अग्निहोत्र में गुग्गुल के प्रयोग का महत्व

#गुग्गुल______

हमारे देश में राजस्थान मध्य प्रदेश गुजरात के अर्ध शुष्क से लेकर मरुस्थलीय क्षेत्र के साथ-साथ आंध्र प्रदेश मे एक करिश्माई 3 से 4 मीटर ऊंचा झाडीनुमा कांटेदार गुग्गुल का पेड़ पाया जाता है। सुखी और गर्म जलवायु इसे अधिक रास आती है सर्दियों में इस पेड़ की वृद्धि रुक जाती है यह शीत निंद्रा में चला जाता है।

इसका वनस्पतिक नामCommiphora wightii है। आंग्ल भाषा में इसे Indian Bdellium कहते हैं। गुग्गुल के पेड़ से प्राप्त इसकी गोंद को भी गुग्गुल ही कहा जाता है जो अचूक जीवनरक्षक रोग संक्रमणनाशक औषधि है। गुग्गुल के एक पेड़ से वर्ष भर में 250 ग्राम से लेकर 500 ग्राम तक ही गुग्गुल गोदं प्राप्त की जाती है नवंबर दिसंबर के महीने में इसके पेड़ पर चीरा लगाया जाता है मई-जून में यह दिव्य गोंद प्राप्त की जाती है।गुग्गुल वृक्ष गोंद का सर्वप्रथम उल्लेख संसार के पुस्तकालय की सर्वाधिक प्राचीन पुस्तक ईश्वर की वाणी अथर्ववेद के 19 में कांड में मिलता है इस कांड के प्रथम मंत्र का देवता भी गुग्गुल ही है इस मंत्र के दृष्टा ऋषि अथर्वा ही है जिससे इसकी महत्ता का पता चलता है दुनिया का बनाने वाला ईश्वर इसके गुणों का बखान कर रहा है।

मंत्र इस प्रकार है।

न तं यक्ष्मा अरुन्धती नैनं शपथ अश् नते।
यं भेषजस्य गुल्गुलो: सुरभिर्गन्धो अश् नते।।
(अथर्ववेद 38 वा कांड प्रथम मंत्र)

भावार्थ =”अग्निहोत्र हवन में गुग्गुल की हवि संपूर्ण घर को उस गंध से व्याप्त कर देती है जो रोगो को आक्रांत करके होता (यज्ञ करने वाला) को निरोग व शांत चित्त बना देती है। गुग्गुल की गंध रोगों पर समयक आक्रमण करने वाली है ,रोग हिरण के समान भाग खड़े होते हैं। उस घर में फेफड़ों को नष्ट करने वाले यक्ष्मा तपेदिक नहीं होते।

