महात्मा गांधी, इस्लाम और आर्य समाज, भाग- 1

 

#डॉविवेकआर्य

Mahatma and Islam – Faith and Freedom: Gandhi in History के नाम से मुशीरुल हसन नामक लेखक की नई पुस्तक प्रकाशित हुई हैं जिसमें लेखक ने इस्लाम के सम्बन्ध में महात्मा गाँधी के विचार प्रकट किये हैं। इस पुस्तक के प्रकाश में आने से महात्मा गाँधी जी के आर्यसमाज से जुड़े हुए पुराने प्रसंग मस्तिष्क में पुन: स्मरण हो उठे। स्वामी श्रद्धानंद जी की कभी मुक्त कंठ से प्रशंसा करने वाले महात्मा गाँधी जी का स्वामी जी से कांग्रेस द्वारा दलित समाज का उद्धार ,इस्लाम,शुद्धि और हिन्दू संगठन विषय की लेकर मतभेद था। महात्मा गाँधी ने आर्यसमाज, स्वामी दयानंद, सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी श्रद्धानंद जी के विरुद्ध लेख २९ मई १९२४ को “हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य , उसका कारण और उसकी चिकित्सा”के नाम से लिखा था। इस लेख में भारत भर में हो रहे हिन्दू-मुस्लिम दंगो का कारण आर्य समाज को बताया गया था। इस लेख का सबसे अधिक दुष्प्रभाव इस्लाम को मानने वालो की सोच पर पड़ा था क्यूंकि महात्मा गाँधी का समर्थन मिलने से उन्हें लगने लगा था की जो भी नैतिक अथवा अनैतिक कार्य वे इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए कर रहे हैं ,वे उचित हैं एवं उनके अनैतिक कार्यों का विरोध करने वाला आर्यसमाज असत्य मार्ग पर हैं इसीलिए महात्मा गाँधी भी आर्यसमाज और उनकी मान्यताओं का विरोध कर रहे हैं। सब पाठकगन शायद जानते ही होगे की महात्मा गाँधी द्वारा रंगीला रसूल के विरुद्ध लेख लिखने के बाद ही मुस्लिम समाज के कुछ कट्टरपंथी तत्व महाशय राजपाल की जान के प्यासे हो गये थे जिसका परिणाम उनकी शहादत और इलमदीन की फाँसी के रूप में निकला था। महात्मा गाँधी के आर्यसमाज के विरुद्ध लिखे गए लेख का प्रतिउत्तर आर्यसमाज के अनेक विद्वानों ने दिया जैसे लाला लाजपत राय , मिस्टर केलकर , मिस्टर सी.एस.रंगा अय्यर , महात्मा टी . एल . वासवानी , स्वामी सत्यदेव जी , पंडित चमूपति जी आदि।

आर्य समाज की और से एक डेलीगेशन के रूप में पंडित आर्यमुनिजी, पंडित रामचन्द्र देहलवी जी, पंडित इन्द्र जी विद्यावाचस्पति जी स्वयं गाँधी जी से उनके लेख के विषय में मिले परन्तु गाँधी जी ने उत्तर देने के स्थान पर टाल मटोल कर मौन धारण कर लिया था।

कालांतर में सार्वदेशिक सभा दिल्ली के सदस्य श्री ज्ञानचंद आर्य जी ने अत्यंत रोचक पुस्तक उर्दू में “इजहारे हकीकत” के नाम से लिखी जिसका हिन्दू अनुवाद”सत्य निर्णय” के नाम से १९३३में छापा गया था। इस पुस्तक में लेखक ने महात्मा गाँधी द्वारा जो आरोप लगाये गये थे न केवल उनका यथोचित समाधान किया हैं अपितु गाँधी जी की हिन्दू धर्म के विषय में जो भी मान्यता थी उनका उचित विश्लेषण किया हैं।

आर्यसमाज के प्रकाण्ड विद्वान पंडित धर्मदेव जी विद्यामार्तंड द्वारा आर्यसमाज और महात्मा गाँधी के शीर्षक से एक और महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी गई थी जिसका पुन: प्रकाशन घुड़मल ट्रस्ट हिंडौन सिटी राजस्थान ने हाल ही में किया हैं।

