वित्तमंत्री सीतारमण द्वारा खींची गई खर्चा बढ़ाने वाली राह

आशीष कुमार

​​इस लिहाज से अगले वित्त वर्ष यानी 2021-22 में जीडीपी में 11 फीसदी की विकास दर देखने को मिल सकती है। हालांकि यह अनुमानित विकास दर माइनस 7.7 फीसदी के काफी निचले बेसमार्क पर आधारित है, फिर भी एक साल के लिए यह काफी ऊंची छलांग मानी जाएगी।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा शुक्रवार को संसद में पेश किया गया आर्थिक सर्वे इस धारणा पर आधारित है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सबसे मुश्किल दौर से निकल चुकी है और आगे हालात तेजी से बेहतर होते जाएंगे। कोरोना और लॉकडाउन की जकड़न के चलते साल 2020-21 में जीडीपी में 7.7 फीसदी की गिरावट होने का अनुमान बताते हुए सर्वे में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था वी शेप्ड रिकवरी (तेज गिरावट के बाद उतनी ही तेजी से ऊपर आने का रुझान) दर्शा रही है।
इस लिहाज से अगले वित्त वर्ष यानी 2021-22 में जीडीपी में 11 फीसदी की विकास दर देखने को मिल सकती है। हालांकि यह अनुमानित विकास दर माइनस 7.7 फीसदी के काफी निचले बेसमार्क पर आधारित है, फिर भी एक साल के लिए यह काफी ऊंची छलांग मानी जाएगी। रहा सवाल इसे संभव बनाने के तरीकों का तो आर्थिक सर्वे से यह साफ हो जाता है कि सरकार मुख्यतः इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स में निवेश बढ़ाकर इस लक्ष्य को साधने की कोशिश में है। मौजूदा हालात के ब्यौरों में जाते हुए सर्वे में रेखांकित किया गया है कि आयात और निर्यात, दोनों में भले अच्छी-खासी गिरावट आई हो, लेकिन इस बार 2 फीसदी का करंट अकाउंट सरप्लस (चालू खाते का मुनाफा) दर्ज किया गया है जो 17 साल में पहली बार संभव हुआ है।
विदेशी मुद्रा भंडार भी 586.1 अरब डॉलर (8 जनवरी 2021 का आंकड़ा) के अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर है। यह भी कि अर्थव्यवस्था जैसे-जैसे संकट से उबर रही है, वैसे-वैसे सरकार की राजस्व वसूली में भी सुधार हो रहा है। दिसंबर महीने का जीएसटी कलेक्शन एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया। ऐसे सकारात्मक संकेतों के आधार पर सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह मजबूती से आगे बढ़े और ग्लोबल रेटिंग एजेंसियों की ज्यादा परवाह न करे। साफ-साफ कहा जाए तो आर्थिक सर्वे आगे के लिए यही राह सुझा रहा है कि वह कर्ज के बोझ, वित्तीय घाटे और नकारात्मक ब्याज दर की चिंता किए गए बगैर सरकारी खर्चे बढ़ाए और विकास की रफ्तार तेज करे। सर्वे के मुताबिक मौजूदा हालात में इसका कोई विकल्प भी नहीं है।
बहरहाल, भविष्य के सुनहरे सपनों में खोने से पहले हमें यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि आर्थिक सर्वे के आंकड़े मोटे तौर पर कॉरपोरेट और फॉर्मल सेक्टर्स के फीडबैक पर आधारित होते हैं। असंगठित क्षेत्र से फीडबैक आने में वक्त लगता है। महामारी और लॉकडाउन के झटकों से भारत के छोटे कारोबारी कितना उबर पाए हैं, इस बारे में ठोस जानकारियां अभी सरकार के पास नहीं हैं। याद रहे, यह तबका नोटबंदी और जीएसटी के झटकों से उबरने में ही जुटा था कि लॉकडाउन ने इस पर तगड़ी चोट कर दी। भारत के घरेलू बाजार की खुशहाली काफी कुछ इसकी आर्थिक सेहत पर ही निर्भर करती है।
वैश्विक स्तर पर कोरोना की स्थिति आज भी गंभीर बनी हुई है। ऐसे में निर्यात में खास सुधार की उम्मीद तत्काल नहीं की जा सकती। वी शेप्ड रिकवरी सुनने में शानदार लगती है और हर मंदी के बाद इसका मंत्रोच्चार जरूरी समझा जाता है, लेकिन अर्थव्यवस्था की अच्छी बुनियाद बनाने वाली बात इस कर्मकांड के दौरान छूट ही जाती है। उम्मीद करें कि इस पहले पोस्ट-कोरोना बजट में ऊपर ही ऊपर देखने की गलती नहीं की जाएगी और इसका जोर छोटे उद्यमों तथा खेती-किसानी की स्थिति सुधारने वाले उपायों पर रहेगा।

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