कंकर से शंकर

(दार्शनिक विचार)

#डॉविवेकआर्य

आज महाशिवरात्रि का पर्व है। यह वही रात है जब बालक के रूप में मूल शंकर ने शिवरात्रि का व्रत रखा। निराहार रहकर शिवजी के दर्शन का संकल्प लिया। शिवलिंग पर चूहों की उछल-कूद देखकर बालक के मन में उठी जिज्ञासा ने मूल शंकर को स्वामी दयानन्द बना दिया। सच्चे शिव के दर्शन ने उन्हें वेदों के मार्ग का पथिक बना दिया। सदियों से अंधकार में जी रही इस भारत भूमि के भाग्य रूपी नभ में वेद के ज्ञान का प्रकाश हुआ। इस प्रकाश से मत-मतान्तर, पाखंड, अधर्म की आंखें चुँधिया गई।
पर दयानन्द स्वामी के प्रस्थान के बाद भारतीय जनमानस एक बार फिर से शंकर को भूलकर कंकर की पूजा में लीन हो गया। शंकर की प्रार्थना को छोड़कर कंकर प्रार्थना करने लग गया। कल्याणकारी प्रभु का साक्षात्कार करने के स्थान पर अन्धविश्वास में लीन हो गया। शंकर के दर्शन कर अपने जीवन को स्वर्ग बनाने के स्थान पर कंकर के दर्शन में जीवन को यूँ ही खपाने में लग गया।
कंकर क्या है? कंकर है भौतिक पदार्थों का मोह। कोई छोटे छोटे पत्थर के टुकड़े से मोह कर रहा है। कोई बड़े बड़े भवनों से। इस चक्कर में शंकर को भूल गया। शंकर को भूलने का परिणाम है सर्वनाश। आत्म हनन। मनुष्य जीवन की व्यर्थता। इसलिए मेरे बंधुओं शंकर है तो उससे मिलने चलो। चलो प्रभु का साक्षात् करने। चलो शंकर के दर्शन करने। रास्ता दिखा दिया है देव दयानन्द ने। उस राह पर चलो। वह तुम्हें मिल जायेगा। उससे कर फिर और क्या इच्छा शेष रह जाएगी।

‘मिलो शंकर से भूलो कंकर को’

#MahaShivratri #DayanandBodhDivas

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