गाँधी जी के शुद्धि विषयक विचार आर्यसमाज की विचारधारा के प्रतिकूल थे। गाँधी जी एक और शुद्धि से हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य को बढ़ावा देना मानते थे दूसरी और मुसलमानों द्वारा गैर मुसलमानों की तब्लोग करने पर चुप्पी धारण कर लेते थे। १९२१ के मालाबार के हिन्दू मुस्लिम दंगों के समय तो आर्यसमाज खिलाफत आन्दोलन के लिए मुसलमानों का साथ दे रहा था, फिर शुद्धि को हिन्दू मुस्लिम दंगों का कारण बताना असत्य नहीं तो और क्या था? मुल्तान में हुए भयंकर दंगों का कारण ताजिये के ऊपर बंधी डंडी का टेलीफोन की तार से उलझ कर टूट जाना था जिससे आक्रोशित होकर मुस्लिम दंगाइयों ने निरीह हिन्दू जनता पर भयंकर अत्याचार किये थे। कोहाट के दंगों का कारण एक हिन्दू लड़की को कुछ हिन्दू एक मुस्लिम की गिरफ्त से छुड़वा लाये थे जिससे चिढ़ कर मुसलमानों ने हथियार सहित हिन्दू बस्तीयों पर हमला बोल दिया जिससे हिन्दू जनता को कोहाट से भाग कर अपने प्राण बचने पड़े थे। एक प्रकार के अन्य दंगों का कारण खिलाफ़त आन्दोलन के कारण बदली हुई मुस्लिम मनोवृति, अंग्रेजों की फुट डालो और राज करो की निति, हिन्दू संगठन का न होना एवं तत्कालीन कांग्रेस द्वारा नर्म प्रतिक्रिया दिया जाना था नाकि सत्यार्थ प्रकाश का १४ समुल्लास , आर्यसमाज द्वारा चलाया गया शुद्धि आन्दोलन, शास्त्रार्थ एवं लेखन कार्य था।

विस्तार भय से हम गाँधी की के विचारों को इस लेख में केवल शुद्धि विषय तक ही सीमित कर रहे हैं क्यूंकि जहाँ एक और गाँधी जी ने आर्यसमाज के शुद्धि मिशन की भरपूर आलोचना की थी कालांतर में उन्ही के सबसे बड़े सुपुत्र हीरालाल गाँधी के मुस्लमान बन जाने पर आर्यसमाज द्वारा ही शुद्धि द्वारा वापिस हिन्दू धर्म में दोबारा से शामिल किया गया था।

हीरालाल के धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन जाने पर महात्मा गाँधी जी का व्यक्तव्य

(सन्दर्भ-सार्वदेशिक पत्रिका जुलाई अंक १९३६)

महात्मा गाँधी के सबसे बड़े पुत्र हीरालाल गाँधी तारीख २८ मई को नागपुर में गुप्त रीती से मुस्लमान बनाये गये हैं और नाम अब्दुल्लाह गाँधी रखा गया हैं तथा २९ मई को बम्बई की जुम्मा मस्जिद में उनके मुस्लमान बनने की घोषणा की गई।

कुछ दिन हुए यह खबर थी की वे ईसाई होने वाले हैं पर बाद में हीरालाल गाँधी ने स्वयँ ईसाई न होने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा हैं की वे अपने पिता महात्मा गाँधी से मतभेद होने के कारण वे मुस्लमान हो गये हैं।

महात्मा गाँधी जी का व्यक्तव्य

बंगलौर २ जून। अपने बड़े लड़के हीरालाल गाँधी के धर्म परिवर्तन के सिलसिले में महात्मा गाँधी ने मुस्लमान मित्रों के नाम एक अपील प्रकाशित की हैं। अपील का आशय निम्न हैं:-

“पत्रों में समाचार प्रकाशित हुआ हैं की मेरे पुत्र हीरालाल के धर्म परिवर्तन की घोषणा पर जुम्मा मस्जिद में मुस्लिम जनता ने अत्यंत हर्ष प्रकट किया हैं। यदि उसने ह्रदय से और बिना किसी सांसारिक लोभ के इस्लाम धर्म को स्वीकार किया होता तो मुझे कोई आपत्ति नहीं थी। क्यूंकि मैं इस्लाम को अपने धर्म के समान ही सच्चा समझता हूँ किन्तु मुझे संदेह हैं की वह धर्म परिवर्तन ह्रदय से तथा बगैर किसी सांसारिक लाभ की किया गया हैं।”

शराब का व्यसन

जो भी मेरे पुत्र हीरालाल से परिचित हैं वे जानते हैं की उसे शराब और व्यभिचार की लत पड़ी हैं। कुछ समय तक वह अपने मित्रों की सहायता पर गुजारा करता रहा। उसने कुछ पठानों से भी भरी सूद पर कर्ज लिया था। अभी कुछ दिनों की बात हैं की बम्बई में पठान लेनदारों के कारण उसको जीवन ले लाले पड़े हुए थे। अब वह उसी शहर में सूरमा बना हुआ हैं। उसकी पत्नी अत्यंत पतिव्रता थी।वह हमेशा हीरालाल के पापों को क्षमा करती रही। उसके ३ संतान हैं, २ लड़की और एक लड़का , जिनके लालन-पालन का भर उसने बहुत पहले ही छोड़ रखा हैं।

धर्म की नीलामी

कुछ सप्ताह पूर्व ही उसने हिन्दुओं के हिन्दुत्व के विरुद्ध शिकायत करके ईसाई बनने की धमकी दी थी। पत्र की भाषा से प्रतीत होता था हैं की वह उसी धर्म में जायेगा जो सबसे ऊँची बोली बोलेगा। उस पत्र का वांछित असर हुआ। एक हिन्दू काउंसिलर के मदद से उसे नागपुर मुन्सीपालिटी में नौकरी मिल गई। इसके बाद उसने एक और व्यक्तव्य प्रकाशित किया और हिन्दू धर्म के प्रति पूर्ण आस्था प्रकट की।

आर्थिक लालसा

किन्तु घटना कर्म से मालूम पड़ता हैं की उसकी आर्थिक लालसाएँ पूरी नहीं हुई और उसको पूरा करने के लिए उसने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया हैं। गत अप्रैल जब मैं नागपुर में था वह मुझ से तथा अपनी माता से मिलने आया और उसने मुझे बताया की किस प्रकार धर्मों के मिशनरी उसके पीछे पड़े हुए हैं। परमात्मा चमत्कार कर सकता हैं। उसने पत्थर दिलों को भी बदल दिया हैं और एक क्षण में पापियों को संत बना दिया हैं। यदि मैं देखता की नागपुर की मुलाकात में और हाल की शुक्रवार की घोषणा में हीरालाल में पश्चाताप की भावना का उदय हुआ हैं और उसके जीवन में परिवर्तन आ गया हैं, तथा उसने शराब तथा व्यभिचार छोड़ दिया हैं तो मेरे लिए इससे अधिक प्रसन्नता की और क्या बात होती?

जीवन में कोई परिवर्तन नहीं

लेकिन पत्रों की ख़बरें इसकी कोई गवाही नहीं देती। उसका जीवन अब भी यथापूर्व हैं। यदि वास्तव में उसके जीवन में कोई परिवर्तन होता तो वह मुझे अवश्य लिखता और मेरे दिल को खुश करता। मेरे सब पुत्रों को पूर्ण विचार स्वातंत्र्य हैं। उन्हें सिखाया गया हैं की वे सब धर्मों को इज्जत की दृष्टी से देखे। हीरालाल जनता हैं यदि उसने मुझे यह बताया होता की इस्लाम धर्म से मेरे जीवन को शांति मिली हैं तो में उसके रास्ते में कोई बाधा न डालता। किन्तु हम में से किसी को भी , मुझे या उसके २४ वर्षीय पुत्र को जो मेरे साथ रहता हैं उसकी कोई खबर नहीं हैं।

मुसलमानों को इस्लाम के सम्बन्ध में मेरे विचार ज्ञात हैं। कुछ मुसलमानों ने मुझे तार दिया हैं की अपने लड़के की तरह मैं भी संसार के सबसे सच्चे धर्म इस्लाम को ग्रहण कर लूँ।

गाँधी जी को चोट

मैं मानता हूँ की इन सब बातों से मेरे दिल को चोट पहुँचती हैं। मैं समझता हूँ की जो लोग हीरालाल के धर्म के जिम्मेदार हैं वे अहितयात से काम नहीं ले रहे जैसा की ऐसी अवस्था में करना चाहिए।

इस्लाम को हानि

हीरालाल के धर्म परिवर्तन से हिंदु धर्म को कोई क्षति नहीं हुई उसका इस्लाम प्रवेश उस धर्म की कमजोरी सिद्ध होगा। यदि उसका जीवन पहिले की भांति ही बुरा रहा।

धर्म परिवर्तन मनुष्य और उसके स्रष्टा से सम्बन्ध रखता हैं। शुद्ध ह्रदय के बिना किया हुआ धर्म परिवर्तन मेरी सम्मति में धर्म और ईश्वर का तिरस्कार हैं। धार्मिक मनुष्य के लिए विशुद्ध ह्रदय से न किया हुआ धर्म परिवर्तन दुःख की वस्तु हैं , हर्ष की नहीं।

मुसलमानों का कर्तव्य

मेरा मुस्लिम मित्रों को इस प्रकार लिखने का यह अभिप्राय हैं की वे हीरालाल के अतीत जीवन को ध्यान में रखे और यदि वे अनुभव करें की उसका धर्म परिवर्तन आत्मिक भावना से रहित हैं तो वे उसको अपने धर्म से बहिष्कृत कर दें, तथा इस बात को देखे की वह किसी प्रलोभन में न पड़े और इस प्रकार समाज का धर्म भीरु सदस्य बन जाये। उन्हें यह बात चाहिये की शराब ने उसका मस्तिष्क ख़राब कर दिया हैं वह सादअसद विवेक की बुद्धि खोखली कर डाली हैं। वह अब्दुल्ला हैं या हीरालाल इससे मुझे कोई मतलब नहीं। यदि वह अपना नाम बदल कर ईश्वरभक्त बन जाता हैं तो मुझे क्या आपत्ति हैं क्यूंकि अर्थ तो दोनों नामों का वही हैं।

(( महात्मा गाँधी ने अपने लेख मेंहीरालाल के इस्लाम ग्रहण करने पर न केवल अप्रसन्नता जाहिर की हैं अपितु उसे उसकी बुरी आदतों के कारण वापिस हिन्दू बन जाने की सलाह भी दी हैं। गाँधी जी इस लेख में मुसलमानों द्वारा किये जा रहे तबलीग कार्य की निंदा करने से बच रहे हैं परन्तु उनकी इस वेदना को उनके भावों द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता हैं))

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