कोरोना से मौतों के गुनाहगार , भाग – 1

कोरोना से मौतों के गुनहगार
आनंद कुमार
वर्तमान में हमारा देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है। प्रतिदिन तीन हजार से ज्यादा मौतें हो रही हैं तथा लगभग तीन लाख नए संक्रमण के प्रकरण सामने आ रहे हैं।


जिस प्रकार इस महामारी के दौरान आम लोगों को कष्ट उठाना पड़ा है उसका शब्दों में सही चित्रण करना असंभव है।
अस्पतालों में न दवाइयां थी, न ऑक्सीजन थी, न वेंटिलेटर्स थे न ही बेड थे। कोई मरीज सड़क पर दम तोड़ रहा था, तो कोई अस्पताल के गेट पर दम तोड़ रहा था। जो कुछ भाग्यशाली थे और अस्पतालों में पहुंच चुके थे, वह भी दवाइयों एवं ऑक्सीजन की कमी से तड़प तड़प कर मरने को मजबूर थे। जो किसी तरह बचे वे आग में झुलस कर मर गए। मौत का ऐसा दर्दनाक तांडव मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा।
ऐसा नहीं था कि दवाइयों व ऑक्सीजन की कमी थी। थोड़ी बहुत कमी हो सकती है। पर प्रबंधन की कमी थी। सब कुछ उपलब्ध था पर ब्लैक मार्केट में मिल रहा था, एक निश्चित कीमत पर। जो कीमत आम आदमी के सामर्थ्य से बाहर थी। इस कालाबाजारी के खेल में कुछ डॉक्टर्स एवं उनका स्टाप संलिप्त था। राजनेता व पार्टियां भी अपना खेल खेल रही थी। अस्पताल भी दोषी थे। जितने नामवर अस्पताल उनकी उतनी ही ज्यादा बोली लग रही थी। इस धंधे में कुछ व्यापारी थे, दलाल थे, पढ़े-लिखे सफेदपोश भी थे। दुर्भाग्य कि लाशों को भी धंधे का सौदा बना लिया था।
पर इस दुर्व्यवस्था के लिए सर्वप्रथम मैं यदि किसी को जिम्मेदार मानता हूं तो वे देश के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी हैं।
मोदी जी की समस्या यह है कि वह प्रधानमंत्री कम चुनाव प्रचारक ज्यादा हैं। सदा चुनाव प्रचार में लगे रहते हैं। उन्हें लगता है कि उनके बिना बीजेपी किसी भी राज्य के चुनाव नहीं जीत सकती। इसके कारण जितना ध्यान उनको कोरोना महामारी के नियंत्रण के लिए देना चाहिए था, नहीं दे पाए, और हालात बेकाबू हो गये।
जब प्रधानमंत्री जी को कोरोनावायरस की चिंता नहीं तो और लोग क्यों परेशान होते। यही कारण है कि जब कोरोना की दूसरी लहर आयी तो न तो मोदी जी तैयार थे, न केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री तैयार थे, न ब्यूरोक्रेसी तैयार थी, न ही राज्य सरकारें तैयार थी। और इस सब का दुष्परिणाम इस देश की गरीब जनता को भुगतना पड़ रहा है।

 

( लेखक राष्ट्र निर्माण पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं)
क्रमशः

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