज्ञ साधना आरम्भ की थी। इसके अन्त में महात्मा जी को प्रेरणा हुई यहां से देहरादून चलो। आप वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून आये और यहां रहकर अपना व्रत पूर्ण करने का संकल्प लिया। आपने 34 दिन मौन रखा और गायत्री साधना व मन्त्र जप आदि करते रहे। 30 मार्च सन् 1952 के अपने लिखित सन्देश/पत्र में आपने महात्मा आनन्द स्वामी जी को सूचित किया ‘‘30-3-1952 की प्रातः मेरे लिये बहुत सुन्दर थी। मुझे जो प्राप्त था, उस पर मुझे अन्दर से सन्तोष न होता था। कई व्रत भी किए परन्तु कोई पर्दा रह जाता था। सुन्दर कुटिया में एक पर्दा उठा और बाकी सब पर्दे यहां (वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में) उठ गये।’’ इसके बाद भी महात्मा जी कई बार तपोवन पधारे और यहां साधना सहित यज्ञ व सत्संग आदि करते कराते रहे। महात्मा प्रभु आश्रित जी के शब्द वैदिक साधन आश्रम तपोवन की महत्ता के द्योतक हैं। हमें ऐसा लगता कि उन्होंने ईश्वर साक्षात्कार के लिए ही ‘बाकी सब पर्दे यहां उठ गये’ का प्रयोग किया है।

आश्रम सोसायटी के के पुराने सदस्यों सहित आश्रम परिवार के प्रमुख लोगों के नामों का उल्लेख भी यहां कर देना हमें समीचीन लगता है। बावा गुरमुख सिंह जी एवं महात्मा आनन्द स्वामी जी के अतिरिक्त कुछ नाम हैं सेठ रुलिया राम गुप्ता, श्री भोलानाथ आर्य, श्री मेला राम, मास्टर ज्ञान चन्द, कविराज हरनाम दास बी.ए., सेठ बंशीधर, महात्मा बलदेव, महात्मा दयानन्द वानप्रस्थी, श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य, श्री पृथ्वीचन्द हरि, श्री योगेन्द्र सिंह भल्ला, श्री इन्द्रसेन ‘जिज्ञासु’, श्री जगदीश लाल रहेजा, श्री आशीष दर्शनाचार्य, श्री विक्रम बावा, श्री मनीश बावा, श्री जयराम सिंह ओबराय, श्री तेज कृष्ण कौल, श्री योगेश मुंजाल, श्री हरिचन्द, श्री हरबंस लाल मरवाह, पं. हीरानन्द शर्मा, श्री सोहन लाल अरोड़ा, श्री रामलाल नारंग, स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती, कुंवर बृज भूषण, श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री, श्रीमती सन्तोष रहेजा, श्री देवदत्त बाली, श्री यशपाल आर्य, श्री सोमनाथ ढ़ीगरा, श्री पी.एन. बजाज, श्री प्रेम प्रकाश शर्मा एवं श्री मनजीत सिंह आदि।