वेदों के मंत्र दृष्टा ऋषि साधारण आम इंसान नहीं थे वह आला दर्जे के वैज्ञानिक रिसर्च स्कॉलर थे। गुग्गुल गोदं प्लांट बेस्ट अर्थात पेड़ से प्राप्त नेचुरल स्टेरॉइड है जी हां स्टेरॉइड है। स्टेरॉयड क्या है? हमारा शरीर भी दर्जनों स्टेरॉयड का निर्माण करता है लगभग सभी हार्मोन स्टेरॉयड ही है steroid एक्टिव ऑर्गेनिक कंपाउंड है जो हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका में मौजूद रहते हैं यह कोशिकाओं के द्रव की तरलता तथा कोशिकाओं के आपसी संदेशों को नियंत्रित करते हैं। जब हमारे शरीर में कोई रोगाणु बैक्टीरिया या वायरस फंगस या चोट से संक्रमण होता है तो शरीर का immune system सूजन पैदा करता है संक्रमण की रोकथाम के लिए। एक हद तक सूजन शरीर के लिए ठीक है लेकिन जब हमारा immune system बहुत ज्यादा एग्रेसिव कर अत्यधिक सूजन शरीर के अंगों में उत्पन्न कर देता है तो यह सूजन ही ही शरीर के लिए जानलेवा हो जाती है। कोरोना संक्रमण से होने वाली फेफड़ों की बीमारी जिसमें निमोनिया या निमोनिया की बिगड़ी हुई एडवांस स्टेज जिसे एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम कहते हैं जिसमें फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं इसी घातक सूजन का परिणाम है। जिन फेफड़ों के सूक्ष्म कोष प्राणवायु ऑक्सीजन से भरने चाहिए वह सूजन व संक्रामक द्रव से भर जाते हैं फेफड़ों की सभी रोगों में ऐसा होता है चाहे टीबी हो या कोरोना डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए केमिकल स्टेरॉयड डेक्सामेथासोन अधिक चढ़ाते हैं जिनके शरीर पर जबरदस्त दुष्प्रभाव है नतीजा लोग संक्रमण से कम इन एलोपैथी की औषधियों के दुष्प्रभाव से अधिक मर रहे । शरीर के अंदरूनी अंगों की सूजन से उत्पन्न रोग rheumatoid arthritis से लेकर लुपस फेफड़ों के संक्रमण सूजन की अचूक औषधि गुग्गुल है जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। इसमें E-gugelstrone ,Z-googlestrone जैसी सूजन रोधी स्टेरॉयड पाए जाते हैं जो प्राकृतिक है सुरक्षित है|गुग्गुल कि रोग नाशक फार्मकोलॉजिकल एक्टिविटी पर बहुत रिसर्च दुनिया में हुई हैं। आधुनिक विज्ञान ने इस करिश्माई गोदं को केमिकल, फार्मोकोलॉजिकल ,क्लीनिकल तीनों ही स्टडी में एकदम उस कसौटी वर्णन के अनुकूल पाया है जैसा ईश्वर की वाणी वेद में बीज रुप तथा शाखा रूप से आयुर्वेद चरक सुश्रुत संहिता में मिलता है। कोई ऐसा बैक्टीरिया वायरस चाहे ग्राम पॉजिटिव हो नेगेटिव हो या Rna, DNA virus हो जिस का खात्मा गुग्गुल के औषधीय अनुपान तथा यज्ञ इसके इस्तेमाल से नहीं किया जा सकता। आयुर्वेद की ऋषि ने इसे मेदोहर कहा आज के आधुनिक विज्ञानियों विज्ञान ने इसे हाइपोलिपिडेमिक कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने वाली अर्थात शरीर की चर्बी को नष्ट करने वाली माना है। केवल टर्मिनोलॉजी बदल गई है। संक्रामक रोग शरीर की जानलेवा सूजन पर इसके अनेकों सफल प्रयोग बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ में बहुत पहले हुए हैं। आयुर्वेद की जितनी भी मुख्य औषधियां वटी है उनका गुग्गुल प्रमुख घटक द्रव्य है। चाहे अमृता गुग्गुल ,केशोर गुग्गुल, त्रयोदशांग गुग्गुल हो ,अश्वगंधा गुग्गुल वटी हो सभी औषधियों की प्रभावशीलता इसके साथ जुड़कर बढ़ जाती है। अग्नि पुराण में इसके विषय में कहा गया है।

घृत गूगुलहोमे च सर्वउत्पातिमर्दने अर्थात घी और गुग्गुलल के हवन करने से सभी रोगों महामारीयो उत्पातो का नाश होता है।

चाहे वैदिक काल हो पौराणिक काल हो चाहे आधुनिक कथित विज्ञान का यह अंधकार मिश्रित युग हो गुग्गुल अचूक अमोघ औषधि है। यज्ञ आदि में जब दिव्य गोदं को डाला जाता है तो इस दिव्य औषधि के active compound क्वांटम स्केल में वातावरण में पहुंच कर श्वास के माध्यम से रक्त प्रणाली से होते हुए क्षतिग्रस्त सूजे हुए अंगों की चिकित्सा करते है। हानिकारक बैक्टीरिया वायरस की प्रोटीन तथा उन को आश्रय देने वाले इंसानी जीनो को यह अवरोधित करते हैं। यही इस दिव्य औषधि का आधुनिक मकैनिकजिम ऑफ एक्शन है अर्थात कैसे हवन आदि में में प्रयोग करने वाले को यह रोगों से मुक्त करती है उस घर को स्वस्थ निरोगी बनाती है। कुछ अरसे पहले तक हमारे पूर्वज अपने प्राचीन पूर्वजों के औषधीय ज्ञान से प्रेरणा लेकर अपनी ही चिकित्सा नहीं करते थे अपितु पशुओं को फसल सब्जियों को कीड़ों से मुक्त करने के लिए इसको जला कर इसकी धूनी देते थे पूरा खेत सुगंधित हो जाता था इस गोदं में बहुत उत्तम सुगंध आती इसे अग्नि में जलाने पर है ऐसा इसमें मौजूद flavonoids terpenoids स्वास्थ्यवर्धक प्राकृतिक chemical compound के कारण होता है। लेकिन दुर्भाग्य से इस दिव्य गोंद के पेड़ पर भी संकट पैदा हो गया है आईयूसीएन की रेट लिस्ट में इसके पेड़ को संकटग्रस्त सूची में शामिल किया गया है। शुद्ध गुग्गुल के नाम पर पंसारी विक्रेता बहुत बड़ी मिलावटखोरी करते हैं अन्य खनिजों अन्य वृक्षों की की गोदं को गुग्गुल बता कर बेच देते हैं। हवन में 10 ग्राम शुद्ध गूगल का केवल प्रयोग यदि विधिवत किया जाए 10 परिवारों को रोगाणु मुक्त कर सकता है। संक्रामक महामारियो के विरुद्ध यह दिव्य गोदं प्रभावी हथियार है।

आर्य सागर खारी ✍✍✍

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