राजनीति में एक संत थे पंडित गोविंद बल्लभ पंत

लेखक
गजेंद्र आर्य
राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता
जलालपुर अनूप शहर
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7 मार्च महाप्रयाण दिवस पर विशेष :
 “पंडित गोविंद बल्लभ पंत प्रथम मुख्यमंत्री (संयुक्त प्रांत) पूर्व गृह मंत्री भारत सरकार”
राष्ट्र के स्वाधीनता आंदोलन में अनेकानेक महामनाओं ने राष्ट्र की पराधीनता की बेड़ियां काटने में अपनी हवि दी है, जिन्हें हम समय-समय पर अपनी स्वार्थ परक नीति से सत्ता पर बने रहने को स्मरण करते रहते हैं। जैसे हाल में ही वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 23 जनवरी 2021 में हुतात्मा क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर बंगाल के चुनाव को ध्यान में रखकर नमन किया है। लेकिन 2014 से 7 वर्ष के कार्यकाल में नेताजी सुभाष पर माल्यार्पण करने की यशस्वी प्रधानमंत्री को याद नहीं आई। यद्यपि आर्य समाज प्रतिमा पूजन पर माल्यार्पण को अवैदिक मानता है फिर भी यथार्थ को कहना ही पड़ता है। यदि आर्य समाज यथार्थ का चित्रण नहीं करेगा तो समाज की चेतना मर जाएगी।
आज सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, डॉ• राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू ,सरदार बलदेव सिंह, खान अब्दुल गफ्फार खां(सीमांत गांधी), पट्टाभि सीतारमैया,जे•बी• कृपलानी, सरोजिनी नायडू, आचार्य नरेंद्र देव, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण आदि अनेकानेक नेताओं के साथ प्रथम पंक्ति के नेताओं में श्रद्धेय पंडित गोविंद बल्लभ पंत को याद नहीं किया जाता क्योंकि उनके उत्तराधिकारी अब राजनीति में नहीं है या हाशिये पर हैं। गोविंद बल्लभ पंत उन महान नायकों में से थे जिनका योगदान भारत के नवनिर्माण में किसी से कम नहीं है वरन् उनका योगदान भाषा की दृष्टि से राज्यों का बंटवारा एवं हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक दर्जा दिलाने में विशिष्ट रहा है। आइये, आज उस दिव्य आत्मा की विशिष्ट चर्चा करें।
               पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1887 में पूर्व संयुक्त प्रांत अल्मोड़ा के खूंट ग्राम में हुआ। उनकी मां गोविंदी बाई तथा पिता मनोरथ पंत थे। पिताश्री की अल्पायु में मृत्यु हो जाने के कारण उनका पालन नाना बद्री दत्त जोशी ने किया। वे गणित, साहित्य एवं राजनीति विषयों में सबसे होशियार थे। पढ़ाई के साथ-साथ वे कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य भी देखते थे। 1907 में बीए तथा 1909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों से उत्तीर्ण की। उस समय कॉलेज की ओर से लेम्सडेन अवार्ड भी दिया गया। 1910 में वकालत अल्मोड़ा में प्रारंभ की और रानी खेत में जाकर प्रेम सभा का गठन किया। सभा का उद्देश्य जागृति पैदा करना था। प्रेम सभा का आर्य समाज के सहयोग से इतना असर हुआ कि ब्रिटिश स्कूलों को आज के उत्तराखंड से बिस्तर बोरियां बांधना बड़ा।
दिसंबर 1921 के स्वतंत्रता संघर्ष में महात्मा गांधी के आह्वान् पर असहयोग आंदोलन में भाग लिया और खुलकर राजनीति में आ गए। 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के साथियों ने सरकारी खजाना लूट लिया।
              पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को बचाने हेतु केस भी लड़ा तथा तत्कालीन वायसराय को पत्र भी लेकर महामना मदन मोहन मालवीय के साथ गये, किंतु गांधी जी का समर्थन ना मिलने के कारण अपने मिशन में कामयाबी नहीं मिली। 1928 में साइमन कमीशन का पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में बहिष्कार कर विरोध भी किया। 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लिया और देहरादून की जेल में भी गए। इस प्रकार आप कई बार जेल गए।
      धीरे-धीरे स्वाधीनता आंदोलन जोर पकड़ रहा था और अंग्रेज भयभीत थे। अतः उसी काल में कांग्रेस के नेतृत्व को अपनी सरकार बनाने की अनुमति देनी पड़ी। 1936- 37 में कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग ने चुनाव लड़ा और कांग्रेस भारी बहुमत से जीत कर आई। पंडित गोविंद बल्लभ पंत 17 जुलाई 1937 को संयुक्त प्रांत के सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री बने उस समय मुख्यमंत्री को रियासतों की तर्ज पर प्रधानमंत्री बोला जाता था। लेकिन सत्यनिष्ठ होने के कारण अंग्रेजों से पटरी नहीं बैठ पाई और 2 नवंबर 1939 को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। इसी दौरान द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया जो 1945 तक चला। इस युद्ध में तथाकथित गोरे एवं स्वदेशी काले अंग्रेजों ने महान देवदूत सुभाष को मृत घोषित कर दिया और फिर पुनः अंग्रेजों के आग्रह पर 1 अप्रैल 1946 को मुख्यमंत्री बने और 15 अगस्त 1947 तक इस पद पर मुख्यमंत्री रहे। जब भारतवर्ष का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रांत का नाम उत्तर प्रदेश रख दिया गया तो फिर से तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सर्वसम्मति से बने अर्थात स्वतंत्र भारत के नव नामित मुख्यमंत्री 27 दिसंबर 1954 तक रहे। इनके तीनों कार्यकाल में इनके सर्वाधिक विश्वसनीय सदस्य इनकी कैबिनेट में चौधरी चरण सिंह एवं लाल बहादुर शास्त्री रहे हैं इनकी कैबिनेट के दोनों ही सदस्य भारतवर्ष के प्रधानमंत्री भी बने हैं। लाल बहादुर शास्त्री एवं चौधरी चरण सिंह भले ही अल्प अवधि के प्रधानमंत्री रहे लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्यों का राष्ट्र ऋणी रहेगा।
सरदार पटेल की मृत्यु के बाद शक्तिशाली गृहमंत्री एवं कुशल प्रशासक की आवश्यकता थी अतः अत्यंत सूझबूझ वाले व्यक्ति पंडित गोविंद बल्लभ पंत को चुना गया। उन्होंने 1 जनवरी 1955 से 7 मार्च 1961 महाप्रयाण तक कर्तव्य का निर्वहन किया।
पंडित गोविंद बल्लभ पंत को 1957 में भारत रत्न सम्मान से भी सम्मानित किया गया। उनके द्वारा किए गए प्रमुख कार्य-
१. राज्यों का भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना।
२. हिंदी को राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा के तौर पर प्रतिष्ठित करना।
३. राजनीति में भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना।
४. राज्य की नौकरशाही (ब्यूरोक्रेसी) और लालफीताशाही पर लगाम लगाना। 
५. समय-समय पर नौकरशाही को कार्यो का निपटारा कराने हेतु पाबंद करना।
६. समय-समय पर जनता से संवाद करना।
लेकिन आज के आधुनिक नेता अपने लच्छेदार जुमले एवं भाषणों से 2022 में उत्तर प्रदेश के चुनावों के दौरान सुभाष चंद्र बोस की भांति याद कर सत्ता पर काबिज होने का प्रयास करेंगे। आज संसद भवन में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के चित्र पर 7 मार्च को केंद्रीय नेतृत्व को माल्यार्पण तो दूर सेवादारों को चित्र से धूल झाड़ने की भी फुर्सत नहीं है अंत में, मैं यही कहूंगा
कहो नीति और करो अनीति ।
यही है स्वार्थ परक चुनाव राजनीति।।
अतः राष्ट्रकवि मैथिलीशरण की पंक्तियों की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं
हम कौन थे क्या हो गये, और क्या होंगे अभी।
आओ विचारेंं आज मिलकर, राष्ट्र की ये समस्याएं सभी।।
 
यदि सही अर्थों में लोकतंत्र को जनतंत्र, मनतंत्र, गणतंत्र में रखना है तो निम्नांकित विचारों पर ध्यान करें।
 
जीत भी बिक जाती है यहां पर, बिक जाती है हार यहां।
जनता जब बिक जाती है, तब बनती है सरकार यहां।।
 
बड़ी से बड़ी मिथ्या, मिथ में समा जाएगी।
तर्कहीन, अर्थहीन धारणा विश्वास बन जाएगी।।
 
प्रजातंत्र के पावन मंदिर में यदि मरणोत्सव होते हों।
सत्ता के मद में सिंहासन पर, यदि खूनी पंजे फैले हो।।
 
यदि वर्तमान हमारा हो घायल, भावी युग दर्शन का क्या होगा?
यदि गूंगे, बहरों का लोकतंत्र हो, फिर लोकतंत्र कैसा होगा?

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