आश्रम में साधक साधिकायें आते और जाते रहते हैं। कुछ स्थाई रूप से भी यहां रह रहे हैं। प्रातः व सायं यज्ञ एवं सत्संग होता है। साधकगण आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी तथा स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी से अपनी-अपनी साधना सम्बन्धी शंकाओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। साधकों के लिये साधना विषयक सभी प्रकार की सुविधायें आश्रम उपलब्ध कराता है। जो साधक नीचे के आश्रम में रहकर साधना करना चाहते हैं, वह यहां रहकर कर सकते हैं और जिन्हें पूर्ण एकान्त व निर्जन स्थान अच्छा लगता है, वह इस आश्रम से 3 किमी. दूर पहाड़ियों पर ऊंचे वृक्षों वाले वन में स्थित साधना स्थली तपोभूमि में रहकर साधना कर सकते हैं। आत्म-कल्याण, परजन्मों के सुधार, ईश्वर साक्षात्कार सहित मोक्ष की ओर पग बढ़ाने का साधन स्वाध्याय, ध्यान, जप, यज्ञ आदि साधनाओं से होता है। पाठकों से हमारा निवेदन है कि वह आश्रम के शरदुत्सव या ग्रीष्मोत्सव के अवसर पर एक बार आश्रम में आने का कष्ट करें जिससे वह भविष्य में जब आवश्यकता अनुभव करें यहां आकर साधना कर सकें। वर्तमान समय में कोरोना रोग के कारण विगत दो ग्रीष्म एवं एक शरदुत्सव आयोजित नहीं किया जा सका। आशा है कि आगामी अक्टूबर 2021 में शरदुत्सव पूर्व वर्षों के समान हर्षोल्लासपूर्वक आयोजित होगा। पाठक आश्रम की मासिक पत्रिका पवमान मासिक के सदस्य भी बन सकते हैं। इसके लिये आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी, मोबाइल नं. 09412051586, से सम्पर्क कर पत्रिका प्राप्त कर सकते हैं। इससे आपको घर बैठे आश्रम विषयक सभी सूचनायें व जानकारियां, स्वाध्याय की प्रचुर सामग्री सहित प्रत्येक माह प्राप्त हुआ करेगी। आप भी पत्रिका के सम्पादक को अपने साधना के अनुभवों से सम्बन्धित लेख भेजकर अन्य पाठकों व साधको को लाभ पहुंचा सकते हैं।

आश्रम में नये निर्माण कार्य चलते रहते हैं। देहरादून में उत्तराखण्ड के माननीय उच्च न्यायालय, नैनीताल ने सड़कों के दोनों ओर के एनक्रोचमेन्ट हटाने का आदेश दिया था। देहरादून के कई बाजार व स्थान इससे प्रभावित हुए। आश्रम की 1000 फीट लम्बी बाउण्ड्री दीवार तोड़कर लगभग 10 फीट पीछे कर दी गई है। अब 1000 फीट लम्बी तथा 9 फीट ऊंची बाउण्ड्री-वाल का निर्माण किया जा रहा है। कुछ कार्य अभी होना शेष है। आश्रम की सन् 1950 में बनी यज्ञशाला उत्सवों में याज्ञिकों की वृद्धि होने के कारण छोटी पड़ रही थी। ग्रीष्मकालीन उत्सव में प्रायः वर्षा होने से यज्ञ में व्यवधान पड़ता था। अतः यज्ञशाला के चारों ओर खाली स्थान पर भव्य स्तम्भों को बनाकर उस पर छत छत डाली गई है। इस कार्य से यज्ञशाला काफी बड़ी एवं भव्य बन गई है जहां वृहद सत्संग भी आयोजित हो सकता है। यज्ञशाला का कुल क्षेत्रफल पांच हजार वर्ग फीट है। इस यज्ञशाला को कीर्तिशेष आश्रम प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री (मृत्यु : १६-५-२०२१) तथा मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने अन्य सदस्यों के सहयोग से अतीव भव्य रूप दिया है। इस यज्ञशाला में यज्ञ करने से याज्ञिकों के मन पर सात्विक प्रभाव पड़ता है। अतः वैदिक धर्मियों को एक बार आश्रम के उत्सव में आकर आश्रम की यज्ञशाला एवं यहां के अन्य सभी स्थलों का दर्शन करना चाहिये। आर्यजगत के सभी दानी महानुभावों को आश्रम को अधिक से अधिक आर्थिक सहयोग करना चाहिये। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो आश्रम का व्यवस्थित रूप से चलना कठिन होगा। हमें वर्तमान में आश्रम के सामने यही प्रमुख चुनौती लगती है कि उसको आवश्यकतानुसार साधन उपलब्ध होते रहें। हम यह भी अनुभव करते हैं कि वैदिक धर्म प्रेमी जब इस नई यज्ञशाला में यज्ञ करेंगे तो इसका पुण्य लाभ सभी दानी महानुभावों को होगा। आश्रम की उन्नति में ही हमारा जीवन सार्थक है अन्यथा आश्रम की कमजोर स्थिति के लिये हम ही उत्तरदायी होंगे। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

Comment: